महापंचायत में किसानों के सैलाब ने रचा इतिहास, खनौरी बॉर्डर पर उमड़ा पंजाब, अन्नदाता ने मोदी सरकार को दिए संदेश
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि जो मैं लड़ाई लड़ रहा हूं, यह लड़ाई मैं नहीं लड़ रहा। यह तो सिर्फ एक शरीर दिख रहा है लड़ाई लड़ते हुए। यह ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा है।

पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर किसान महापंचायत में उमड़े किसानों के सैलाब ने किसान आंदोलन के इतिहास में एक नई तारीख लिखी है। 40 दिन से अन्न का एक दाना न ग्रहण करने वाले किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के एक आह्वान पर मानो पूरा पंजाब उमड़ आया। खनौरी बॉर्डर की तरफ जा रही हर सड़क पर किसानों का रेला इस बात की तस्दीक कर रहा था कि केंद्र सरकार के लिए अभी भी जाग जाने का वक्त है। केंद्र की सरकार किसी अनहोनी को दावत दे रही है। हर किसान की जुबान पर एक ही सवाल था कि हम कोई दिल्ली की सल्तनत तो नहीं मांग रहे हैं। अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य ही तो मांग रहे हैं। फिर मोदी सरकार को हमसे बात करने में दिक्कत क्या है।

पंजाब के मशहूर सिंगर दिलजीत दोसांझ के साथ मुलाकात का वक्त निकालकर तराने गुनगुनाने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हरियाणा-पंजाब का खनौरी बॉर्डर 4 जनवरी को जगा रहा था। किसानों का इतना सैलाब यहां कभी किसी ने नहीं देखा। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन के 40वें दिन खनौरी बॉर्डर पर एक नया इतिहास रचा गया। खनौरी से तकरीबन 50 किलोमीटर पहले से किसानों के वाहनों की कतारें और जाम कुछ कह रहा था। ट्रैक्टर, मोटर साइकिल, ट्रक, बस, कार और जुगाड़ गाड़ी तक से बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजर्ग सब खनौरी बॉर्डर की तरफ बढ़े जा रहे थे। किसी के हाथ में दूध का कैन था तो किसी के हाथ में गन्ने के रस से भरा कैन था। तमाम गाड़ियों में लंगर के लिए सब्जियां भरी हुई थीं। किसान आंदोलन के प्रति ये लोगों के जज्बात दिखा रहा था। हर कोई इस आंदोलन में अपने तरीके भागीदारी देने की चाहत के साथ जा रहा था।

हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। खनौरी बॉर्डर से पहले 7 किलोमीटर तक हाईवे जाम था। हालात ऐसे थे कि लोगों ने मुख्य पंडाल तक पहुंचने के लिए अपने वाहन वहीं हाईवे पर छोड़ दिए। बावजूद इसके बड़ी तादाद में लोग वहां तक नहीं पहुंच पाए। हर तरफ जज्बा हिलोरें मार रहा था। खनौरी बॉर्डर से पहले हाईवे किनारे मौजूद होटलों ने भी लंगर खोल दिए थे। हर दस कदम पर चाय और खाने के लंगर थे, जहां हांथ जोड़कर प्रसाद लेने की मिन्नत करते हुए लोग खड़े थे। तकरीबन 11 महीने से चल रहे इस किसान आंदोलन से जुड़ी लोगों की भावनाएं और पंजाब के जज्बात समझने के लिए यह लिखना बेहद जरूरी है। वह भी उस स्थिति में जब देश के मुख्य धारा के मीडिया से ये तस्वीरें गायब हैं।

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और किसानों की पूर्ण कर्जा मुक्ति की मुख्य मांग के साथ खनौरी बॉर्डर पर 40 दिन से मरण वृत पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की बिगड़ती हालत किसानों के जज्बात चरम पर ले जा रही है। डल्लेवाल के संबोधन के वक्त हजारों के सैलाब के बावजूद पसरा सन्नाटा इस बात की तस्दीक कर रहा था। शंभू बॉर्डर के साथ खनौरी बॉर्डर पर भी 13 फरवरी से आंदोलन कर रहे किसान सवाल कर रहे थे कि केंद्र की सरकार को हमसे दिक्कत क्या है। खासकर प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को। दिल्ली जाने से रोक कर अपनी बात कहने के हमारे लोकतांत्रिक हक को भी कुचल दिया गया। शंभू बॉर्डर पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान-मजदूर मोर्चा के प्रमुख सरवन सिंह पंधेर का कहना था कि यह महापंचायत केंद्र सरकार को हिलाने वाली है। मोदी सरकार घमंड में है। उनमें सत्ता का नशा चरम पर है। मीदी जी देश के 140 करोड़ लोगों और पंजाब के 3 करोड़ लोगों से बढ़कर नहीं हैं। एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसानों की कर्ज मुक्ति की हमारी मांग उन्हें मननी ही होगी। हम या तो यहीं शहीद हो जाएंगे या अपने हकों की लड़ाई जीत कर जाएंगे। किसान नेता काका सिंह कोटला का कहना था कि खनौरी बॉर्डर पर आज इतिहास रचा गया है। जब हम दिल्ली से 3 कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई जीतकर आए थे तो कहा गया था कि हाथी निकल गया बस उसकी पूछ रह गई है, लेकिन अब समझ आ रहा है कि बस पूछ निकली है अभी हाथी तो रह ही गया है।

अंत में बारी थी जगजीत सिंह डल्लेवाल की, जिन्हें सुनने के लिए किसान बेताब थे। 40 दिन से आमरण अनशन पर बैठे महज हडि्डयों का ढांचा बचे डल्लेवाल को मंच पर स्ट्रेचर से लाया गया। राम-राम कहकर डल्लेवाल ने अपना संबोधन शुरू किया। बेहद कमजोर हो जाने के बावजूद भी उनकी आवाज हौंसले और जज्बे से भरपूर थी। जैसे ही उन्होंने बोलना शुरू किया हजारों के सैलाब के बावजूद एकदम सन्नाटा था। डल्लेवाल ने कहा कि जो मैं लड़ाई लड़ रहा हूं, यह लड़ाई मैं नहीं लड़ रहा। यह तो सिर्फ एक शरीर दिख रहा है लड़ाई लड़ते हुए। यह ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा है। पुलिस ने मुझे यहां से उठाने का प्रयास किया। जब लोगों को पता चला तो पंजाब-हरियाणा से सैकड़ों नौजवान हमारे पास पहुंचे और मोर्चा संभाला। पुलिस हमें उठाने के लिए रात में ही आती है। आज जो लोग मोर्चे पर पहुंचे हैं, यह सिर्फ ऊपर वाले की कृपा है। सरकार जितना मर्जी जोर लगा ले, हम मोर्चा जीत कर ही रहेंगे। सरकार कहती है कि किसानों को समझ नहीं है। ऐसा नहीं है। हमने सब पढ़ा है। हम सब समझते हैं। किसानों की सुसाइड की घटनाओं पर अंकुश लगना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश की गई है कि करीब 4 लाख किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन असल आंकड़ों में अब तक 7 लाख से ज्यादा किसान दम तोड़ चुके हैं। उनके बच्चे तड़प रहे हैं। आगे किसान आत्महत्या न करें, इसके लिए कुछ नहीं किया गया।

डल्लेवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मेरी सेहत को लेकर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डल्लेवाल की जान बहुत कीमती है। मैं इस पर आभार व्यक्त करता हूं, लेकिन जिन किसानों ने आत्महत्या की, उनका कसूर क्या था? मैंने कहा कि जो 7 लाख किसान मरे हैं, उनकी जान भी कीमती थी। किसानों की आत्महत्या रुकनी चाहिए। बीच में गला सूखने पर पानी मांगा। ज्यादा बोलने पर ब्लड प्रेसर बढ़ने की डाक्टरों की हिदायत पर कहा हमें कुछ नहीं होगा। डल्लेवाल ने कहा कि जब हम दिल्ली से लौटे थे, दूसरे राज्यों के नेताओं ने कहा था कि पंजाब 3 कानून वापस करवाकर लौट गया। तब हमने जवाब दिया था कि हमने किसी को धोखा नहीं दिया। मेरा सभी संगठनों से हाथ जोड़कर निवेदन है कि आप सभी एक साथ आकर सरकार के लिए चिंता पैदा कर दो। इससे सरकार को पता चल जाएगा कि यह आंदोलन सिर्फ पंजाब का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। डल्लेवाल ने लोगों से अपील की कि हर गांव से कम से कम एक-एक ट्रैक्टर ट्रॉली जरूर आंदोलन में पहुंचे। इससे मोर्चे को ताकत मिलेगी।

किसान महापंचायत ने केंद्र सरकार के दावे, ये तो मुट्ठी भर किसान हैं, को एक बार फिर खारिज कर दिया। किसानों के जज्बातों ने सरकार को वक्त रहते जाग जाने का संदेश भी दे दिया है। यदि अभी भी केंद्र की सरकार नहीं जागी तो किसी अनहोनी के लिए वह पूर्ण तौर पर जिम्मेदार होगी। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु से भी पहुंचे किसानों की भागीदारी ने इस बात के भी संकेत दे दिए कभी भी ये किसान आंदोलन बड़ा रूप ले सकता है।

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