गुजरात: वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन और प्रधानमंत्री का 'रोड शो' प्रेम

मौका कोई भी हो, प्रधानमंत्री के रोड शो के बिना कोई भी आयोजन अधूरा ही होता है। इससे प्रधानमंत्री की ब्रांड छवि को मजबूत करने के अलावा क्या कुछ हासिल होता है, यह कहना मुश्किल है।

वाईब्रेंट गुजरात सम्मेलन में हिस्सा लेने से पहले पीएम मोदी ने अहमदाबाद में रोड शो किया
वाईब्रेंट गुजरात सम्मेलन में हिस्सा लेने से पहले पीएम मोदी ने अहमदाबाद में रोड शो किया
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सुजाता आनंदन

वाइब्रेंट रोड शो

‘रोड शो’ से प्रधानमंत्री का खास लगाव है। चाहे वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच हो, महिला सम्मेलन हो, चुनाव अभियान हो या वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन- पीएम के ‘रोड शो’ के बिना सब अधूरे हैं। इस साल का 10वां‍ वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन भी कोई अपवाद नहीं था। 10 से 12 जनवरी के बीच हुए कार्यक्रम से पहले शाम को प्रधानमंत्री सड़क पर हाजिर थे।

हालांकि ये रोड शो प्रधानमंत्री की ब्रांड छवि को मजबूत करने के अलावा क्या हासिल करने के लिए किए जाते हैं, कहना मुश्किल है। विपक्ष ने, हालांकि अनिच्छा से माना कि इससे पीएम की छवि और राज्य को निवेश के लिए एक गंतव्य के रूप में बढ़ावा मिला है, खासकर 2014 में राज्य के मुख्यमंत्री के देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद। 

इस साल के वाइब्रेंट सम्मेलन में 34 भागीदार हैं जिनमें 21 पहली बार शामिल हुए हैं। इस साल कनाडा की अनुपस्थिति खास बात है जिसने सम्मेलन के लिए गुजरात सरकार के साथ पांच बार भागीदारी की। केंद्र सरकार की सहायता से राज्य ने कई औद्योगिक राज्यों को पीछे छोड़ते हुए सेमीकंडक्टर, विमान निर्माण, रक्षा, हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र, अंतरिक्ष-संबंधित विनिर्माण वगैरह में भी प्रगति की है। राज्य सरकार का दावा है कि उसने पिछले दो दशकों में 55 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश आकर्षित किया और 13 फीसदी एफडीआई राज्य के ऑटो सेक्टर में आता है जो भारत के राष्ट्रीय औसत, यानी 5 फीसदी से काफी ज्यादा है।

हालांकि राज्य में खराब सामाजिक सूचकांकों, अविकसित, कमजोर और कम वजन वाले बच्चों पर पर्दा डालना मुश्किल है क्योंकि इन मामलों म‍ें गुजरात 30 राज्यों में 22वें या उससे भी नीचे है। देश में सबसे अधिक मात्रा में खतरनाक कचरा और चौथा सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने वाला राज्य भी गुजरात ही है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राज्य में केवल 80% उद्योग अपशिष्ट जल उपचार मानदंडों का अनुपालन करते हैं।

हिरासती मौतों में नंबर वन

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट राज्य में हिरासत में होने वाली मौतों की गंभीर तस्वीर पेश करती है। 2020 से 2022 के बीच देश में सबसे ज्यादा ऐसी मौतें गुजरात में हुईं। इसमें यह भी दर्ज है कि 2016 के बाद से हिरासत में मौत के लिए किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया। गौरतलब है कि हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 1990 में जामनगर में हिरासत में यातना देने और एक व्यक्ति की मौत के मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। तब भट्ट वहां एएसपी थे। भट्ट को जून, 2019 में सत्र अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और यह 2016 और 2023 के बीच हिरासत में मौत के लिए राज्य में एकमात्र सजा है।

2022 में ही राज्य में पुलिस हिरासत में 14 मौतें हुईं। 10 मामलों में मजिस्ट्रेट जांच और चार मामलों में न्यायिक जांच के आदेश दिए गए, हालांकि अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और किसी पर आरोप नहीं लगाया गया है। 2016 और 2021 के बीच गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर राज्य में हिरासत में 83 मौतें हुईं। 42 मामलों में मजिस्ट्रेट जांच की गई और केवल आठ मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए। 


व्यावसायिक खतरा

राज्य में विपक्षी विधायक होना एक खतरे से भरा काम है जैसा कि जिग्नेश मेवाणी ने पहले ही जान लिया था। असम पुलिस एक मामूली शिकायत पर उन्हें गुजरात से गिरफ्तार कर असम ले गई थी। अब बारी है दूसरे विपक्षी विधायक चैतर वसावा की जो पिछले दो हफ्ते से भरूच की जेल में बंद हैं। उन पर वन विभाग के एक अधिकारी पर बंदूक तानने और उससे कई हजार रुपये छीनने का आरोप है। पुलिस ने अदालत को बताया कि घटना एक जंगल के अंदर हुई थी जहां अधिकारी कथित तौर पर उन आदिवासियों को बेदखल करने गए थे जो खाली जमीन पर खेती कर रहे थे।

पुलिस ने यह भी दावा किया कि उन्होंने विधायक के घर से 30,000 रुपये बरामद किए थे लेकिन कथित तौर पर अधिकारी को डराने और एक लोकसेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन में बाधा डालने के लिए इस्तेमाल की गई बंदूक बरामद नहीं कर पाए। उनके वकील का कहना है कि तेजतर्रार आदिवासी नेता और आम आदमी पार्टी विधायक वसावा राज्य सरकार को तीखे सवालों से परेशान कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके खिलाफ मामला मनगढ़ंत है। 

बुल्गेरियाई ‘संकटमोचक’

जब फार्मास्युटिकल कंपनी कैडिला ने पिछले साल नवंबर में एक बुल्गेरियाई महिला को ‘फ्लाइट अटेंडेंट’ के तौर पर नियुक्त किया, तब उसे आने वाले तूफान का अंदाजा नहीं था। महिला ने चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राजीव मोदी और उनके एक सहयोगी पर छेड़छाड़ और बलात्कार का आरोप लगाया। हालांकि इस शिकायत को पुलिस ने पहले गंभीरता से नहीं लिया और मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया। महिला ने फिर चार अलग-अलग पुलिस स्टेशनों और निचली अदालत में दस्तक दी, आखिरकार हाईकोर्ट ने पुलिस को मामला दर्ज करने का आदेश दिया। इसलिए 31 दिसंबर, 2023 को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 358 (शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

सवाल यह है कि कैडिला को बुल्गेरियाई फ्लाइट अटेंडेंट की जरूरत क्यों पड़ी। इसकी एक व्याख्या यह है कि निजी कॉरपोरेट विदेशी फ्लाइट अटेंडेंट और पायलटों को प्राथमिकता देते हैं जो अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं से अपरिचित होते हैं ताकि वे उड़ान के दौरान व्यावसायिक बातचीत को सुनने में सक्षम न हों। महिला का कहना है कि उसकी प्रोफाइल को एक निजी परिचारिका में बदल दिया गया था और वह अपनी यात्राओं पर सीएमडी से जुड़ी हुई थी।

महिला ने बुल्गारियाई दूतावास को पत्र लिखा और शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया है और महिला पुलिस स्टेशन में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि उसने विवाद सुलझा लिया है और 24 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट प्राप्त किया है। यह स्पष्ट नहीं है कि वह अभी भी भारत में है या पुलिस अपने निष्कर्षों पर रिपोर्ट कब दर्ज करेगी। 


गुजराती-बांग्लादेशी भाई-भाई

सूरत पुलिस ने ‘मानव तस्करी’ के आरोप में 10 भारतीयों और नौ बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया जिनमें तीन महिलाएं थीं। जहां बांग्लादेशी महिलाएं अत्यधिक वेतन वाली नौकरियों के झांसे में पड़कर यौनकर्मी बन गईं, वहीं पुरुषों को भारतीय एजेंटों द्वारा जाली और नकली दस्तावेज उपलब्ध कराए गए। पुलिस ने दावा किया कि बड़ौदा निवासी आकाश संजयभाई मानकर ने बांग्लादेशियों के लिए फर्जी आधार, पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और यहां तक कि ड्राइविंग लाइसेंस भी बनाए थे।

शराबबंदी तो कहने की बात

भारत में संविधान को अपनाए जाने के बाद से गुजरात अकेला राज्य रहा है जहां शराब पर प्रतिबंध है। लेकिन पीने वालों को बखूबी पता है कि शराब कैसे पा सकते हैं। 

हालांकि पिछले तीन वर्षों से मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सुपरमार्केट में शराब की खुली बिक्री की अनुमति देने के बाद गुजरात सरकार ने चिकित्सा आधार पर शराबबंदी मानदंडों में ढील दी है। इन तीन वर्षों में गुजरात की 6.5 करोड़ आबादी में से बड़ी संख्या में वयस्कों में स्वास्थ्य समस्याएं विकसित हुई हैं और उन्होंने शराब परमिट के लिए आवेदन किया है।

मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, जहां 2020 में इसने 27,452 परमिट जारी किए थे, वहीं 2023 में यह संख्या 43,470 परमिट धारकों तक पहुंच गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि अहमदाबाद 13,456 परमिट धारकों के साथ सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद सूरत (9,238), राजकोट (4,502), बड़ौदा (2,743), जामनगर (2,039), गांधीनगर (1,851) का नंबर आता है। ये सभी परमिट धारकों को मेडिकल बोर्ड ने जीवित रहने के लिए शराब लेने की मंजूरी दी है। इसके अलावा गुजरात के 77 शीर्ष होटलों को भी अब परमिट जारी कर दिया गया है जबकि विदेशी पर्यटक और घरेलू यात्री गुजरात में एक बार में एक सप्ताह के लिए परमिट खरीद सकते हैं।

इसके साथ ही, अहमदाबाद के पास स्थित गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंशियल टेक सिटी में होटल, रेस्तरां और क्लब अपने ग्राहकों को मुफ्त में वाइन और शराब परोस सकते हैं, हालांकि बंद बोतलों की बिक्री की अब भी अनुमति नहीं है।

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