शिव‘राज’ में एक और किसान ने तोड़ा दम, बुंदेलखंड में सूखा राहत राशि के लिए अनशन पर बैठे किसान की मौत

मृतक किसान के परिजनों ने बताया कि मंगल सिंह ने 14 जुलाई से ही कुछ नहीं खाया था, जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ती गई। आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं थी कि इलाज के लिए उन्हें ग्वालियर ले जाया जा सके। 19 जुलाई की देर रात उनकी मौत हो गई।

बुंदेलखंड के छतरपुर में सूखा राहत राशि के लिए अनशन पर बैठे किसान की मौत
बुंदेलखंड के छतरपुर में सूखा राहत राशि के लिए अनशन पर बैठे किसान की मौत
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आईएएनएस

बुंदेलखंड के छतरपुर में सूखा राहत राशि के लिए अनशन पर बैठे एक किसान की मौत का मामला सामने आया है। जिला प्रशासन हालांकि इस बात से इंकार कर रहा है कि किसान अनशन पर था। सूत्रों ने बताया कि राजनगर तहसील के डुमरा गांव के किसानों को पिछले साल की सूखा राहत राशि वितरित करने के लिए 14 जुलाई को पंचायत भवन बुलाया गया था, लेकिन राहत राशि नहीं मिली और किसान गुस्से में आ गए। 65 वर्षीय किसान मंगल सिंह पंचायत भवन के बाहर अनशन पर बैठ गए।

किसान मंगल सिंह के साथ पहले दिन धरने पर रहे एक अन्य किसान गुलाब त्रिपाठी ने बताया, "मुआवजा वितरण के लिए सभी किसानों को 14 जुलाई को पंचायत भवन बुलाया गया था, लेकिन जब मुआवजा नहीं मिला तो मंगल सिंह नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि जबतक मुआवजा नहीं मिल जाता, वह वहां से नहीं उठेंगे। वह लगातार अनशन पर बैठे रहे। हालत बिगड़ने पर 19 जुलाई को उन्हें अस्पताल ले जाया गया। चिकित्सकों ने उन्हें ग्वालियर रेफर कर दिया। आर्थिक स्थिति खराब होने पर ग्वालियर ले जाना संभव नहीं था। जब गांव वापस लाया गया तो उनकी मौत हो गई।"

मृतक मंगल सिंह के नाती जगदीश यादव ने कहा, "दादा (मंगल सिंह) ने 14 जुलाई से ही कुछ नहीं खाया था, जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ती गई। आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं थी कि इलाज के लिए हम उन्हें ग्वालियर ले जा सकें। हम उन्हें घर वापस ले आए, और 19 जुलाई की देर रात उनकी मौत हो गई।"

जगदीश ने बताया कि मौत के बाद गांव के लोगों ने 10 घंटे से ज्यादा समय तक गांव के पास का मार्ग जाम किए रखा, लेकिन प्रशासन का कोई नुमाइंदा मौके पर नहीं पहुंचा। हताश होकर 20 जुलाई को शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

जिलाधिकारी रमेश भंडारी कहा, "संबंधित किसान द्वारा किसी तरह का अनशन नहीं किया गया था। इस मामले की जांच राजनगर के तहसीलदार को सौंपी गई है।"

ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन पूरे मामले को दबाने में लगा है, जिसके कारण ही आंदोलन के दौरान कोई अधिकारी घटनास्थल पर नहीं पहुंचा, और मौत होने के बाद भी उसकी सुध नहीं ली गई। पोस्टमार्टम नहीं कराया, ताकि कोई तथ्य सामने न आ सके।

गौरतलब है कि बुंदेलखंड बीते तीन सालों से सूखे की चपेट में है। बारिश पर्याप्त न होने से किसानों के खेत मैदान में बदल जाते हैं, बोया बीज अंकुरित नहीं हो पाता। सरकार दावा करती है कि किसानों को सूखा राहत राशि दी जा रही है, खेती को फायदे का धंधा बनाया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत सभी सामने है।

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Published: 22 Jul 2018, 6:54 PM