फादर स्टेन स्वामी की हालत नाजुक, वेंटिलेटर पर रखा गया, भीमा कोरेगांव केस में 10 महीने से हैं जेल में

फादर स्टेन स्वामी की हालत नाजुक हो गई है और उन्हें अब आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है। भीमा कोरेगांव केस में आरोपी फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

भीमा कोरेगांव केस में 8 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किए गए वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की तबीयत बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है। उनकी तबीयत में लगातार गिरावट आ रही है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। इस दौरान कई संगठनों और कार्यकर्ताओं के मंच झारखंड जनाधिकार महासभा ने स्टेन स्वामी को तुरंत जमानत पर रिहा करने और उन्हें जरूरी मेडिकल सुविधाएं देने की मांग की है।

84 वर्षीय पादरी फादर स्टेन स्वामी को पिछले साल नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी ने गिरफ्तार किया था और तभी से वे न्यायिक हिरासत में तलोजा जेल में बंद है। जेल में ही उनकी हालत मई के शुरुआत से ही बिगड़ रही थी लेकिन जेल अधिकारियों ने उनका कोविड टेस्ट तक नहीं कराया। इस बारे में हल्ला होने पर उनका टेस्ट कराया गया और वे वॉजिटिव पाए गए थे। जेल प्रशासन ने उन्हें कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत के बजाए उस वक्त कोविड वैक्सीन दिलवाई जब वे बहुत बुरी तरह बीमार थे। 28 मई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें जेल से होली फैमिली अस्पताल में शिफ्ट करने का आदेश दिया था।

अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखे जाने की पुष्टि की है। अस्पताल ने कहा कि, “फादर स्टेन स्वामी को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है। इसके अतिरिक्त हम और कोई भी जानकारी मरीज के बारे में नहीं दे सकते।” पिछले दिनों जब उनकी हालत बिगड़ने लगी थी तो उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था, और बीते 6 दिन से वे आईसीयू में हैं। रविवार सुबह उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि उनकी हालत नाजुक है।

फादर स्टेन स्वामी की तरफ से बॉम्बे हाईकोर्ट मे याचिका दायर कर यूएपीए की धारा 43 डी को चुनौती दी गई है। याचिका मे कहा गया है कि इस धारा के कारण किसी भी आरोपी को जमानत हासिल करने में अवरोधों का सामना करना पड़ता है और इस तरह यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है।

उन्होंने तर्क दिया है कि यूएपीए के प्रावधान किसी आरोपी को जमानत देने पर रोक लगाते हैं। क्या अभियोजन पक्ष को भी सुनने के बाद, अदालत को प्रथम दृष्टया लगता है कि आरोप सही हैं। उन्होंने यूएपीए की पहली अनुसूची से 'फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन' शब्दावली को अलग करने का निर्देश देने की भी मांग की है। उन्होंने दावा किया है कि अभियोजन एजेंसियों द्वारा इसका इस्तेमाल जमानत याचिकाओं का "स्पष्ट रूप से और मनमाने ढंग से" विरोध करने के लिए किया जाता है। इससे किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित होती है।

आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत आम बात यह है कि किसी आरोपी व्यक्ति की बेगुनाही को तब तक मान लिया जाता है जब तक कि उसके खिलाफ आरोप अभियोजन द्वारा सिद्ध नहीं कर दिए जाते। फादर स्वामी की याचिका में कहा गया है कि निर्दोषता का अनुमान आपराधिक न्यायशास्त्र का एक मौलिक सिद्धांत है।

फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर 2 जुलाई, 2021 को जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की बेंच के सामने सुनवाई होनी थी, लेकिन समय की कमी के कारण इसे 6 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। उनके वकील मिहिर देसाई ने एनआईए के आदेशों के खिलाफ अपील की थी। विशेष अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी।

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