बिहार के अस्पतालों और सड़कों की हालत पता होती नीतीश कुमार को तो दिल्ली में डींगे नहीं हांकते

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली चुनाव में एनडीए के लिए प्रचार के दौरान दिल्ली की सड़कों-अस्पतालों की आलोचना की। लेकिन जिस राज्य की कमान करीब 2 दशक से उनके हाथ में है, वहां क्या हालत है, जरा हकीकत को जान लीजिए।

फोटो : सोशल मीडिया
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शिशिर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए प्रचार करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सूप में 72 छेद तो बता दिए, लेकिन अपनी चलनी नहीं देखी। चुनाव-प्रचार करते हुए नीतीश ने दिल्ली की सड़कों की दुर्गति बताई, बिजली का काम नहीं होने की बात कही और अस्पतालों में बिहारियों के इलाज पर केजरीवाल के तंज को लेकर उन्हें जमकर खरी-खोटी सुनाई। लेकिन, बिहार के लोग करें भी तो क्या? बिहार में रहेंगे तो नीतीश की सड़क-बिजली-अस्पताल जान लेने को उतारू हैं।

जरा जमीनी हालत देखिए। पिछले साल 19 जुलाई को बिहार विधान परिषद में एक सवाल का जवाब देते हुए सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बीजेपी के मंगल पांडेय ने दोहराया था कि बिहार के सभी सदर अस्पतालों में सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड लगाने की व्यवस्था हो रही है। यानी बीते करीब दो दशक से राज्य की कमान संभाले नीतीश कुमार के बिहार में अभी तक सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा नहीं है, ऐसा इस जवाब से स्पष्ट हो गया था। इस युग में बगैर सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड के अस्पताल चलाने पर एनडीए के नेताओं को एक बार भी शर्म नहीं आई। शर्म तो अब भी नहीं आ रही क्योंकि इस घोषणा के छह महीने बाद भी किसी एक जिले के सदर अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन नहीं पहुंची है। यह मशीन तो दूर, हृदयरोग की पहचान करने वाली प्राथमिक जांच- ईसीजी, की मशीन तक सदर अस्पतालों में नहीं है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल तो कई हैं लेकिन हृदयरोग का विभाग भागलपुर जैसे पुराने जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज तक में नहीं बनाया गया है।


बिहार के 38 जिलों में से पटना और दरभंगा में सदर अस्पताल बनाने की घोषणा कई बार हो चुकी है, लेकिन अब तक यह फाइलों में ही बन सका है। राजधानी में जिला स्तरीय अस्पताल की जरूरत नहीं है क्योंकि इस स्तर के पुराने कई अस्पताल अब मॉडल के रूप में खड़े नजर आते हैं। लेकिन, जब इनके अंदर की हकीकत देखी जाए तो आज तक इनमें सीटी स्कैन की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। बिहार के बाकी 36 जिलों के सदर अस्पतालों में भी कहीं सीटी स्कैनिंग नहीं हो रही। सिर पर अंदरूनी या बाहरी चोट की स्थिति में लोगों को इलाज के लिए गिने-चुने प्राइवेट अस्पतालों में जाकर गाढ़ी कमाई या कर्ज पर लिए पैसे कुर्बान करने की नौबत है और वह भी सफल इलाज बगैर। हृदयरोग की जांच के लिए ईसीजी भी कुछ गिने-चुने सदर अस्पतालों में हो रही है क्योंकि वहां पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप मोड पर इसे चलाने के लिए ठेका दे दिया गया है।

बांस के सहारे लटके हैं तार

बिहार में डबल इंजन की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली में एनडीए के लिए चुनाव-प्रचार के दौरान दावा किया कि बिहार में हमने हर घर बिजली पहुंचा दी है, सारे पुराने तार बदल दिए हैं। दिल्ली में जर्जर तारों के कारण जान जा रही है। अब इसकी सच्चाई जानिएः बिहार के गांवों की तो दूर, अब भी राजधानी से सटे कई हिस्सों में बांस के सहारे लोग अपने घरों तक बिजली ले जाने को विवश हैं। बिजली कंपनी बिल तो ले रही है लेकिन बांस हटवाकर पोल लगवाने के लिए उसे नागरिक समूह का लिखित आवेदन चाहिए। पटना स्थित केंद्रीय कारा बेऊर से अंदर जाने वाली सड़क पर तीन किलोमीटर की दूरी तय करते-करते बांसों पर तार का जाल नजर आने लगता है। महावीर कॉलोनी निवासी राहुल सिंह कहते हैं, “बीच शहर के वीआईपी हिस्सों में सड़क, बिजली, अस्पताल- सब ठीक है लेकिन थोड़ा अंदर गए तो असल हकीकत दिख जाती है।” वैसे, यह हकीकत कई शहरों की है।


पावर सब-स्टेशनों में बिजली कर्मचारियों के लिए ग्लव्स यानी दस्तानों तक की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। बेगूसराय जिले में पिछले चार वर्षों में तीन बार ऐसे हादसों के कारण बिजली कर्मी काफी हंगामा कर चुके हैं। बेगूसराय जिले में लगातार कई बार बीजेपी के मंडल अध्यक्ष रह चुके रवींद्र प्रसाद वर्मा कहते हैं, “एनडीए की सरकार काम तो अच्छा कर रही है, लेकिन जमीन पर दिख रही परेशानियों को लेकर अफसरों को संवेदनशील बनाना अबतक संभव नहीं हो सका है। यही कारण है कि बिजली को लेकर सिर्फ बेगूसराय ही नहीं, बिहार के दूसरे इलाकों में भी जानलेवा हादसे आज भी हो रहे हैं।”

जहां तक निर्बाध बिजली यानी 24 घंटे बिजली का सवाल है तो वर्षों पुरानी स्थितियां अब नहीं हैं लेकिन राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों तक में कई बार बिजली नहीं रहने के कारण ऑपरेशन टेबल पर टॉर्च जलाकर मरीज को रखने की तस्वीरें आ चुकी हैं।

सड़कों का भी बुरा हाल

बिहार की असल हालत यह है कि किसी भी जिले, यहां तक कि पटना जिले के किसी हिस्से में किसी को हृदय, मस्तिष्क से संबंधित बड़ी समस्या दिखे तो उसे राजधानी पटना के हृदयस्थल में स्थितअस्पतालों का रुख करना पड़ता है। और, पटना जिले की ही एक सीमा पर स्थित मोकामा हो या दूसरी सीमा पर स्थित पालीगंज-जैसे इलाके, कहीं से भी राजधानी पहुंचने के लिए मखमली सड़क तो अभी तक नहीं ही बिछा सके हैं नीतीश। नीतीश सरकार के पास अब तक इस बात का जवाब नहीं है कि प्रदेश के सुदूरवर्ती जिलों के लोग इमरजेंसी में पश्चिम बंगाल या उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में जाना क्यों अच्छा समझते हैं। सड़कों की हालत इसके लिए जवाबदेह है।


आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते भी हैं, “सड़कों के मामले में नीतीश की हालत तो सांप-छछुंदर जैसी है। नेशनल हाईवे के नाम पर नीतीश केंद्र पर हमला नहीं कर सकते क्योंकि डबल इंजन की सरकार चला रहे हैं। बीच में महागठबंधन के मुख्यमंत्री बनने पर नीतीश कुमार केंद्र से ऐसी खराब सड़कें अपने हिस्से में मांग रहे थे लेकिन अब वह भी नहीं मांग रहे।” वास्तविकता यही है भी। नीतीश कुमार न तो अब तक सड़कों का उद्धार करवा सके हैं और न ही राजधानी पहुंचने के ठीक पहले अक्सर लगने वाले जाम का ही स्थाई समाधान करा सके हैं।

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