मोदी सरकार की फ्री ‘सौभाग्य’ योजना गरीबों को पड़ी भारी, अब वसूली के लिए योगी सरकार ने जारी किए फरमान

उत्तर प्रदेश में बिजली निगम ने दो दर्जन से ज्यादा कंसलटेंट नियुक्त कर रखा है, जिनपर हर माह 100 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो रहे हैं। घाटे से उबरने के लिए वीडियो काॅन्फ्रेसिंग के जरिये बैठकों के लिए एजेंसी को साल में करीब 50 करोड़ का भुगतान किया जा रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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लोकसभा चुनाव से ऐन पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीबों के घरों में मुफ्त बिजली कनेक्शन देने की योजना- ‘सौभाग्य’ की घोषणा की थी। यह ऐसी फ्री योजना है जिसके यूपी में हजारों रुपये के बकाएदार हो गए हैं और अब योगी सरकार इनका हुक्का-पानी बंद करने पर आमादा है। दिलचस्प बात ये है कि इस वसूली योजना की शुरूआत खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर से हो गई है। गोरखपुर के डीएम के फरमान के बाद बिजली बकाया नहीं जमा होने पर लोगों को आय प्रमाणपत्र से लेकर जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र सरीखी 26 सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा।

इस योजना के तहत मार्च, 2019 तक यूपी के 97 लाख परिवारों को फ्री में बिजली कनेक्शन दिया गया था। प्रदेश सरकार के अनुरोध पर योजना को 31 दिसंबर तक बढ़ाते हुए 12 लाख और गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। फ्री के चक्कर में गरीबों ने कनेक्शन तो ले लिया लेकिन अब हजारों रुपये का बिल उनके गले की फांस बन गया है।

ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार का दावा है कि करीब एक करोड़ गरीब परिवारों को सौभाग्य योजना का लाभ मिला है। लेकिन वह यह नहीं बता रहे कि ग्रामीण इलाकों से कुल खर्च बिजली मूल्य की तुलना में बमुश्किल 7 से 8 फीसदी ही वसूली हो रही है। गोरखपुर में 6 लाख ग्रामीण उपभोक्ताओं में से सिर्फ 50 से 60 हजार उपभोक्ता ही बिजली बिल का भुगतान कर रहे हैं। नतीजतन, यहां निगम का घाटा 900 करोड़ के पार पहुंच चुका है।

अब वसूली को लेकर गोरखपुर डीएम के बिजयेन्द्र पांडियन ने अजीबोगरीब फरमान जारी किया है। आदेश के मुताबिक, पहली अक्तूबर से जिलावासियों को जाति प्रमाणपत्र, आय प्रमाणपत्र, अधिवास प्रमाणपत्र, हैसियत प्रमाणपत्र और खतौनी की नकल तभी मिलेगी जब बिजली का बिल जमा होगा। यह आदेश जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र पर भी प्रभावी होगा। बिल बकाया होने पर न तो नगर निगम में हाउस टैक्स जमा होगा और न ही विकास प्राधिकरणों में संपत्तियों की खरीद-फरोख्त कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त पासपोर्ट, पैनकार्ड, प्रधानमंत्री आवास योजना, एफएसएसएआई, शस्त्र लाइसेंस, खनन के पट्टे, आबकारी लाइसेंस, स्टाम्प लाइसेंस और वाहन पंजीकरण के लिए भी बिजली बिल का अपडेट होना जरूरी है।


वैसे, सौभाग्य योजना के ऐसे हजारों दुर्भाग्यशाली उपभोक्ता हैं जिनके पास बिना लाइट-पंखा चलाए ही हजारों रुपये का बिल पहुंच गया है। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र- वाराणसी में सौभाग्य योजना के 1,25,348 लाभार्थियों में से 60 फीसदी से अधिक बिजली निगम की मनमानी से परेशान हैं। वाराणसी के करनाडांडी, मेहंदीगंज, कचहरिया, हरिनामपुर सरीखे दर्जन भर गांव में बिना आपूर्ति के ही ग्रामीणों को बिजली बिल मिला है। राजातालाब के गौरीशंकर का दर्द है कि कनेक्शन लगने के दो साल बाद भी बिजली आपूर्ति नहीं बहाल हुई है। वहीं कचहरिया गांव के कल्लू को निगम ने बिना आपूर्ति के ही 15 हजार का बिल थमा दिया है।

घाटा 85 हजार करोड़ तक पहुंच जाने की वजह से बिजली निगम रोज नए फरमान जारी कर रहा है। पिछले दिनों आदेश आया कि घरेलू उपभोक्ताओं से 45 दिन के औसतन बिल के बराबर एडवांस रकम वसूली जाए ताकि बिजली खरीद में दिक्कत नहीं हो। इसी क्रम में बीते 4 सितंबर को बिजली मूल्य में 8 से 12 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर दी गई। किसानों के बिल में 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है। वहीं शहरी गरीबों को अभी तक 100 यूनिट खर्च पर 3 रुपये की दर से भुगतान करना होता था, इसे सीमित कर 50 यूनिट कर दिया गया है।

कंसलटेंट पर हर माह 100 करोड़ रुपये खर्च

बिजली निगम ने दो दर्जन से अधिक कंसलटेंट की नियुक्ति कर रखी है। इन पर हर महीने 100 करोड़ से अधिक खर्च हो रहे हैं। प्रमुख सचिव ऊर्जा सप्ताह में पांच दिन वीडियो काॅन्फ्रेसिंग कर रहे हैं जिनमें घाटे से उबरने के लिए नए-नए प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन होता है। प्रेजेंटेशन करने वाली एजेंसी को साल में करीब 50 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा रहा है।

ऑल इंडिया पावर इंजीनियरिंग फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि सौभाग्य जैसी योजनाओं के माध्यम से गांव तक बिजली पहुंचाने में सरकार सब्सिडी देती है। सरकार का निगम पर 15 हजार करोड़ की सब्सिडी बकाया है। वहीं सरकारी दफ्तरों का 11 हजार करोड़ बकाया है। सरकारी कंपनियों की तुलना में निजी कंपनियां 1.53 रुपये प्रति यूनिट अधिक वसूलती हैं। सरकार वितरण को अपने पास और आपूर्ति को निजी हाथों में देना चाहती है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि उपभोक्ता निजीकरण का विरोध न करे।


घरों में स्मार्ट मीटर का फरमान

बिजली निगम लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, गोरखपुर, कानपुर समेत 13 जिलों में 40 लाख स्मार्ट मीटर लगा रहा है। लेकिन ये काफी तेज चल रही हैं। लखनऊ में अभी तक 90 हजार स्मार्ट मीटर लगने हैं। घरों में लगे 5 हजार से अधिक मीटर तेज चल रहे हैं। वहीं वाराणसी में स्मार्ट मीटर को लेकर पिछले एक महीने में 200 से अधिक मामले उपभोक्ता फोरम में पहुंच चुके हैं। बिजली निगम ने प्रदेश भर में जलकल और जलनिगम के ट्यूबवेल में प्री-पेड मीटर लगाने का फरमान जारी किया है।

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