हिन्दी और मैथिली की सुप्रसिद्ध लेखिका उषा किरण खान का निधन, पटना के अस्पताल में ली आखिरी सांस

उषा किरण खान ने हिंदी और मैथिली भाषा में दर्जनों कहानियां और उपन्यास लिखे। उन्होंने दोनों भाषाओं में बच्चों के लिए भी कई पुस्तकें लिखी हैं। उनकी विभिन्न रचनाओं के उड़िया, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं।

उषा किरण खान के निधन से मिथिलांचल समेत पूरे बिहार के साहित्य जगत में शोक की लहर
उषा किरण खान के निधन से मिथिलांचल समेत पूरे बिहार के साहित्य जगत में शोक की लहर
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नवजीवन डेस्क

पद्मश्री, साहित्य अकादमी, भारत-भारती सरीखे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित और अनेक कथा संग्रहों और उपन्यासों के लिए चर्चित हिन्दी और मैथिली की लेखिका उषा किरण खान  का रविवार को पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थीं। उनके निधन की खबर से मिथिलांचल समेत पूरे बिहार में शोक की लहर है।

उषा किरण खान ने हिंदी और मैथिली भाषा में दर्जनों कहानियां और उपन्यास लिखे। उन्होंने दोनों भाषाओं में बच्चों के लिए भी कई पुस्तकें लिखी हैं। उनकी विभिन्न रचनाओं के उड़िया, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। पद्मश्री के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का हिन्दी सम्मान, राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय सम्मान और उत्तर प्रदेश शासन का भारत भारती समेत दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा जाना साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान का आईना हैं।

उषा किरण खान का जन्म 24 अक्टूबर 1945 को बिहार के दरभंगा ज़िले के लहेरियासराय में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से भारतीय प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व विज्ञान में पीजी की डिग्री ली और बाद में मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी किया। उन्होंने 1977 से लेखन की शुरुआत की। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसमें ‘भामती’, ‘सृजनहार’, ‘हसीना मंज़िल’, ‘दूबधान’, ‘गीली पांक’, ‘घर से घर तक’, ‘विवश विक्रमादित्य’, ‘कासवन’, ‘जलधार’, ‘जनम अवधि’ जैसी कृतियां शामिल हैं। उनके लेखन का दायरा उपन्यास, कहानी, नाटक और बाल-साहित्य जैसी विविध विधाओं में फैला हुआ है।


हमने अपने समय की एक विशिष्ट प्रतिभा का खो दिया

हिन्दी और मैथिली की लोकप्रिय लेखिका उषा किरण खान के निधन पर वरिष्ठ कवि और आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि उषाजी का जाना साहित्य और समाज की अपूरणीय क्षति है। मिथिलांचल के एक सुप्रतिष्ठित और गांधीवादी परिवार में जन्म लेकर वे किशोर काल से ही अपने नागार्जुन काका के अभिभावकत्व में पलतीं और सज्ञान होती रहीं। उनके पिता और कविश्री नागार्जुन गहरे मित्रों में थे।

विवाह भी उनका संस्कृत पंडितों के जाने-माने घराने में हुआ जहां ब्याहने के बाद वे उषा किरण चौधरी से उषाकिरण खान के रूप में जानी गईं और अपनी कथा प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय स्तर की सुप्रतिष्ठित लेखिका के रूप में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत भी की गईं। उनके पति दिवंगत रामचन्द्र खान भी भाषा विज्ञान के गहरे जानकारों में रहे यद्दपि आजीविका उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा की चुनी और ऊंचे पदों पर रहे। पिछले साल ही उनका निधन हुआ था। उनकी बड़ी बेटी अनुराधा शंकर मध्य प्रदेश पुलिस सेवा में पुलिस उपमहानिदेशक पद पर हैं।


विजय बहादुर सिंह के अनुसार, बाबा नागार्जुन से मेरे पिता-पुत्र जैसे संबंधों के चलते वे मुझे अपने भाई के रूप में ही देखतीं और भाई जी कह कर ही संबोधित किया करती थीं। पिछले दिनों जब वे अपने नाती जनमेजय के विवाह संस्कार में उसे अपना आशीर्वाद देने आईं थीं हमने एक गुनगुनी दोपहर साथ भोजन लिया था। सुसंयोग यह कि परम संस्कृज्ञ आचार्य राधावल्लभ जी त्रिपाठी भी हमारे साथ थे। उषा जी के  अचानक चले जाने से हम अपनी गहरी पारिवारिक क्षति का अनुभव करते हैं। हमने अपने समय की एक विशिष्ट प्रतिभा को खो दिया।

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