7 साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट फांक रही धूल! फोरम ने की रिपोर्ट के आधार पर DU प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण की मांग

फोरम का कहना है कि पिछले सात साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर धूल पड़ रही है। विश्वविद्यालय द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं करने पर उन्होंने गहरा रोष व्यक्त किया है और इसकी जांच संसदीय समिति के उच्चाधिकारियों से कराने की मांग की है।

फोटो: Getty Images
फोटो: Getty Images
user

नवजीवन डेस्क

दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने आरक्षण के मुद्दे पर संसदीय समिति को पत्र लिखा है। दरअसल यह है संसदीय समिति दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण की समीक्षा करने, प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण लागू कराने और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण लागू करने का आश्वासन दे चुकी है। फोरम का कहना है कि पिछले सात साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर धूल पड़ रही है। विश्वविद्यालय द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं करने पर उन्होंने गहरा रोष व्यक्त किया है और इसकी जांच संसदीय समिति के उच्चाधिकारियों से कराने की मांग की है। फोरम के मुताबिक डीयू में प्रिंसिपल पदों के विज्ञापन निकाले जा रहे हैं व नियुक्तियां हो रही है लेकिन एससी एसटी व ओबीसी अभ्यर्थियों को आरक्षण दिए बिना यह नियुक्तियां हो रही हैं। यही कारण है कि अब एससी एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति के समक्ष यह गुहार लगाई गई है। संसदीय समिति के अलावा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग व राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की गई है।

फोरम के चेयरमैन डॉ. कैलास प्रकाश सिंह यादव ने बताया है कि संसदीय समिति जब दिल्ली विश्वविद्यालय में आई तो उसने पाया था कि यहां प्रोफेसर के पदों में आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। न ही प्रिंसिपल के पदों में किसी तरह का आरक्षण है। साथ ही पोस्ट बेस रोस्टर को भी यूजीसी व डीओपीटी के निर्देशानुसार लागू नहीं किया जा रहा है। समिति ने इस पर गहरी चिंता जताई।

उनका कहना है कि बाद में प्रोफेसर पदों पर आरक्षण दे दिया गया मगर प्रिंसिपल पदों में आज तक आरक्षण नहीं दिया। अब संसदीय समिति से मांग की गई है कि उनके हस्तक्षेप के आधार पर प्रिंसिपल के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तैयार कर इन पदों पर आरक्षण लागू करते हुए पदों को विज्ञापित किया जाए। विशेष भर्ती अभियान के तहत एससी, एसटी, ओबीसी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाए, लेकिन फोरम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले सात साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट को आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू नहीं किया है, न ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने आज तक प्रिंसिपल के पदों का रोस्टर ही तैयार किया।

डॉ. यादव ने बताया है कि जब यूजीसी गाइडलाइंस 2006 के अनुसार प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण है तो प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी मांग की है कि जिन कॉलेज के ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल बने पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं उन्हें तुरंत हटाकर रोस्टर के अनुसार प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जाए। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मांग की है कि वह अपने दिल्ली सरकार के वित्त पोषित 28 कॉलेजों में आरक्षण लागू करते हुए एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के अभ्यर्थियों की नियुक्ति प्रिंसिपल पदों पर करें।


दिल्ली सरकार के कॉलेजों में 20 से अधिक प्रिंसिपलों के पदों पर स्थायी नियुक्ति होनी है, इन पदों पर ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल लगे हुए है। फोरम के मुताबिक अरबिंदो कॉलेज, राजधानी कॉलेज, शिवाजी, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, भगतसिंह कॉलेज व सत्यवती कॉलेज के अतिरिक्त कई कॉलेजो में प्रिंसिपल के पद आरक्षित बनते हैं। इन कॉलेजों के फिर से विज्ञापन निकालकर आरक्षित पद निकाले। पांच साल से अधिक हो चुके प्रिंसिपलों को हटाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति करें।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia