पीने का पानी और मुफ्त कोरोना टेस्ट की मांग पर दिल्ली के हमदर्द अस्पताल ने 84 नर्सों को नौकरी से निकाला

दिल्ली के हमदर्द अस्पताल ने 84 नर्सों को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने ड्यूटी के दौरान पीने के पानी और मुफ्त कोरोना जांच की मांग की थी। इस बारे में नर्सों ने सीएम केजरीवाल को पत्र लिखकर दखल देने की मांग की है।

फोटो सौजन्य : हमदर्द अस्पताल वेबसाइट
फोटो सौजन्य : हमदर्द अस्पताल वेबसाइट
user

ऐशलिन मैथ्यू

वैश्विक महामारी कोरोना कोरोना के दौरान में राजधानी दिल्ली के हमदर्द विश्वविद्यालय स्थित अस्पताल ने 84 नर्सों को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने बुनियादी सुविधाओं की मांग की थी। इस अस्पताल को कोरोना मरीजों के लिए चिंह्नित किया गया है। यहां की नर्सें कोरोना ड्यूटी के दौरान लम्बे अर्से से पीपीआई किट्स, ए-95 मास्क, व्यवहारिक काम के घंटे, पीने का पानी, क्वारंटीन करने की सुविधाएं और हेल्थ पॉलिसी की मांग कर रही थीं।

लेकिन नर्सों और अस्पताल स्टाफ की मांगों पर विचार करने के बजाए अस्पताल प्रशासन ने नर्सों का कांट्रेक्ट की रद्द कर दिया। खासतौर से उन नर्सों को निशाना बनाया गया है जो आने वाले दिनों में स्थाई स्टाफ होने वाली थीं। इतना ही नहीं इन नर्सों में वह एक नर्स भी शामिल है जो कोरना पॉजिटिव पाए जाने के बाद 3 जुलाई से क्वारंटीन में है। अस्पताल इसके साथ ही नर्सों की भर्ती का विज्ञापन भी जारी कर दिया है

हमदर्द अस्पताल में काम करने वाली नर्स गुफराना खातून ने बताया कि, “अस्पताल प्रबंधन हमारी मांगों को लेकर बेहद असंवेदनशील रहा। हमने कोई असाधारण चीज नहीं मांगी थी। अस्पताल हमसे एक ही पीपीई किट में 12 घंटे काम कराना चाहता था, इससे हमारी सेहत पर प्रभाव पड़ रहा था। पीपीआई किट में 12 घंटे तो दूर, 3-4 घंटे से ज्यादा रहना मुश्किल होता है। हमें पीने का पानी तक मुहैया नहीं कराया जा रहा है।”

गुफराना खातून कोरोना पॉजिटिव पाई गई हैं और 3 जुलाई से क्वारंटीन में हैं, इसी दौरान उसे बरखास्त कर दिया गया। उन्होंने बताया कि, “अस्पताल में लैब है लेकिन अपनी जांच कराने के लिए भी हमें पैसे देने पड़ते हैं। मैंने जब इस बारे में अस्पताल की नीति के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि नर्सों को 50 फीसदी पैसे देने होंगे। मैंने अपने टेस्ट के लिए 1200 रुपए दिए। जबकि स्टाफ की जांच मुफ्त होनी चाहिए। हम तो कोरोना वार्ड में ड्यूटी के दौरान ही संक्रमित हुए हैं। अगर मैंने पैसे देकर अपनी जांच नहीं कराई होती तो मुझ से यह संक्रमण और लोगों तक पहुंच सकता था।”


अस्पताल ने कई सीनियर नर्सों को बरखास्त कर दिया है ताकि उन्हें परमानेंट न किया जा सके। अस्पताल की पॉलिसी के मुताबिक जिन नर्सों ने 5 साल या अधिक समय तक काम किया है उन्हें स्थाई किया जाता है। जिन नर्सों को बरखास्त किया गया है उनमें से अधिकतर ने 3 से 6 साल तक काम किया है।

अस्पताल ने 11 जुलाई को जारी बरखास्तगी के पत्र में कहा है कि नर्सों को इसलिए निकाला जा रहा है क्योंकि वे बिना अनुमति के ड्यूटी से गैरहाजिर थीं। लेकिन वास्तविकता यह है कि इनमें से कई 11 जुलाई को भी ड्यूटी पर थीं और गुफराना खातून तो क्वारंटीन है। एक नर्स ने बताया कि “हम तो लगातार हाजिरी लगा रहे थे और हमारे पास इसका रिकॉर्ड भी है कि कोरोना आने के बाद से हमने कोई छुट्टी नहीं ली है।”

नर्सों का कहना है कि अस्पताल का फैसला एकतरफा है क्योंकि 2 जुलाई को ही मैनेजमेंट ने एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कोरोना महामारी के दौरान हमदर्द को कोरोना के लिए चिह्नित अस्पताल घोषित किए जाने की जानकारी देने के साथ ही कहा गया था कि इस दौरान कोई भी नर्स या डॉक्टर छुट्टी नहीं लेना और न ही इस्तीफा देगा और न ही निजी कारणों से बिना वेतन छुट्टी पर जाएगा।

लेकिन, अस्पताल प्रबंधन नर्सों के आरोपों को खारिज करता है। उसका कहना है कि नर्सों को नौकरी से नहीं निकाला गया है बल्कि उनका कांट्रेक्ट खत्म हो गया है। अस्पताल के कार्यकारी मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉ सुनील कोहली ने कहा कि, हम अच्छे कर्मचारियों को पुरस्कृत करते हैं और कर्मचारी रखने का अधिकार तो अस्पताल के पास ही है। उन्होंने बताया कि जिन नर्सों में कोरोना के लक्षण थे उनकी जांच मुफ्त में की गई है। इसके अलावा अगर कोई और अस्पताल कर्मचारी अपना टेस्ट कराना चाहता है तो उसे 50 फीसदी पैसा देना होता है। अगर कर्मचारी पॉजिटिव पाया जाता है तो उसका पैसा रिफंड कर दिया जाता है। पॉजिटिव पाए गए सभी कर्मचारियों का मुफ्त इलाज भी होता है।

डॉ कोहली ने सारे आरोपों को खारिज किया, अलबत्ता पीने के पानी की मांग को सही बताया। उन्होने कहा कि दुरभाग्य से यह पुरानी समस्या है और हम इसका समाधान निकाल रहे हैं। हम एक धर्मार्थ अस्पताल हैं और मुनाफे में नहीं रहते हैं। उन्होंने बताया कि नर्सें कोविड भत्ते मांग कर रही हैं और इस बारे में प्रशासन को बता दिया गया था लेकिन मैनेजमेंट ने इस मांग को नहीं माना।

हमदर्द नर्सों का मामला सामने आने के बाद युनाइटेड नर्स एसोसिएशन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और श्रम मंत्री गोपाल राय को पत्र लिखकर मामले में दखल देने की मांग की है। पत्र में बताया गया है कि आईसीयू में हर 6 मरीजों पर सिर्फ एक नर्स है। जबकि नर्सिंग गाइडलाइंस के मुताबिक गंभीर मामलों में मरीज-नर्स का औसत 1:1 होना चाहिए।

गोपाल राय के दफ्तर ने इस बारे में कहा है कि वे मामले को देख रहे हैं। वहीं करेल के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 84 नर्सों को नौकरी से निकाल जाने का मुद्दा उठाया है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia