BJP सरकार के दावों की खुली पोल! यूपी में MSP मिलना किसानों के लिए दूर की कौड़ी, ठंड में छूटे अन्नदाता के पसीने

कहने को यूपी में 11 एजेंसियों के 4330 खरीद केन्द्रों से धान की खरीद हो रही। लेकिन मुख्यमंत्री के आह्वान वाला एमएसपी पाने के लिए किसानों के माथे पर ठंड में भी पसीना दिख रहा है। धान खरीद का ये हाल पीएम, सीएम से लेकर कृषि मंत्री के क्षेत्र के हालात की पड़ताल से दिख जाती है।

फोटो: सोशल मीडिया
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के संतोष

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के उग्र होने आंदोलन के बीच केन्द्र से यूपी सरकार की तरफ से किसानों से फसल खरीद में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कई दावे किये जा रहे हैं। इन दावों की हकीकत यूपी में किसी भी धान खरीद पर देखी जा सकती है। धान खरीद को 75 दिन से अधिक हो चुके हैं, लेकिन सुस्ती, पेच, भ्रष्टाचार के चलते लक्ष्य के सापेक्ष बमुश्किल आधी खरीद ही हो सकी है। यह स्थिति तब है कि बिचौलियों द्वारा बंगाल, बिहार से तस्करी का लाया जा रहा धान पूर्वांचल के क्रय केन्द्रों पर धड़ल्ले से बिक रहा है।

दूसरी तरफ किसानों को नमी, धान की खराब क्वालिटी आदि का अवरोध लगाकर वापस भेजा जा रहा है। प्रदेश में धान खरीद की शुरूआत पिछले एक अक्तूबर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा ट्वीटर पर आह्वान से शुरू हुआ था। सीएम का ट्वीट कर कहा था कि, ‘किसान बहनों-भाइयों को राम-राम! प्रभु कृपा से इस वर्ष धान की पैदावार बहुत अच्छी हुई है। आपके हित को ध्यान में रखते हुए हमने इस वर्ष धान कॉमन का समर्थन मूल्य 1868 रुपये प्रति क्विंटल तथा ग्रेड-ए धान का 1888 रुपये क्विंटल निर्धारित किया है। कृपया एमएसपी से कम कीमत पर कहीं भी धान बिक्री न करें।’

कहने को प्रदेश में 11 एजेंसियों के 4330 खरीद केन्द्रों से धान की खरीद हो रही। लेकिन मुख्यमंत्री के आह्वान वाला एमएसपी पाने के लिए किसानों के माथे पर ठंड में भी पसीना दिख रहा है। क्रय केन्द्रों से 14 दिसम्बर तक करीब 29 लाख टन धान की खरीद हुई है। जबकि प्रदेश सरकार ने 55 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य रखा है। क्रय केन्द्रों पर अभी तक 529,082 किसानों से धान की खरीद हुई है। जबकि खाद्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 1,087,510 किसानों ने धान की सरकारी खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। धान खरीद का हाल पीएम, सीएम से लेकर कृषि मंत्री के क्षेत्र के हालात की पड़ताल से दिख जाती है। मुख्यमंत्री के क्षेत्र गोरखपुर मंडल में 70,268 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया लेकिन आधे किसानों से भी खरीद नहीं हुई। यही हाल प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है। यहां पंजीकृत 68,861 किसानों में से 40 फीसदी को भी एमएसपी का लाभ नहीं मिला।

दरअसल, धान खरीद केंद्रों पर प्रभारियों द्वारा खरीद को लेकर तमाम पेच फंसाए जाते है। महराजगंज में नेपाल सीमा से सटे फरेंदी तिवारी गांव के किसान अखिलेश तिवारी बताते हैं कि ‘4 बार क्रय केंद्र पर गया। हर बार नमी और खराब क्वालिटी को लेकर कटौती की बात की गई। थक हारकर 220 क्विंटल धान बिचौलिए को 1400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेच दिया।’ सबसे दिलचस्प हाल गोरखपुर के बड़हलगंज क्षेत्र का है, जहां धान की फसल होती ही नहीं है, वहां से सैकड़ों टन धान की खरीद हो गई। उरूवा कस्बे के मुरारपुर गांव के किसान अनूप दूबे का कहना है कि ‘बिहार से धान खरीद कर बिचौलिये किसानों की खतौनी लेकर क्रय केंद्रों पर बिक्री कर रहे हैं। किसानों को खतौनी के एवज में खुश कर दिया जा रहा है।’ विभाग ने कुछ मामलों को आधार बनाकर प्रभारियों पर मुकदमा दर्ज किया है, लेकिन इसका असर खरीद पर नहीं दिख रहा है।

बिहार सीमा से सटे जिलों गाजीपुर, बलिया, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर आदि जिलों में बिहार से आने वाले धान का असर है। गाजीपुर के दिलदारनगर क्षेत्र के पचैखा गांव में हजारों क्विंटल धान खरीदी गई। किसान सुशील राय का कहना है कि ‘350 क्विंटल धान बिचैलियों को 1550 रुपये के रेट से बेचा।’ किसान का कहना है कि ‘केंद्र पर नमी के नाम पर 15 फीसदी की कटौती हो रही है। केंद्र तक धान ढुलाई का खर्च 50 से 75 रुपये लग रहा है। ऐसे में बिचौलिये को 1550 रुपये में धान बेचना फायदे का सौदा नजर आया।’ प्रदेश में सर्वाधिक 1,232 खरीद केंद्रों से धान खरीद का लक्ष्य उत्तर प्रदेश के खाद्य विभाग की विपणन शाखा (एफसीएस) ने रखा था। अभी तक 22.50 लाख टन धान खरीद के सापेक्ष 10 लाख टन की भी खरीद नहीं हुई है। इसी तरह उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ) ने तय लक्ष्य 13 लाख टन के सापेक्ष सिर्फ 6.87 लाख टन की ही खरीद की।

केंद्र के भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने अपने 104 खरीद केंद्रों के जरिये उत्तर प्रदेश में दो लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से सिर्फ 45,957 टन की ही खरीदी हुई है। कोरोना काल में गेहूं की खरीद का बुरा हाल रहा है। क्रय केंद्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति कुंतल की दर से 55 लाख मिट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य था। ऑनलाइन टोकन व्यवस्था के बाद भी बिचौलियों की चांदी रही।

एमएसपी की सिफारिश करने वाली केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक, धान उत्पादन में दूसरा स्थान रखने वाले उत्तर प्रदेश के सिर्फ 3.6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी पर सरकारी खरीद का लाभ मिलता है। इसके उलट पंजाब के 95 फीसदी से अधिक और हरियाणा के 69.9 फीसदी किसानों को सरकारी खरीद लाभ मिलता है।

विधानसभा में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रस्तुत आकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि खरीद का लक्ष्य मुश्किल से पूरा हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में 50 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था। हालांकि राज्य सरकार इन वर्षों के दौरान क्रमश: 42.90 लाख टन, 48.25 लाख टन और 51.05 लाख टन धान खरीद पाई। कृषि मामलों के जानकार उत्कर्ष सिन्हा सरकारी खरीद को जरूरी बताते हुए कहते हैं कि ‘सरकार की लचीली व्यवस्था से किसानों को एमएसपी से कम दाम पर उपज को प्राइवेट ट्रेडर्स के हाथ बेचना पड़ता है। सरकारी खरीद इसलिए भी आवश्यक है, ताकि बाजार मूल्य को एमएसपी के बराबर या इससे ज्यादा पर लाया जा सके।’

प्रदेश सरकार भले ही दावा करे कि खरीफ और रबी की फसल की रिकॉर्ड खरीदारी हो रही है। लेकिन आकड़े कुछ और तस्दीक कर रहे हैं। एफसीआई के आकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन साल से प्रदेश भी गेहूं की खरीद लगातार घट रही है। एफसीआई के मुताबिक 2018-19 में यूपी ने अपने कुल उत्पादन का 16.6 फीसदी, 2019-20 में 11.3 फीसदी और 2020-21 में सिर्फ 11.1 फीसदी गेहूं एमएसपी पर खरीदा गया। इसी तरह 2019-20 में धान की खरीद भी सिर्फ 56.57 लाख मिट्रिक टन ही की गई। किसान नेता विनोद फौजी का कहना है कि ‘ खुद सरकार के आकड़े बता रहे हैं कि एक खरीद केंद्र पर एक दिन में औसतन दो किसानों से भी खरीद नहीं हो रही है। मिलरों, अधिकारियों की मिलीभगत से बिहार और बंगाल का धान गोदामों में भरा जा रहा है।

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