महाराष्ट्र में 700 करोड़ का फर्जीवाड़ा उजागर, बीजेपी सरकार में फर्जी तरीके से निकाली गई रकम

महाराष्ट्र सरकार ने गुरूवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया है कि सरकारी खजाने से 700 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम अवैध तरीके से निकाली गई है। ये पूरी धांधली साल 2014 में हुई, जब राज्य में बीजेपी की फडणवीस सरकार थी।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

महाराष्ट्र सैकड़ों करोड़ रुपये का बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इसकी जानकारी खुद महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने गुरूवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को अपने जवाब में दिया है। सरकार ने हाईकोर्ट में बताया कि राज्य के सरकारी खजाने से धांधली करके 700 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का फंड अवैध तरीके से निकाला गया है। राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत में इसे सरकारी खजाने में घोटाला बताया।

एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोनी ने जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस आरआई चागला की पीठ को बताया कि अवैध तरीके से निकाली गई ये रकम राज्य की 6 यूनिवर्सिटी के हजारों गैर शैक्षिक स्टाफ के कई पदों के नाम और वेतनमान बदलकर उनपर खर्च की गई। इस पूरी धांधली में कई गैर शैक्षिक पदों का वेतनमान बढ़ाया गया और गलत तरीके से इस प्रस्ताव को मंजूर कर उन्हें सैलरी और अन्य भत्ते दिए गए।

महाधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि इन यूनिवर्सिटीज ने न सिर्फ पदों के नामों में बदलाव किया, बल्कि उनके वेतनमान भी बढ़ा दिए। हालांकि इसमें स्टाफ की ड्यूटी में कोई बदलाव नहीं किया गया। सबसे खास बात ये है कि इसके लिए वित्त विभाग से कोई मंजूरी नहीं ली गई। कुभकोनी ने बताया कि वेतनमान बढ़ाने के साथ ही कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को भत्ते के रूप में लाखों रुपए का भुगतान किया गया। इस तरह यह 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की कुल रकम खर्च की गई।


बता दें कि महाराष्ट्र के उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर शपथ पत्र में बताया है कि सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी, डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी, शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर, नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी, जलगांव, संत गाडगेबाबा यूनिवर्सिटी, अमरावती और गोंडवाना यूनिवर्सिटी, गढ़चिरौली के कई नॉन टिचिंग स्टाफ को इस फर्जीवाड़े से लाभ पहुंचाया गया है।

इस मामले में कोर्ट को महाधिवक्ता ने बताया कि इन यूनिवर्सिटीज ने कई गैर शैक्षिक पदों के नाम में बदलाव का प्रस्ताव भेजा था, जिसके बाद 2014 में तत्कालीन सरकार ने नया स्टाफिंग पैटर्न लागू किया था। हालांकि एक खबर के अनुसार अक्टूबर, 2017 में राज्य के वित्त विभाग को इस मामले पर कुछ शंका हुई, जिसके बाद विभाग ने उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग को मामले की जांच के निर्देश दिए। जांच में धांधली का खुलासा होने पर सरकार ने कर्मचारियों को उन्हें मिले ज्यादा पैसों को वापस करने के निर्देश दिए, जिसके खिलाफ कुछ स्टाफ ने याचिका दाखिल कर दी, जिस पर सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने उक्त खुलासा किया।

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