बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट में जोरदार बहस, पीठ ने कहा- सितंबर तक भी अवैध साबित हो गया तो रोक लगा सकते हैं

पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा कि वह तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहे क्योंकि प्रक्रिया शुरू होने से पहले की मतदाताओं की संख्या, पहले के मृतकों की संख्या और अब की संख्या तथा अन्य प्रासंगिक विवरणों पर सवाल उठेंगे। मामले में कल फिर सुनवाई होगी।

बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट में जोरदार बहस, पीठ ने कहा- सितंबर तक भी अवैध साबित हो गया तो रोक लगा सकते हैं
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नवजीवन डेस्क

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पीठ ने बड़ी टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर सितंबर में भी साबित कर दिया कि प्रक्रिया अवैध है तो इस पर रोक लगा दी जाएगी। आज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एक-एक कर सभी पक्षों को सुना। सुनवाई में कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी, वृंदा ग्रोवर जैसे दिग्गज वकीलों ने एसआईआर के खिलाफ दलील पेश की। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी ने दलीलों का विरोध किया। सुनवाई के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने भी व्यक्तिगत रूप से अपनी दलील पेश की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम यहां बैठे हैं

एसआईआर पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया एक छलावा है। अदालत ने कहा था कि आधार और ईपीआईसी को शामिल कर लें पर विचार तक नहीं किया गया। सिंघवी ने कहा कि साल 2003 में वोटर लिस्ट में रहे पांच करोड़ लोगों को फिर से जांचा जा रहा है? इसके लिए कुछ महीनों का समय दिया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता चिंता न करें। अगर 5 करोड़ लोगों को बाहर कर दिया, तो हम बैठे हैं यहां।

सितंबर तक भी अवैध साबित कर दिया, तो बंद करवा देंगे

सिंघवी ने कहा कि यह मामला अंतरिम हस्तक्षेप का हकदार है। आप ऐसी व्यवस्था नहीं बना सकते हैं जहां 5 करोड़ लोगों की नागरिकता पर संदेह हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकता तय करने का नियम संसद बनाती है, लेकिन जो नियम हैं, उनका सब पालन करते हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा, 'अगर आप लोग सितंबर में भी साबित कर देंगे कि प्रक्रिया अवैध है, तो हम उसे बंद करवा देंगे।' कोर्ट ने यह भी कहा कि जरूरत पड़ी तो हम सिर्फ कल ही नहीं, परसों भी सुनवाई करेंगे। किसी को इस शिकायत का मौका नहीं देंगे कि उसे सुना नहीं गया।

इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि नागरिकता पर कानून संसद द्वारा बनाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि 2003 तक कोई विवाद नहीं है। जो लोग तब की मतदाता सूची में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है। चुनाव आयोग कह रहा है कि जो लोग 2003 तक मतदाता थे, उनके बच्चों को भी दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है।


सिब्बल ने 12 जिंदा लोगों को मृत करार देने का आरोप लगाया

आरजेडी नेता मनोज झा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बलने दलील दी कि एक निर्वाचन क्षेत्र में आयोग ने 12 लोगों के मृत होने का दावा किया है जबकि वे जीवित पाए गए हैं, वहीं एक अन्य घटना में भी जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया गया है। सिब्बल ने कहा कि मृतक को जीवित दिखाने की जानकारी चुनाव आयोग को दी गई थी, पत्नी ने बताया और इसका वीडियो भी है। उन्होंने तर्क दिया कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में नियमों के अनुसार सूची दोबारा तैयार होनी चाहिए, लेकिन मसौदा जारी करने से पहले न तो फॉर्म 4 घर-घर भेजा गया, न दस्तावेज लिए गए। इससे नियम 10 और नियम 12 का उल्लंघन हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि नियम 13 के तहत दी गई आपत्तियों में भी खामियां हैं।

कपिल सिब्बल ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम स्पष्ट कहता है कि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाने के लिए सबूत देने का दायित्व उसी व्यक्ति पर है जो आपत्ति उठा रहा है। उसे मृत्यु, पता बदलने, नागरिक न होने आदि का प्रमाण देना होगा। आप मुझसे मेरे दस्तावेज नहीं मांग सकते, क्योंकि सबूत देने की जिम्मेदारी आपत्ति करने वाले की है। सिब्बल ने कहा कि कृपया फॉर्म 4 देखें, वे मुझसे क्या चाहते हैं. नाम और विवरण, नागरिक का नाम, पिता/माता/पति का विवरण, आयु, हस्ताक्षर।

पूरी प्रक्रिया कानून के खिलाफः सिब्बल

उन्होंने कहा कि फॉर्म 4 से कोई लेना-देना नहीं है। पूरी प्रक्रिया कानून के खिलाफ है। उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि फॉर्म में कहां लिखा है कि सभी दस्तावेज होने चाहिए? इस पर सिब्बल ने कहा कि फॉर्म से बुनियादी बात गायब है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार कार्ड पर आते हैं। इसमें लिखा है कि ‘नीचे दी गई सूची से’ जरूरी नहीं कि आपको सभी कागजात देने ही हों। इस पर सिब्बल ने कहा कि बिहार के लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं हैं, यही बात है।

इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार भारत का हिस्सा है। अगर बिहार के पास नहीं है तो दूसरे राज्यों के पास भी नहीं होगा। ये कौन से दस्तावेज हैं? अगर आप केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं, तो स्थानीय एलआईसी की ओर से कोई पहचान पत्र- दस्तावेज मिल सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि वे कह रहे हैं कि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है। जन्म प्रमाण पत्र की बात करें तो केवल 3.056% के पास ही है। पासपोर्ट 2.7% और 14.71 के पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र हैं।


इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कुछ तो होना ही चाहिए कि आप भारत के नागरिक हैं। हर किसी के पास कोई ना कोई प्रमाणपत्र होता है, सिम खरीदने के लिए इसकी जरूरत होती है। जस्टिस कांत ने कहा कि यह बहुत ही व्यापक तर्क है कि बिहार में किसी के पास ये दस्तावेज नहीं हैं। उनके पास आधार और राशन कार्ड है? सिब्बल ने कहा हां, लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि मैं आधार को किसी भी चीज के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करूंगा। जस्टिस कांत ने कहा कि ये दस्तावेज वास्तव में यह साबित करेंगे कि आप उस क्षेत्र के निवासी हैं। शुरुआत में जिम्मेदारी आपकी नहीं, बल्कि उनकी है, फिर उन्हें यह सत्यापित करना होगा कि आपका कार्ड असली है या नहीं। उन्हें दस्तावेज दीजिए और उन्हें सत्यापित करने दीजिए। सिब्बल ने कहा कि आधार, राशन कार्ड, ईपिक स्वीकार नहीं किए जा रहे।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उनका कहना सही है कि इन्हें निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अधिसूचना के तहत, इन दस्तावेज़ों को जमा करने की क्या प्रक्रिया है? इस पर सिब्बल ने कहा कि वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज से बाहर कर रहे हैं। ये 2025 के रोल हैं। जस्टिस कांत ने कहा कि हम पूछ रहे हैं कि अगर आप प्रक्रिया को ही चुनौती दे रहे हैं, तो आप कट-ऑफ तारीख पर सवाल उठा रहे हैं. तो आइए इस पर आते हैं कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार है? अगर यह मान लिया जाता है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, तो मामला खत्म।

सिब्बल ने कहा कि यह सही है, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर मैं 2003 के रोल में था, और मैंने गणना फॉर्म दाखिल नहीं किया है, तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा। मुझे इस पर भी आपत्ति है। जस्टिस बागची ने कहा कि नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज देने होंगे। कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि हम जानना चाहते हैं कि आपके जो आरोप हैं वो कल्पना मात्र हैं या फिर उनकी कोई जमीनी हकीकत है। सिब्बल ने कहा कि यही हमारा तर्क है। करोड़ों लोगों के नाम बाहर होने की संभावना है। अक्टूबर में चुनाव हैं, उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? वे अपने जवाब में कहते हैं कि उन्होंने कोई जांच नहीं की। कुल 7.9 करोड़ मतदाता, वे कहते हैं कि 7.24 करोड़ ने फॉर्म भरे हैं, 22 लाख मर चुके हैं (यह बिना जांच के है), 7 लाख पहले ही बाहर हो चुके हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इसका मतलब है कि 7.24 करोड़ जीवित हैं। 22 लाख मर चुके हैं। वे करोड़ों कहां हैं जिनके बारे में आप कह रहे हैं। सिब्बल ने कहा कि 4.96 करोड़ 2003 की मतदाता सूची का हिस्सा हैं। हमारे पास लगभग 4 अंक बचे हैं। जस्टिस बागची ने कहा कि जाहिर है कि एसआईआर में मृत लोगों को हटाया जाएगा। इसमें क्या आपत्ति है। जस्टिस कांत ने कहा कितने लोग बिहार से बाहर चले गए? सिब्बल ने कहा कि वे कहते हैं 36 लाख, जबकि 7 लाख दूसरे राज्यों में नामांकित हैं। इस तरह कुल 65 लाख हटाए गए।


प्रशांत भूषण ने उठाया जानकारी नहीं देने का मुद्दा

वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ने कभी यह नहीं बताया कि यह उन 65 लाख लोगों की सूची है और 65 लाख लोगों में से ये वे हैं जो मर चुके हैं और ये वे हैं जो स्थानांतरित हो गए हैं। उन्होंने जवाब दाखिल कर कहा है कि उन्हें जानकारी देने की जरूरत नहीं है। इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि हमने बीएलए को दिया है, पूरी तरह से झूठा बयान है। अदालत को गुमराह किया जा रहा है।

इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग के पास पूरी जानकारी है। वे कह रहे हैं कि हम आपको जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास जानकारी नहीं है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग के बीएलओ ने ‘अनुशंसित/अनुशंसित नहीं’ लिखा है और हमें एक व्हिसलब्लोअर के ज़रिये दो ज़िलों के संबंध में इनकी सूची मिली है। हमें जो पता चला है वह चौंकाने वाला है, जिन लोगों ने फॉर्म भरे हैं उनमें से 10-12 फीसदी मतदाता अनुशंसित नहीं हैं। इसका आधार क्या है? देश के इतिहास में चुनाव आयोग ने ऐसा पहले कभी नहीं किया।

योगेंद्र यादव ने भी पेश की दलील

सुनवाई के दौरान योगेंद्र यादव ने कहा कि किसी राज्य में वयस्क लोगों की संख्या और वोटर की संख्या को देखना चाहिए। दुनिया में जहां भी सरकार की जगह नागरिक को खुद को वोटर साबित करने को कहा जाता है, वहां बड़ी संख्या में लोग लिस्ट से बाहर होते हैं और ये गरीब लोग होते हैं। योगेंद्र यादव ने कहा कि अगर किसी को चुनाव लड़ना है और 25 सितंबर को उसे बताएंगे कि आपका नाम लिस्ट में नहीं है तो वह क्या करेगा। यह तो सबसे आसान तरीका है प्रतिद्वंद्वी को मुकाबले से बाहर करने का।

योगेंद्र यादव ने कहा कि महिलाओं की बड़ी संख्या है जिन्हें स्थानांतरित बता रहे हैं, जबकि पुरुषों का ज्यादा पलायन होता है। उन्होंने कहा कि 65 लाख लोगों को हटाना बहुत बड़ी बात है। योगेंद्र यादव ने एक महिला और पुरुष को कोर्ट में दिखाया जिन्हें ड्राफ्ट लिस्ट में मृत बताया गया है। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने इसका विरोध किया और कहा कि ये सब कोर्ट के बजाय टीवी स्टूडियो में करें। उन्होंने कहा कि यहां ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे आसमान टूट पड़ा हो। कोर्ट ने भी कहा कि अगर किसी का नाम ड्राफ्ट लिस्ट में छूटा है तो वह फाइनल लिस्ट में आ सकता है। यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है।


वहीं चुनाव आयोग ने अपनी दलील में कहा कि 2003 की मतदाता सूची में पहले से ही 4.96 करोड़ लोग थे। हो सकता है कि उनमें से कुछ की मौत हो गई हो, जीवित लोगों को सिर्फ आवेदन ही नहीं करना, बल्कि उनकी संतानों को भी यह दिखाना होगा कि उनके माता-पिता सूची में हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मान लीजिए कि ए 2003 में मतदाता है, वह जीवित है, और उस समय उसकी आयु 20 वर्ष थी। उसके बच्चे 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं- तो क्या उन्हें दस्तावेज़ दिखाने होंगे? द्विवेदी ने कहा नहीं, 2003 की सूची में शामिल लोगों को दस्तावेज़ दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा कि वह तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहे क्योंकि प्रक्रिया शुरू होने से पहले की मतदाताओं की संख्या, पहले के मृतकों की संख्या और अब की संख्या तथा अन्य प्रासंगिक विवरणों पर सवाल उठेंगे। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कुछ मुद्दों पर सुधारात्मक उपाय जरूरी हैं। अगर आपने किए हैं, तो बहुत अच्छा। अगर नहीं, तो हम देखेंगे। साथ ही जस्टिस सूर्यकांत ने योगेंद्र यादव का धन्यवाद करते हुए कहा कि आपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है। आपकी सहायता के लिए धन्यवाद। मामले में कल फिर सुनवाई होगी।

बिहार में एसआईआर के मसौदा मतदाता सूची एक अगस्त को प्रकाशित की गई थी और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होने वाली है, जबकि विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया करोड़ों पात्र नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित कर देगी। शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई को निर्वाचन आयोग से आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज मानने को कहा था और निर्वाचन आयोग को बिहार में अपनी प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी थी। निर्वाचन आयोग ने हलफनामे में बिहार में मतदाता सूचियों की जारी एसआईआर को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि यह मतदाता सूची से अयोग्य व्यक्तियों को हटाकर चुनाव की शुचिता को बढ़ाता है।

एसआईआर को लेकर जिन लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं उनमें कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल, आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, शरद पवार की एनसीपी (एसपी) से सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डी. राजा, समाजवादी पार्टी से हरेंद्र सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य, अश्विनी कुमार उपाध्याय के नाम शामिल हैं। इनके अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीयूसीएल और नेशनल फेडरेशन फॉर इंडियन वूमेन जैसे कई अन्य नागरिक संस्थाओं और योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है।