महाकुंभ से ग्राउंड रिपोर्ट: कहां है विंद्रावती, लीला देवी-बुद्धदेव का क्या हुआ, दुर्गाबाई का 'डर' कब खत्म होगा?
महाकुंभ में मची भगदड़ के 4 दिन बाद भी सैकड़ों की संख्या में अभी भी लोग पोस्टमॉर्टम हाउस, खोया पाया केंद्र, पुलिस थाना, अस्पताल और न जाने कहां कहां अपनों को ढूंढ रहे हैं। लोग उस बुरे वक्त को भी याद कर सहम जा रहे हैं।

प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या की रात हुई भगदड़ मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। सवाल न सिर्फ भगदड़ को लेकर बल्कि उस भगदड़ में जान गंवाने वालों को लेकर भी है। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि तीन जगह हुई भगदड़ में मरने वालों का आंकड़ा सिर्फ 30 ही कैसे? जबकि कई प्रत्यक्षदर्शी और यहां तक की अखबार और न्यूज चैनल भी मौत के आंकड़ों में झोल बता रहे हैं। उधर सैकड़ों की संख्या में अभी भी लोग पोस्टमॉर्टम हाउस, खोया पाया केंद्र और न जाने कहां कहां अपनों की तलाश में हैं। कोई प्रशासन के मिस मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो कोई उस वक्त को कोस रहा है जब उन्होंने कुंभ आने का फैसला किया था।
नवजीवन ने कुंभ क्षेत्र में ऐसे ही कई लोगों से बात की जो भगदड़ के बाद से लापता हुए अपनों की तलाश में पिछले 4 दिनों से 'खोया पाया केंद्र', अस्पतालों और पोस्टमॉर्टम हाउस का चक्कर लगाकर ऐड़ियां घिस रहे हैं।
29 जनवरी की तड़के महाकुंभ क्षेत्र में मची भगदड़ के दौरान झारखंड से आईं लीला देवी अपनों से बिछड़ गईं। काफी ढूंढने के बाद जब कहीं पता नहीं चला तो उनके साथ आए गांव के लोगों ने उनके बेटे को जानकारी दी। इस पर उनके बेटे अपने फुफेरे भाई के साथ मां को ढूंढने के लिए मेला क्षेत्र पहुंचे हैं। वह हाथों में पोस्टर लेकर पैदल चलते हुए मां को ढूंढ रहे हैं। वह हमसे अपने दर्द को बयां करते करते रोने भी लगे।

ये कहानी सिर्फ लीला देवी की ही नहीं है, संतकबीर नगर से आईं विंद्रावती के पति भी उस घड़ी को कोसते हैं जब उनकी पत्नी उनसे भगदड़ में बिछड़ गई। आंखों में आंसू और कई किलोमीटर अपनी पत्नी विंद्रावति की तलाश में सेक्टर 4 में बने 'खोया पाया केंद्र' पहुंचे राम सिंह ने भी लगभग हार मान ली है। वो कहते हैं कि 29 जनवरी को पीपा पुल पर मची भगदड़ में मेरी पत्नी मुझसे बिछड़ गई, अब कहां गई हैं ये कोई नहीं जानता, आज तीन दिन बाद भी उसका कोई पता नहीं चल रहा है।
विंद्रावती के पति बताते हैं कि उन्होंने कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी जहां पत्नी को ना ढूंढा हो, उन्होंने कहा कि मैंने तमाम खोया पाया केंद्र, पुलिस थाना, अस्पताल यहां तक की कई पार्किंग के भी चक्कर लगा लिए लेकिन पत्नी का कोई अता पता नहीं है। 'प्रशासन के सहयोग' के सवाल पर वो फफक फफक कर रो पड़े। उन्होंने कहा कि मैं प्रशासन के हाथ जोड़ता हूं कि वो मेरी पत्नी को ढूंढने में मेरी मदद करें। मेरा पूरा परिवार परेशान है। बार बार पत्नी विंद्रावति का नाम लेते हुए वो कहते हैं कि अब मेरी उम्मीदे पूरी तरह से टूट चुकी हैं।

मध्यप्रदेश के नूपुर से आए 70 साल के जय सिंह भी इसी भगदड़ में कहीं बिछड़ गए हैं। 29 तारीख को जय सिंह एक बस में अपने गांव वालों ओर कुछ कुछ साथियों के साथ आए थे, मेले में मची भगदड़ के बाद से उनका भी कुछ अता पता नहीं है। खबर मिलने के बाद उनका बेटा और दामाद उनको ढूंढ रहे हैं। बच्चों ने भी पूरा प्रयागराज छान मारा लेकिन पिता का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। जय सिंह के बेटे का कहना है यहां कोई सुविधा सरकार ने नहीं दी है, आंखों में आंसू के साथ बेटे ने कहा कि बस मेरे पापा मिल जाएं।

बिहार के जहानाबाद के बंधु गंज ग्राम से आए बुद्धदेव यादव भी पीपा पुल पर 29 तारीख की भगदड़ में अपनी पत्नी से बिछड़ गए और अब तक उनका कुछ पता नहीं लग पाया है, कुछ साथी उनके साथ और थे जिनके साथ पत्नी गांव पहुंच गई अब उनके बेटे प्रयागराज में अपने पिता की तलाश कर रहे हैं।
बेटे का कहना है कि मेरी मम्मी का फोन मेरे पास आया था कि पुल पर भगदड़ मची है और मैं तुम्हारे पापा से बिछड़ चुकी हूं, बेटे ने कहा कि मां ने रोते हुए बताया कि वहां सब दब रहे थे मुझे पापा नहीं दिखाई दिए मैं एकदम अलग हो गई। मां ने बेटे को जानकारी दी कि वो सेक्टर 21 में खड़ी है, बेटे ने कहा मैंने मां से कहा कि आसपास किसी से बात करो, किसी से बात करने के बाद मुझे पता चला कि ये भगदड़ कितनी बड़ी थी।
बुद्धदेव यादव का बेटा भी भावुक हो गया और भारी आवाज के साथ कहने लगा कि मैं हर जगह पापा को ढूंढ चुका हूं, अब एक आखिरी बार मोर्चरी में ढूंढने जा रहा हूं, गहरी सांस लेते हुए बेटे ने कहा कि मेरे पापा कहीं नहीं मिल रहे मुझे डर लग रहा है कि वह अब मोर्चरी में ना हो।

सेक्टर 4 के खोया पाया केंद्र में हमें ऐसे कई लोग मिले जिनके आखों में अपनों के खोने का दर्द साफ दिख रहा था। मध्यप्रदेश के दमोह जिला से आईं दुर्गाबाई भी कहीं एक कोने में मायूस बैठी गेट की तरफ टकटकी लगाए अपनो का इंतजार कर रही है। दुर्गाबाई भी 29 तारीख को अपने पांच साथियों से भगदड़ में बिछड़ गई। उस खौफनाक मंजर को बताते हुए दुर्गाबाई भी भावुक हो गई, और एक अजीब सा डर जो उनके मन में उसका भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि एकदम से ना जाने कैसे भगदड़ मची और सब अलग-अलग हो गए, मेरा भी साथ उन लोगों से छूट गया, तीन दिन से इन्हीं कपड़ों में मैं यहां पड़ी हूं, ना नहाई हूं, ना मैंने कपड़े बदले हैं। दुर्गाबाई कहती हैं कि मुझे नहीं पता मेरा क्या होगा, ना जानें मेरा परिवार मिलेगा भी की नहीं।

ये सिर्फ एक लीला देवी, विंद्रावती, दुर्गाबाई या बुद्धदेव यादव की कहानी नहीं है बल्कि ऐसे हजारों लोग अभी भी कुंभ क्षेत्र में एक उम्मीद के साथ अपनों की तलाश में दर दर भटक रहे हैं।इनमें से ज्यादातर लोग वो हैं जो 29 जनवरी तड़के कुंभ में मचे भगदड़ में या तो कहीं दब गए थे या प्रशासन की लापरवाही के चलते बिछड़ गए। लोगों का कहना है कि प्रशासन ना पहले मदद कर पाया और ना अब करने को तैयार है। कोई इस आस में है कि आज नहीं तो कल शायद उसका अपना मिल जाए, तो कोई जिंदा ना सही मौत की खबर को भी स्वीकारने को तैयार है।
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