गुजरात: क्या हीरों से होगी सूरत में चकाचौंध?

मुंबई से हीरा बाजार को सूरत शिफ्ट करने के गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं और हीरा व्यापारियों को सूरत से काम करने के लिए लुभाया जा रहा है। सूरत डायमंड वर्कर्स यूनियन का दावा है कि पिछले एक साल के दौरान 30 से अधिक कारीगरों ने आत्महत्या की है।

फोटो सौजन्य : सूरत डायमंड बोर्स की वेबसाइट से
फोटो सौजन्य : सूरत डायमंड बोर्स की वेबसाइट से
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सुजाता आनंदन

हीरा व्यापार अभी जिस तरह की अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रहा है, उसे देखते हुए दिसंबर, 2023 को सूरत में दुनिया के सबसे बड़े हीरा बाजार का उद्घाटन समय के लिहाज से सही नहीं दिखता। 

700 एकड़ में फैली 2015 की यह परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी इमारत पेंटागन को मात देती है। कहा जाता है कि 17 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया था, तब तक इसकी केवल 27 इकाइयां बेची जा सकी थीं। बिल्डरों को 631 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया जाना है और सूरत जिला अदालत ने प्रशासकों को अदालत में विवाद के निपटारे तक 100 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जमा करने का निर्देश दिया है।

15 मंजिला इंटरकनेक्टेड नौ टावरों में फैले 0.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के इस कॉम्प्लेक्स में 300 से लेकर 7,5000 वर्ग फुट तक के कार्यालय हैं। हीरे के आभूषणों की श्रृंखला को पूरा करने के लिए 27 खुदरा आभूषण आउटलेट भी खोले जाएंगे। 

35 हजार रुपये प्रति वर्ग फुट की लागत वाला यह बाजार मुंबई के भारत डायमंड बोर्स से थोड़ा ही सस्ता है जिसकी कीमत अभी 39,000 रुपये प्रति वर्ग फुट है।

गुजरात: क्या हीरों से होगी सूरत में चकाचौंध?

मुंबई से हीरा बाजार को सूरत शिफ्ट करने के गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं और हीरा व्यापारियों को सूरत से काम करने के लिए लुभाया जा रहा है। सूरत में बंदरगाह तो है ही, हाल ही में वहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का भी उद्घाटन किया गया। यह टर्मिनल 353 करोड़ की लागत से बनाया गया है और यहां 20 चेक-इन काउंटर, 5 कन्वेयर बेल्ट, 500 कार पार्किंग स्लॉट और 13 एयरक्राफ्ट पार्किंग बे हैं।  

सूरत डायमंड वर्कर्स यूनियन का दावा है कि पिछले एक साल के दौरान 30 से अधिक कारीगरों ने आत्महत्या की है। दीपावली के बाद कई छोटी और मध्यम आकार की फैक्टरियां नहीं खुलीं और अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि इनमें मजदूरों की छंटनी होने वाली है। आरटीआई के तहत वाणिज्य मंत्रालय से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि कटे और पॉलिश किए गए हीरों का निर्यात अक्तूबर, 2023 में गिरकर 10,495 करोड़ रुपये का रह गया जो अक्तूबर, 2022 में 15,594 करोड़ रुपये था।

हीरे के व्यापार से राज्य में दस लाख लोगों के जुड़े होने का अंदाजा है; लेकिन वैश्विक मंदी और जी-7 देशों द्वारा जनवरी, 2024 से रूसी हीरों और मार्च, 2024 से भारत जैसे तीसरे देशों द्वारा संसाधित हीरों पर आयात प्रतिबंध के कारण अनिश्चितताएं बढ़ गई हैं।


हीरे का मास्टर प्लान

हीरा व्यापारी जो ज्यादातर गुजराती हैं, दक्षिण मुंबई के भीड़भाड़ वाले ओपेरा हाउस से काम कर रहे हैं। हालांकि व्यापारियों और कटर और पॉलिश करने वालों ने मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में वर्षों पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्थापित तड़क-भड़क वाले हीरे के बाजार के बजाय पुराने छोटे-छोटे अंधेरे कमरों से पहले की तरह काम करना चुना है। इन कमरों में वे सदियों से काम कर रहे हैं और व्यापारियों के मन में यह बात घर कर गई है कि यह जगह उनके लिए भाग्यशाली है। हीरे का कारोबार एक वंशानुगत व्यापार है जिसमें कटर, पॉलिश करने वाले और अंगड़िया- पारंपरिक कूरियर शामिल हैं। जबकि हीरा कारोबारी गुजराती हिन्दू या जैन हैं, हीरा तराशने वाले, पॉलिश करने वाले और अंगड़िया ज्यादातर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से हैं और ये ज्यादातर मुस्लिम हैं।

जब 1992-93 के दंगों के दौरान मुंबई में मुसलमानों को शिवसेना द्वारा निशाना बनाया गया, तो ये मजदूर अपने गांव वापस चले गए। जब अमन-चैन कायम हुआ, तो हीरा व्यापारियों ने मजदूरों के बिना खुद को असहाय पाया और फिर उन्होंने बाल ठाकरे से अपील की और श्रमिकों को लौटने के लिए मनाने के लिए उनके गांवों में एजेंट तक भेजे।

यही वजह है कि हीरा उद्योग को गुजरात ले जाने की योजना के नाकामयाब रहने की संभावना है। गुजरात के कांग्रेसी मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी इस तरह की कोशिश कपड़ा मिलों के मामले में कर चुके हैं जब उन्होंने ट्रेड यूनियनों से परेशान मुंबई के कपड़ा मिल मालिकों को गुजरात आने का न्योता दिया था और उन्हें 15 साल के कर अवकाश की पेशकश की थी। 

हीरा व्यापारियों की गुजरात जाने से कतराने की बड़ी वजह मुस्लिम श्रमिकों की सुरक्षा चिंताएं हैं। 

धोखाधड़ी का साल

इस साल राज्य में धोखाधड़ी करने वाले आश्चर्यजनक रूप से सुर्खियां बटोर रहे हैं। साल के पहले हिस्से में कई लोगों ने प्रधानमंत्री के सलाहकार या पीएमओ में अधिकारी बनकर सरकारी आतिथ्य और विशेषाधिकारों का लुत्फ उठाते हुए लोगों को झांसा दिया। अब साल खत्म होते-होते फर्जी सरकारी दफ्तर और फर्जी टोल प्लाजा की खबर आ गई। 

एक आईएएस अधिकारी और एक जूनियर इंजीनियर को पुलिस ने चार फर्जी कार्यालय चलाने के आरोप में हिरासत में लिया। इनमें से दो कार्यालय तो कागज पर थे। इस पैमाने पर धोखाधड़ी को देखते हुए पुलिस ने इसकी जांच के लिए एसआईटी और एक ऑडिटर नियुक्त करने को कहा है।

ठगों द्वारा फर्जी सरकारी कार्यालय चलाना और सरकार को कम-से-कम 18.5 करोड़ रुपये का चूना लगाना सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात थी लेकिन अब तो यह मामला फर्जी टोल प्लाजा के सामने फीका पड़ गया है जो डेढ़ साल तक लोगों से पैसे वसूलता रहा और किसी को पता ही नहीं चला। आरोपियों ने मोरबी और वांकानेर के बीच बामनबोर-कच्छ राष्ट्रीय राजमार्ग पर आधिकारिक टोल प्लाजा को बायपास करने के लिए एक निजी सड़क बनाई। रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी रमेश सवानी ने दावा किया कि डेढ़ साल में लोगों से 82 करोड़ वसूल लिए गए। 

किसी ने इसकी शिकायत नहीं की क्योंकि आरोपियों ने कार मालिकों और भारी ट्रक चालकों से 20 रुपये से 200 रुपये के बीच वसूला जबकि राष्ट्रीय राजमार्ग पर वास्तविक टोल टैक्स 110 रुपये से 595 रुपये था। मजे की बात यह है कि राजमार्ग पर मुख्य टोल प्लाजा चलाने वाली एजेंसी ने भी निजी टोल बूथ संचालकों के खिलाफ शिकायत नहीं दर्ज कराई क्योंकि उन्हें राजनीतिक रूप से प्रभावशाली माना जाता था। 


गधों  के अच्छे दिन 

कहा जाता है कि मिस्र की खूबसूरत क्वीन क्लियोपेट्रा अपनी त्वचा को झुर्रियों से मुक्त, नाजुक और गोरा बनाए रखने के लिए गधी के दूध से नहाती थी। रोमन सम्राट नीरो की पत्नी पोपिया भी ऐसा करती थी। उसने हर दिन गधी के दूध से भरे टब में बैठकर स्नान करने की आदत बना ली थी जिसके कारण वह जहां भी जातीं, उनके साथ बड़ी तादाद में गधी भी ले जाई जातीं। 

भारत समेत दुनिया भर में गधों को बोझा ढोने के लिए ही जाना जाता है, हालांकि औद्योगीकरण के बाद उनकी जरूरत भी कम हो गई और उनकी संख्या भी। उदाहरण के लिए पशु जनगणना से पता चलता है कि तमिलनाडु में केवल 1,428 गधे बचे हैं जबकि 2012 में यह संख्या 9,183 थी। 

लेकिन लगता है कि हमने एक चक्कर पूरा कर लिया है। सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में गधी के दूध की बढ़ती मांग ने तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात में गधा पालने वालों को फिर से बढ़ावा दिया है। यह विशेष साबुन और बाम के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। गधे के दूध से हस्तनिर्मित 130 ग्राम की साबुन की टिकिया की कीमत स्थानीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर 799 रुपये और अमेरिका में 16.77 अमेरिकी डॉलर (1,299 रुपये) है। गधे के दूध का पाउडर जाहिर तौर पर 2,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 1.5 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम के हिसाब से भी बिकता है।

चूंकि एक गधी प्रतिदिन औसतन केवल आधा लीटर दूध देती है, उन्हें छोटे पैमाने पर दुधारू पशुओं के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक देशी गधी एक दिन में केवल 350 मिलीलीटर दूध देती है, और एक बार में केवल 6 महीने तक जबकि गुजरात की हलारी नस्ल की गधी एक लीटर दूध देती है।

इसलिए पाटन के एक गांव के धीरेंद्र सोलंकी ने 20 गधी में 22 लाख रुपये का निवेश किया। सोलंकी केरल और तमिलनाडु में उद्योगों और डेयरियों दोनों को दूध बेचते हैं, जहां इसे ‘प्रतिरक्षा बढ़ाने' के लिए बच्चों और बीमारों को पिलाया जाता है। इसकी कीमत 5,000 रुपये से 7,000 रुपये प्रति लीटर तक है।

निस्संदेह, कच्छ को सफेद गधों की भूमि के रूप में जाना जाता है।

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