फ्री में मिला राशन दो, बदले में लो नकद या प्लास्टिक का सामान, वापस क्रय केंद्रों पर पहुंच रहा है मुफ्त में बंटा अनाज

कोटे पर मिलने वाला अतिरिक्त अनाज गांव-गांव में बिक रहा है। गांव के गल्ला कारोबारी गेहूं और चावल को 1,300 से 1,400 रुपये क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं जो वापस मंडी में आसानी से 1,700 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक जा रहा है।

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के संतोष

फ्री राशन व्यवस्था ने अभी हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में बीजेपी को वोट दिलाए। जब रोजगार न हों, तो ऐसी व्यवस्था का विरोध भी उचित नहीं। लेकिन यह भी देखने की जरूरत है कि वितरण के बाद इस राशन का सही उपयोग हो भी रहा है या नहीं।

ऐसे में, अलीगढ़ शहर से सटे एक गांव में बीते दिनों कोटेदार से फ्री राशन लेने के बाद ग्रामीण जो कुछ करते दिखे, उस पर नजर डालने की जरूरत है। यहां ग्रामीण अनाज का एक हिस्सा घर ले जाने के बजाए गांव के ही एक किराना दुकानदार के यहां तौल कराते दिखे। अनाज बेचने के बाद मिली रकम से कुछ ने रोजमर्रा की जरूरत के समान खरीदे, तो कुछ नकद लेकर चलते बने। महज 4 घंटे में दुकानदार के पास करीब दस क्विंटल गेहूं और चावल जमा हो चुके थे।

फ्री राशन को लेकर ऐसी तस्वीरें सिर्फ यही नहीं दिख रही। गाजियाबाद से गोरखपुर और कानपुर से लेकर कासगंज तक एक-जैसी तस्वीर है। गाजियाबाद के एक गांव के प्रधान मोहर सिंह बताते हैं कि ‘30 फीसदी से अधिक गरीबों के लिए फ्री राशन बड़ी मदद है। इतनी ही संख्या ऐसे लोगों की भी है जो पेट भरने के बाद बचे अनाज को बेचकर महंगाई के इस दौर में रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। लेकिन बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जिनके लिए दवा से लेकर अन्य जरूरतों का इंतजाम अनाज बेच कर हो रहा है।’

फ्री राशन से हो रही काली कमाई

फ्री राशन को लेकर प्रदेश के सभी 75 जिलों में कहानी एक जैसी ही है। मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर से लेकर आसपास के कई जिलों में तो फ्री राशन को धंधेबाजों ने काली कमाई का जरिया बना डाला है। संगठित धंधे में बड़े अनाज माफियाओं की सहभागिता है। गोरखपुर में इन्हीं धंधेबाजों ने 700 से अधिक लोगों को वेतन पर रखा है जो गांव-मोहल्लों में फेरी लगाकर अनाज के बदले प्लास्टिक के उत्पाद देते हैं। शहर के पादरी बाजार और गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में धंधेबाजों ने ठिकाना बना रखा है। गीडा की एक फैक्ट्री में तैयार प्लास्टिक के टब, मेज, कुर्सी, बाल्टी आदि को अनाज के बदले दिया जाता है।

उन्नाव के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका आभा श्रीवास्तव ने बीते दिनों गेहूं और चावल के बदले स्टूल लिया है। वह दलील देती हैं कि ‘महीने में दो बार 20-20 किलोग्राम गेहूं मिलता है। महीने का खर्च 20 किलो आटे का है। ऐसे में बचे हुए गेहूं और चावल के बदले कुछ मिल जा रहा है तो बुरा क्या है? 20-25 किलोग्राम अनाज कहां खर्च करें?’ वहीं फेरी लगाने वाले बिहार के बेतिया जिले के रमेश कुमार चंद मिनटों में पूरा खेल समझा देते हैं: ‘मालिक दो विकल्प देता है। रहना-खाना चाहिए तो रोज 250 रुपये मिलेंगे। नहीं तो 500 रुपये। 400 से अधिक लोग दिहाड़ी पर काम करते हैं तो करीब 300 लोगों को पादरी बाजार और आसपास के मोहल्लों में रखा गया है।’


फ्री में मिला राशन दो, बदले में लो नकद या प्लास्टिक का सामान, वापस क्रय केंद्रों पर पहुंच रहा है मुफ्त में बंटा अनाज

फ्री अनाज के बदले प्लास्टिक का सामान

ये खेल सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, प्रदेश के सभी जिलों में चल रहा है। बस, धंधे का तरीका बदल जा रहा है। जौनपुर, मिर्जापुर आदि जिलों में यह धंधा वाराणसी को केंद्र बनाकर किया जाता है। फैक्ट्रियों में खराब क्वालिटी के प्लास्टिक को रिसाइकिल कर बाल्टी, टब, कुर्सी आदि तैयार किया जाता है। जौनपुर में ऑटो से गांव-गांव घूमकर अनाज के बदले प्लास्टिक के समान देने वाले घनश्याम यादव बताते हैं कि ‘5 किलो गेहूं या चावल के बदले में एक सामान दे दिया जाता है। रोज पांच से छह क्विंटल अनाज जमा हो जाता है जिसे मालिक के गोदाम तक पहुंचा दिया जाता है।’ जाहिर है, धंधेबाज एक फेरीवाले से रोज 5 से 8 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं।

'लीकेज रोकने पर ध्यान दे सरकार'

आर्थिक मामलों के जानकार प्रो.अजय कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ‘जरूरतमंदों को फ्री राशन अच्छी योजना है। इस पर करीब 3.40 लाख करोड़ खर्च हो रहा है। सरकार की एजेंसियों को देखना होगा कि योजना जरूरतमंदों तक पहुंच रही है या बड़े हिस्से पर धंधेबाजों का कब्जा है क्योंकि टैक्स देने वालों को फ्री वाली योजना के एवज में बड़ी कीमत अदा करनी पड़ रही है।’ वहीं आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल कुमार राय कहते हैं कि सामने आया है कि बड़ी संख्या में अमीर योजना में सेंधमारी कर फ्री राशन ले रहे हैं। कोटेदारों ने फर्जी राशन कार्ड बनवा रखा है। जब तक व्यवस्था में लीकेज रहेगा, तब तक नए-नए धंधे उजागर होते रहेंगे।

वापस क्रय केंद्र पर पहुंच रहा 'फ्री राशन'

कोटे पर मिलने वाला अतिरिक्त अनाज गांव-गांव में बिक रहा है। गांव के गल्ला कारोबारी गेहूं और चावल को 1,300 से 1,400 रुपये क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं जो वापस मंडी में आसानी से 1,700 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक जा रहा है। बाराबंकी जिले के गल्ला कारोबारी महेश अग्रवाल का कहना है कि ‘गेहूं फ्लोर मिल तो चावल राइस मिल वाले खरीद लेते हैं। एक क्विंटल अनाज के बदले 100 रुपये की बचत हो जाती है।’ गल्ला काराबोरी स्वीकार करते हैं कि ‘गांव-कस्बों में बिकने वाला गेहूं और चावल दोबारा क्रय केंद्रों पर पहुंच रहा है। बिचौलियों के माध्यम से आने वाला गेहूं क्रय केंद्रों पर 2,015 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक जा रहा है। गांव से शहर और क्रय केंद्रों पर धंधेबाजों की पूरी चेन है जो गरीबों का राशन दोबारा क्रय केंद्रों तक पहुंचा रहे हैं।’

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