कश्मीर: लोग घरों में कैद, सड़कों पर सन्नाटा, कारोबार ठप, इस सबको कैसे कोई कह सकता है सामान्य हालात

जम्मू-कश्मीर की जमीनी स्थिति बेहद डरावनी हैl स्कूल-काॅलेजों में विद्यार्थी नजर नहीं आते,सुरक्षा बलों के जवानों ने वहां डेरा डाल रखा हैl दक्षिण कश्मीर में न जाने कितने युवक गिरफ्तार कर लिए गए हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दो महीने बाद यह स्थिति है। लेकिन, सरकार इसे सामान्य हालात बता रही है

फोटो : Getty Images
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माजिद मकबूल

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पिछले दो माह में कुछ नहीं बदला है- सुरक्षा बल उसी तरह घेराबंदी किए हुए हैं, लोग घरों में कैद हैं, जनजीवन अस्तव्यस्त है, स्कूल-कॉलेज बंद हैं, मोबाइल फोन बंद हैं और फिर भी, सरकार दावा कर रही है कि सबकुछ सामान्य है। सरकार और टीवी चैनलों के लिए सामान्य स्थिति का क्या मतलब है, यहां के लोगों को नहीं समझ में आ रहा। केंद्र सरकार ने यह अनुच्छेद 5 अगस्त को हटाया था।

अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ लोगों का प्रतिरोध दूसरे किस्म से प्रकट हो रहा है। यह आम तौर पर होने वाले विरोध प्रदर्श नों की तरह नहीं है। प्रतिबंध कुछ देर के लिए हटाए जाने के बावजूद लोग सामान्य तरीके से जीवन जीने से इनकार कर रहे हैं। रोजाना के जरूरी सामान की खरीद-बिक्री सुबह 6 से 9 बजे के बीच होती है। बाजार और दुकानें इसके बाद बंद हो जाती हैं। फिर, वे शाम में थोड़ी देर के लिए खुलती हैं।

सार्वजनिक परिवहन बिल्कुल ठप है। हां, कुछ निजी वाहन दिन में जरूर दिखते हैं। घुमावदार कांटेदार तार शहर की सभी महत्वपूर्ण सड़कों और चौराहों पर फैले हुए हैं। 5 अगस्त से ही जगह-जगह सीआरपीएफ जवानों के चेक प्वाइंट्स और बालू के बोरों से बने बंकर्स ज्यादा संख्या में दिखते हैं। जुलाई अंत से ही पहुंच रहे जवानों के लिए कई शैक्षिक संस्थानों और कॉलेजों में जगह बनाई गई है। इन पर इनका कब्जा है।

दक्षिणी कश्मीर में सार्वजनिक आवाजाही छिटपुट है और बंदी काफी गहन। वजह भी है। यहां काफी सारे युवकों को देर रात मारे गए छापों में गि रफ्तार कर लिया गया है। इस वजह से स्थानीय युवाओं में खौफ का माहौल है। पत्थरबाजी के मामलों में संदिग्ध कई युवाओं को सार्वजनिक सुरक्षा कानूनों (पीएसए) के तहत पकड़ लिया गया है।


पिछले दो माह के दौरान शोपियां जिले समेत दक्षिण कश्मी के कई इलाकों में सुरक्षा बलों द्वारा स्थानीय लोगों को पीटे जाने की खबरें तस्वीरों के साथ अंतरराष्ट्रीय प्रेस में छपी-दिखाई गई हैं, हालांकि सेना ने आधिकारिक तौर पर इनका खंडन किया है। पुलवामा जिले के कई गांवों में लोग सशस्त्र बलों द्वारा पैदा किए गए खौफ की बात करते हैं।

उनका आरोप है कि सुरक्षा बलों के जवान स्थानीय लड़कों की पिटाई करते हैं, उनके पहचान पत्र छीन लेते हैं और इलाके के सैन्य कैंपों में बुलाकर काफी पिटाई करने के बाद ही उन्हें रिहा करते हैं। इन पंक्तियों के लेखक ने करीब दो हफ्ते पहले पुलवामा के कई युवकों से बात की। उनका कहना था कि वे रात में डाले जाने वाले छापों से डरे हुए हैं। रात में गश्त करने वाले सुरक्षा बलों के जवान उनके साथ नियमित तौर पर मारपीट करते हैं। इस वजह से कई लोगों ने अपने घर छोड़ दिए हैं और वे अन्यत्र जाकर रह रहे हैं।

कश्मीर: लोग घरों में कैद, सड़कों पर सन्नाटा, कारोबार ठप, इस सबको कैसे कोई कह सकता है सामान्य हालात

श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार हारून रेशी कहते भी हैंः सरकार के सामान्य स्थिति के दावे जमीनी हकीकत से काफी दूर हैं और कोई भी देख सकता है कि मीडिया शुरू से ही इस तरह के दावे पेश भी करता रहा है। लोग असहाय हैं और संचार व्यवस्था बिल्कुल ठप कर दिए जाने की वजह से लोग परेशान हैं।

बंधा हुआ है प्रेस का मुंह

जब हालात ऐसे हों, तब प्रेस का काम सच्चाई की परतें उजागर करना होना चाहिए था। लेकिन स्थानीय मीडिया ने चुप्पी साध रखी है। सरकार से किसी तरह की संभावित परेशानी से बचने के लिए उसने खुद ही अपने ऊपर सेंसरशिप लागू कर ली है। स्थानीय प्रेस में क्या नहीं छपना चाहिए, इस पर ज्यादा जोर है, बनिस्बत इस बात के कि क्या छापना चाहिए। लगभग सभी प्रमुख अखबारों ने संचार व्यवस्था बिल्कुल बंद कर दिए जाने के कारण होने वाले मानवीय और स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर संपादकीय कॉलम छापना बंद रखा हुआ है।

हालांकि पिछले दो माह के दौरान इस तरह की किसी समस्या को लेकर सरकारी प्रवक्ता तो लगातार ही खंडन करते रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया में स्वास्थ्य-संबंधी संकटों को लेकर लगातार खबरें छपती-दिखाई जाती रही हैं और यह भी कि कैसे लोग एम्बुलेंस के लिए कॉल नहीं कर पा रहे और जब जरूरत हो, तब चिकित्सा सुविधा के लिए छटपटाते रह जाते हैं।

रोचक यह है कि घाटी से छपने वाले प्रमुख खबार ग्रेटर कश्मी र में वर्तमान राजनीतिक स्थिति को लेकर कोई संपादकीय या टिप्पणी तो दो महीने के दौरान नहीं छपी है लेकिन उसमें पहले पूरे पेज पर कई बार यह सरकारी विज्ञापन जरूर छपा है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के क्या फायदे हैं। हां, इस अखबार में राजनीतिक स्थिति पर एक ओपीनियन पीस जरूर छपा जिसमें अनु. 370 हटने के लाभ बताए गए थे।


कारोबार, पर्यटन को गहरा घाटा

कश्मीर के कारोबार को समय-समय पर होने वाले विरोध-प्रदर्शनों से घाटा होता ही रहा है। लेकिन 2008, 2010 और 2016 के बाद फिर, इस साल सबकुछ ठप है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो माह के दौरान घाटी की अर्थव्यवस्था को लगभग 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। व्यापारी और व्यवसायी समुदाय ने तमाम प्रतिबंधों को हटाने, नजरबंद रखे गए व्यापारी नेताओं को रिहा करने, इंटरनेट समेत तमाम संचार व्यवस्थाओं को बहाल करने की मांग की है।

केसीसीआई के अध्यक्ष शेख आशिक ने कहा भीः सभी लोगों में असुरक्षा की भावना है और इनमें व्यवसायी समुदाय भी है। जब तक प्रतिबंध नहीं हटाए जाते और संचार व्यवस्थाएं बहाल नहीं की जातीं, हम स्थानीय व्यापार और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान का आकलन भी नहीं कर सकते। हमारा मानना है कि कृषि अर्थव्यवस्था के सेब उद्योग समेत तमाम व्यापार का सरकार को अपने फायदे के लिए राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।

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Published: 11 Oct 2019, 5:00 PM
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