हम अडानी के हैं कौनः देश की खाद्यान्न प्रणाली अडानी को देने पर तुली सरकार, क्या ये चुनावी बॉन्ड नहीं?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के खुलासों के बाद से कांग्रेस ‘हम आडानी के हैं कौन’ सीरीज के तहत रोज पीएम मोदी से अडानी और उनकी कंपनियों को लेकर सवाल पूछ रही है। हालांकि अब तक अडानी पर पूछे गए एक भी सवाल का जवाब पीएम मोदी या सरकार ने नहीं दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस ने 'हम अडानी के हैं कौन' सीरीज के तहत आज फिर पीएम मोदी से गौतम अडानी पर तीन सवाल पूछे हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सवालों का सेट जारी करते हुए कहा कि प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी, जैसा कि आपसे वादा था, हम अडानी के हैं कौन (एचएएचके) श्रृंखला में आपके लिए तीन प्रश्नों का 25वां सेट प्रस्तुत है। आज के हमारे प्रश्न आपकी सरकार द्वारा भारत की खाद्यान्न प्रणाली पूरी तरह से अडानी समूह को सौंपने में की गई कड़ी मेहनत से संबंधित है। ऐसा लगता है कि वर्ष 2020-21 के किसान आंदोलन द्वारा केवल अस्थायी रूप से इस षडयंत्र को विफल किया गया था, जिससे आपको काले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था।

सवाल नंबर- 1

प्रकाशन अडानीवॉच में ये बताया गया था कि 13 अक्टूबर 2022 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात हाईकोर्ट के 30 जून 2021 के फैसले को निरस्तर कर दिया है, जिसमें सरकारी निगमित कंपनी ‘सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन’ (सीडब्ल्यूसी) के बजाए अडानी पोर्ट्स और एसईजेड का पक्ष लिया गया था और इसमें कहा गया कि उच्च न्यायालय का निर्णय 'कानूनी रूप में मान्य नहीं है'। सीडब्ल्यूसी की स्थापना वर्ष 1957 में भारत की खाद्य भंडारण जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई थी और वर्ष 2021-22 में इसमें 55 लाख टन खाद्यान्न का भंडारण किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने सीडब्ल्यूसी के रुख का समर्थन किया था, जबकि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने सीडब्ल्यूसी द्वारा अपने गोदामों को गैर अधिसूचित करने के निर्णय का समर्थन न करके, अडानी एसईजेड के रूप में मुंद्रा बंदरगाह के पास दो प्रमुख सीडब्ल्यूसी गोदामों पर नियंत्रण करने के लिए अडानी की बोली का समर्थन किया था।

फैसले में कहा गया था कि "दो विरोधाभासी स्वरों में बोलना भारत संघ के लिए अच्छा नहीं है" और "भारत संघ के दो विभागों को बिल्कल विपरीत स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।" इससे यह सवाल उठता है कि निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के निगम के विरुद्ध और आपके पसंदीदा व्यापार समूह के पक्ष में कदम क्यों उठाया। क्या वह ऊपर से स्पष्ट निर्देशों के बिना ऐसा करने का साहस कर सकती है?


सवाल नंबर- 2

पीयूष गोयल के वाणिज्य और उद्योग मंत्री (मई 2019 में) और साथ ही उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री (अक्टूबर 2020 में) बनने के बाद भी यह अडानी-प्रेरित अंतर-मंत्रालयी संघर्ष जारी रहा। यदि कॉर्पोरेट हितों के हितैषी माने जाने वाले मंत्री सार्वजनिक क्षेत्र की उस इकाई का समर्थन करने की पहल नहीं करते हैं, जिसके लिए वह जिम्मेदार हैं, तो क्या यह मान लेना तर्कसंगत नहीं है कि वह अडानी समूह के साथ एक मजबूत 'इलेक्टोरल बॉन्ड' बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं?

सवाल नंबर- 3

पूरा देश जानता है कि आपके गलत कृषि कानूनों के पीछे की प्रेरणा भारत की खाद्यान कृषि प्रणाली को आपके कुछ करीबी कॉर्पोरेट मित्रों को सौंपना था। कृषि कानूनों के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक, अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स होता, जो भारतीय खाद्य निगम के साइलो अनुबंधों का प्रमुख लाभार्थी बन गया है, जिसे हाल ही में उत्तर प्रदेश और बिहार में 3.5 लाख मीट्रिक टन भंडारण स्थापित करने का अनुबंध मिला है। इस बीच अदानी फार्म-पिक को हिमाचल प्रदेश में सेब की खरीद पर करीब-करीब एकाधिकार स्थापित करने की खुली छूट दे दी गई। क्या भारत का सार्वजनिक क्षेत्र, जिसे पिछले 70 वर्षों की कड़ी मेहनत से खड़ा किया गया था, अब आपके कॉर्पोरेट मित्रों को और अमीर बनाने का साधन बनकर रह गया है।


गौरतलब है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अडानी समूह पर हुए गंभीर खुलासों के बाद से कांग्रेस ‘हम आडानी के हैं कौन’ सीरीज के तहत पिछले कई दिनों से रोजाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गौतम अडानी और उनकी कंपनियों को लेकर सवाल पूछ रही है। अब तक कांग्रेस सीरीज के तहत 20 दिन सवाल पूछ चुकी है। हालांकि अब तक कांग्रेस के अडानी पर पूछे गए एक भी सवाल का जवाब पीएम मोदी या सरकार ने नहीं दिया है।

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