ग्राउंड रिपोर्टः पूरे राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर, महिला सीएम के बावजूद आधी आबादी की हालत सबसे बदतर

राजस्थान में 7 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। राज्य पूरी तरह से चुनावी रंग में रंग चुका है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक सत्ता विरोधी लहर अपने चरम पर है। लोगों का कहना है कि ‘महारानी’ जितनी जल्दी चली जाए, उतना अच्छा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आस मोहम्मद कैफ

सुबह 5 बजे राजधानी जयपुर के सिंधी कैम्प बस अड्डे से सांगानेरी गेट जाते हुए 40 वर्षीय ऑटो ड्राइवर श्रीमोहन से राज्य में चुनाव के हालात पूछने पर उसने कहा कि इस बार सरकार बदलने की जल्दबाजी है। श्रीमोहन ने कहा कि महारानी जितनी जल्दी चली जाए अच्छा है, उनके खिलाफ लहर है। ये अलग बात है सड़कों पर उनके खिलाफ कहीं कोई पोस्टर या बैनर दिखाई नहीं देते और जयपुर से अजमेर के 135 किमी के सफर में रास्तों पर सिर्फ बीजेपी के झंडे और होर्डिंग दिखाई देते हैं।

इस बारे में पूछने पर स्थानीय निवासी सचिन मेघवाल कहते हैं, “भले ही आपको प्रचार में कांग्रेस दिखाई न दे मगर लोगों के दिलो में बस एक ही बात है और वो है महारानी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारना।” एक और स्थानीय निवासी बिट्टू कहते हैं, “वसुंधरा राजे सरकार में गोवंश को लेकर किये गए सभी वादे झूठे साबित हुए, गाय सड़कों के किनारे आवारा घूमती और पॉलिथीन खाती रहती हैं। यहां गोशालाओं के नाम पर बड़ा गड़बड़झाला हुआ है। महारानी का आचरण ईमानदाराना नहीं रहा है। उन्होंने अपने लोगों को लाभ पहुंचाया और आम जनता को बुरी तरह से नजरंदाज किया।”

हाल ही में जयपुर के एक स्थानीय अखबार में राज्य की बीजेपी सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का एक इंटरव्यू छपा है, जिसमें उन्होंने औरत होने के कारण खुद के कमजोर होने का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि महिला होने की वजह से वो रात 8 बजे के बाद किसी से मिल नहीं पाती थीं। उन्होंने कतहा कि वो इस बात की इजाजत नहीं दे सकतीं कि लोग उनसे 10 बजे के बाद भी मिलने आएं, क्योंकि उनका भी परिवार है।

आगे बस से सफर के दौरान बस में बहुत सी महिलाएं दिखती हैं, जो पूरी तरह घूंघट में छिपी हैं। घूंघट राजस्थान की संस्कृति है, आप उनका चेहरा नहीं देख सकते और न ही वो किसी गैर से बात करती हैं। घूंघट में ही उनकी फोटो लेने से उनके साथ मौजूद पुरुष साफ इंकार कर देते हैं, लेकिन वे कहते हैं, “महारानी वसुंधरा महिला है यह बात तो सच है, लेकिन वो यहां की बहू हैं और बहुओं का घूंघट में रहना ही अच्छा है।”

इसी बस में सफर कर रहीं दिल्ली की तीन लड़कियों ने उछल-कूद मचा रखा है। तीनों का नाम प्रीति सिंह, शैफाली गुप्ता और प्राप्ति मिश्रा है। इनमें से प्रीति सिंह बताती हैं कि जिस राज्य की मुख्यमंत्री को खुद को घूंघट में रखना अच्छा लगता हो वहां महिलाओं के मुख्यधारा में आ जाने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। शैफाली कहती हैं कि राजस्थान में कोटा, जयपुर और जैसलमेर में बाहरी लोगों की आवाजाही बहुत ज्यादा है। इनमें बहुत सारी लड़कियां होती है और ज्यादातर मॉडर्न हैं।

राजस्थानी महिलाएं दुनिया भर से आई इन लड़कियों को देखती होंगी और अंदर से उनका मन कसमसाता होगा। लेकिन हम स्थानीय महिलाओं से यह सवाल पूछने का साहस नहीं कर पाते हैं। यह अलग बात है कि पुष्कर के रास्ते में कई महिलाएं लड़कियां तोड़ती-बीनती और सामान सिर पर ढोती मिल जाती हैं।

इसी बस से अपनी बेटी को कॉलेज छोड़ने जा रहे इटावा के सुरेश यादव कहते हैं, “जिस राज्य में महिलाएं इतनी अधिक कैद में हैं, वहां की महिला मुख्यमंत्री को खुद को एक कमजोर औरत बताना शोभा नहीं देता। यह बेहद नकारात्मक है, ऐसी सरकार को बदल जाना चाहिए।”

रास्ते में दूदू विधानसभा क्षेत्र के राजेश भाटी मिल जाते हैं। राजेश भाटी एक ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं। उनके मुताबिक, “मोदी और वसुधंरा के राज ने राजस्थान की बुरी हालत कर दी है। यहां बहुत अधिक मंहगाई है और अब टूरिस्ट भी कम आने लगे हैं। सरकार ने अपने लोगों का पेट पूरी तरह भर दिया। यहां भ्रस्टाचार चरम पर पहुंच गया है।”

राजस्थान में खनन भी एक बड़ा मुद्दा है। राजेश एक वीडियो दिखाते हैं, जिसमें वसुंधरा राजे अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्हें लोगों को धार्मिक मामलों में उलझाने का निर्देश दे रही हैं, जिससे उन्हें बजरी खनन के बारे में सवाल पूछने का मौका न मिले। वसुंधरा सरकार पर अपने लोगों को खनन की छूट देकर अवैध तरीके से धन इकट्ठा करने का आरोप है। खनन वाले इलाकों में सड़कों पर अभी भी गधे बजरी और रेत ढोते हुए दिख जाते हैं।

अजमेर पश्चिम विधानसभा के भाटी मोहल्ले में हमें 87 साल की रामरती मिलती हैं, जिन्हें घूंघट से बाहर रहने की इजाजत है। रामरती कहती हैं, “महारानी की सरकार बदल जानी चाहिए, क्योंकि महार पोता सोलहवीं क्लास पढ़ लिया मगर नौकरी नहीं मिली।”

उनके पास में उदास खड़े नरेश की कुछ दिन पहले ही शादी हुई है। बेरोजगारी से झल्लाए वह सवाल पूछते ही भड़क जाते हैं। वो कहते हैं, “मीडिया ने सब बिगाड़ कर रख दिया है। मीडिया बेरोजगारी और जनता को हो रही परेशानियों को नहीं दिखाता है। टीवी पर सब मोदी का गुणगान करते हैं और हिन्दू-मुसलमान और मंदिर-मस्जिद की ही बातें करते हैं। कोई नहीं पूछता कि रोजगार कहां है। हम बस यह सरकार बदलना चाहते हैं।”

अजमेर में एक बच्चों के डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर कुछ महिलाएं सड़क किनारे अपने बच्चों को गोद में लिए बैठी नजर आती हैं। पहली बार तो देखने पर यह भ्रम हो जाता है कि ये महिलाएं गरीब भिखारिन हैं, लेकिन करीब जाकर पता चलता है कि ये तो डॉक्टर से अपने बच्चों का इलाज कराने आई हैं। राजस्थान में औरतों का नीचे जमीन पर कहीं भी बैठ जाना आम बात है। उन्हें अपने घरों में भी पुरुषों के बराबर में बैठने की इजाजत नही है। ना ही वे तेज आवाज में बात कर सकती हैं और किसी परपुरुष से तो घर के पुरुषों की इजाजत के बिना तो बोल भी नहीं सकती हैं। इसलिए यहां हमारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता है!

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