कौसानी में गांधी: ‘अनासक्ति आश्रम’ ने कुमाऊं में जगाई थी आजादी की चेतना

आजादी की चेतना जगाने के लिए कुमाऊं के कई इलाकों में महात्मा गांधी घूमे। लेकिन कौसानी उनको इतना भाया कि उन्होंने यहां लंबा प्रवास किया। बापू 24 जून 1929 को कौसानी पहुंचे और 7 जुलाई तक यहां रुके। 14 दिन के इस प्रवास के दौरान कुमाऊं में आजादी के आंदोलन को जो धार मिली, वह बढ़ती चली गई।

फोटो: दिनेश सिंह नेगी
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दिनेश सिंह नेगी

महात्मा गांधी ने 14 दिन का लंबा प्रवास किया था कौसानी में

बापू से जुड़ी स्मृतियों को सहेजे है यह आश्रम

वो आजादी की लड़ाई का समय था। अंग्रेजी ताकत से देश को स्वतंत्र कराने की बढ़ती छटपटाहट का दौर। एक तरफ विरोध की हिंसक अभिव्यक्ति तो दूसरी ओर अहिंसक प्रतिकार। महात्मा गांधी ने जब अहिंसा को हथियार बनाया तो इसकी एक प्रयोगशाला कुमाऊं भी रहा। बापू ने कौसानी को कर्मस्थली बनाया और देखते-देखते पूरे कुमाऊं में अहिंसा एक आंदोलन बन गई। महात्मा गांधी के विचारों ने, उनके भावी सपनों ने और बगैर कोई हथियार थामे आंदोलन में कूदने की प्रेरणा ने लोगों में इतनी ऊर्जा भरी कि उन्होंने लाठियां खाईं, जेल गए, मगर स्वाधीनता पाने का हौसला नहीं खोया। कौसानी से बहुत सी यादें जुड़ी हैं। प्राकृतिक खूबसूरती से भरे इस इलाके को महात्मा गांधी ने ही भारत का मिनी स्विट्जरलैंड कहा था। यहीं रहते हुए बापू को अनासक्ति योग पुस्तक लिखने की प्रेरणा भी मिली।

आजादी की चेतना जगाने के लिए कुमाऊं के कई इलाकों में महात्मा गांधी घूमे। लेकिन कौसानी उनको इतना भाया कि उन्होंने यहां लंबा प्रवास किया। बापू 24 जून 1929 को कौसानी पहुंचे और 7 जुलाई तक यहां रुके। 14 दिन के इस प्रवास के दौरान कुमाऊं में आजादी के आंदोलन को जो धार मिली, वह बढ़ती चली गई। सल्ट से लेकर बौरारो घाटी तक, नैनीताल से लेकर पिथौरागढ़ तक आजादी की मांग की आवाज मुखर होती गई। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा उस समय बुलंद था और इसमें कुमाऊं ने भी अपनी आवाज मिलाई। उस समय जिस आजादी की चेतना का प्रसार हुआ, वह आज तक लोगों को ताकत दे रही है। यहीं पर महात्मा गांधी ने गीता के उपदेशों को सरल शब्दों में उकेरने का भी काम किया। सबसे खास बात यह है कि बापू की कुमाऊं में सर्वाधिक यादों को समेटने वाला कौसानी ही है। जिस जगह वह रहे, उसे अब अनासक्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है।

1966 में मिला अनासक्ति नाम

कौसानी में जहां महात्मा गांधी ने प्रवास किया था, वहां पहले जिला पंचायत का भवन था। भवन निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था। महात्मा गांधी के जाने के बाद यहां प्रार्थना सभा होने लगी। इसके बाद नए भवन का निर्माण किया गया। गांधी स्मारक निधि की ओर से 1966 में इस बंगले को ‘अनासक्ति आश्रम’ का नाम दिया गया। ‘अनासक्ति’ का शाब्दिक अर्थ आसक्ति यानी राग-द्वेष से मुक्ति है। इस आश्रम में बापू के जीवन-दर्शन को सहेजने का प्रयास किया गया है। उनसे जुड़ी यादों के रूप में कुछ किताबें हैं, कुछ बर्तन हैं, कुछ तस्वीरें हैं और कुछ कपड़े। लोग जब आश्रम पहुंचते हैं तो आजादी के दौर की याद ताजा हो जाती है और उसी जज्बे के साथ लौटते हैं।

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