उत्तर प्रदेश चुनाव: प्रयागराज और कौशांबी में लग सकता है बीजेपी को झटका, विश्लेषकों का भारी उलटफेर का अनुमान

उत्तर प्रदेश चुनाव के पांचवे चरण में प्रयागराज और कौशांबी में भी मतदान हो गया। पिछले चुनाव में तो बीजेपी ने एक तरह से यहां क्लीन स्वीप किया था, लेकिन चुनाव विश्लेषकों को इस बार यहां भारी उलटफेर के आसार नजर आ रहे हैं।

फोटो : मृगांक तिवारी
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मृगांक तिवारी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण के मतदान में प्रयागराज की 12 और नजदीक के कौशांबी जिले की 3 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग प्रतिशत सामान्य ही रहा। रविवार को हुए इस मतदान के साथ ही यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और केबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और नंद गोपाल नंदी समेत सत्तारूढ़ बीजेपी के कई दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई।

वोटरों के मूड और मतदान का रुख से कहा जा सकता है कि प्रयागराज की 12 में से 11 सीटों पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधा और कड़ा मुकाबला रहा। सिर्फ शहर की उत्तरी सीट पर मुकाबला बीजेपी के वर्तमान विधायक हत्सवर्धन वाजपेयी और कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह के बीच रहा। अनुग्रह नारायण यहां से चार बार विधायक रह चुके हैं।

लेकिन कई इलाकों से आ रही खबरों के बाद बीजेपी खेमे में बेचैनी है क्योंकि कयास लगाए जा रहे हैं कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह की सीट फंस गई है।

बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि मौर्य की प्रतिद्धंदी और अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) की नेता और समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरीं पल्लवी पटेल को किसानों के बड़ी तादाद में वोट मिलने की संभावनाएं हैं। चुनाव पर्यवेक्षकों का कहनाहै कि पल्लवी पटेल को बड़ी संख्या में मुस्लिम वोटरों के साथ ही उनके अपने समुदाय कुर्मियों का भी खुला समर्थन रहा है। लेकिन मौर्य के समर्थक और बीजेपी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि इसका यह अर्थ सीधे तौर पर नहीं निकाला जा सकता कि मौर्य रेस से बाहर हो गए हैं।

देवेंद्र नाथ मिश्रा कहते हैं कि मौर्य को सभी जातियों और वर्दों का समर्थन मिला है। राजनीतिक पंडितों की राय है कि चूंकि इस चुनाव से मायावती एक तरह से गायब ही रही हैं इसलिए सिराथू सीट पर जाटव और दलितों समेत बीएसपी के परंपरागत वोटर समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच बंटे हैं। इसका यह अर्थ भी निकलता है कि कुछ समय पहले तक खुद के हाशिए पर धकेला हुआ समझने वाले ब्राह्मण वोटों का बड़ा हिस्सा जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।


इसके अलावा जो अन्य सीटें राजनीतिक कयासों का केंद्र बनई हुई हैं और जिन्हें कुछ समय पहले तक माफिया और राजनीतिज्ञ अतीक अहमद का गढ़ माना जाता रहा था, वहां के नतीजों को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं हैं। इस सीट को बीजेपी बीते 28 साल में कभी नहीं जीत पाई थी। सिर्फ पिछले 2017 के चुनाव में ही सिद्धार्थ नाथ सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी।

लेकिन इस बार सिद्धार्थ नाथ सिंह को समाजवादी पार्टी उम्मीदवार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्य ऋचा सिंह से चुनौती मिली है। ऋचा सिंह को एकदम आखिरी वक्त में ही सपा का टिकट मिला था। समाजवादी उम्मीदवार बीते पांच से इस इलाके में सक्रिय रहकर लोगों के बीच काम कर रहे थे। इसके अलावा पश्चिमी और दक्षिणी सीटों पर मुस्लिम वोटरों का बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकलना भी कुछ अलग संकेत दे रहा है। एक स्थानीय वोटर अशरफ जमाल का कहना है कि पश्चिमी सीट पर तो लटफेर निश्चित ही समझिए।

एक और कारण से बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. और वह है शहरी इलाकों में कम मतदान होना। शहर में बुद्धिजीवियों का इलाका समझी जाने वाली उत्तरी सीट पर महज 39.56 फीसदी ही मतदान हुआ। जबकि पश्चिमी सीट पर 51.20 फीसदी और दक्षिणी सीट पर 47 फीसदी वोटरों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। प्रयागराज में कुल मतदान प्रतिशत 52.21 फीसदी रहा जोकि 2017 के मुकाबले 2 फीसदी कम है। जिले की फूलपुर सीट पर सर्वाधिक 60 फीसदी वोट पड़े जबकि उत्तरी सीट पर सबसे कम 39.56 फीसदी वोट डाले गए।

इन तीन सीटों के अलावा जिले की बाकी 9 सीटें ग्रामीण इलाकों में हैं। इनमें फूलपुर, प्रतापपुर, हांडिया, सरांव. फाफामऊ, करछना, कोरांव, बाड़ा और मेजा सीटें हैं। 2017 में बीजेपी ने जिले की 12 में से 9 सीटें जिती थीं, जबकि बीएसपीए ने 2 और समाजवादी पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी।

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