चुनावी बॉन्ड: आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई, SBI के खिलाफ दायर हुई है अवमानना याचिका

याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे का विवरण निर्वाचन आयोग को 6 मार्च तक सौंपे जाने संबंधी कोर्ट के निर्देश की ‘‘जानबूझकर’’ अवज्ञा की।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

आज सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की उस अर्जी पर सुनवाई करेगी जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा नकदी में परिवर्तित किये गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने का अनुरोध किया गया है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ एक अलग याचिका पर भी सुनवाई करेगी, जिसमें एसबीआई के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे का विवरण निर्वाचन आयोग को 6 मार्च तक सौंपे जाने संबंधी कोर्ट के निर्देश की ‘‘जानबूझकर’’ अवज्ञा की।

शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर कर अनुरोध किया गया है कि, न्यायालय के निर्देशों की कथित अवज्ञा को लेकर एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।

गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स तथा कॉमन काउज द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि समय दिए जाने के अनुरोध वाली एसबीआई की अर्जी अंतिम क्षणों में जानबूझ कर दायर की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चंदा देने वालों और चंदे की रकम का खुलासा लोकसभा चुनावों से पहले नहीं हो। याचिका में कहा गया है, ‘‘यह इस न्यायालय के प्राधिकार को कमतर करने की एक स्पष्ट कोशिश है।’’


अवमानना याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड योजना की धारा सात के अनुसार, क्रेता (बॉन्ड खरीदने वालों) द्वारा दी गई सूचना का खुलासा सक्षम अदालत द्वारा मांगे जाने पर किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड का पूरी तरह से पता लगाया जा सकता है जो इस तथ्य से जाहिर है कि एसबीआई, बॉन्ड खरीदने वालों और चंदा प्राप्त करने वाले दलों का ‘संख्या आधारित रिकॉर्ड’ रखता है।

अवमानना याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के वित्त पोषण को किसी भी तरह से गोपनीय रखना सहभागिता वाले लोकतंत्र की भावना और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के खिलाफ है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में, चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था।

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