हरियाणा : तीन परिवारों के संघर्ष से दिलचस्प हुई सियासत, सत्तापक्ष में अंदर-अंदर बेचैनी

बीरेंद्र सिंह के सियासी दांव ने हरियाणा के दो बड़े सियासी परिवारों भजनलाल के परिवार और देवीलाल की विरासत पर दावा कर रहे दुष्यंत चौटाला की राजनीतिक संभावनाओं में एक और पेंच फंसा दिया है।

बीजेपी नेता बीरेंद्र सिंह और जेजेपी नेता दुष्यत चौटाला
बीजेपी नेता बीरेंद्र सिंह और जेजेपी नेता दुष्यत चौटाला
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धीरेंद्र अवस्थी

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के ऐलान के बीच हरियाणा में सियासी संघर्ष रोचक हो चला है। यह संघर्ष है हरियाणा के तीन दिग्गज परिवारों का। इसमें शामिल हैं पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल, राजनीति में अकेले पीएचडी धारक माने गए पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल और बड़े किसान नेता रहे सर छोटू राम के नाती पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार। निशाने पर सबसे ज्यादा हैं इंडियन नेशनल लोकदल को दो फाड़ कर अलग पार्टी बनाने वाले उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और अजय चौटाला।

रोचक यह भी है कि ये तीनों ही राज्य की सत्ता का हिस्सा हैं। इस संघर्ष को नया आयाम दिया है चौधरी बीरेंद्र सिंह ने। राज्य में जन नायक जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार चला रही अपनी पार्टी बीजेपी को गठबंधन सहयोगी से किनारा करने का अल्टीमेटम देकर बीरेंद्र सिंह ने राज्य की सियासत का तापमान बढ़ा दिया है। दुष्यंत का नाम लिए बिना बीरेंद्र सिंह ने 10 प्रतिशत कमीशन लेने वाला यानी मिस्टर 10 परसेंट करार देकर उनकी राह में और कांटे बो दिए हैं। 

लोकसभा चुनाव के चंद महीने पहले बीरेंद्र सिंह के सियासी दांव ने हरियाणा के दो बड़े सियासी परिवारों भजनलाल के परिवार और देवीलाल की विरासत पर दावा कर रहे दुष्यंत चौटाला की राजनीतिक संभावनाओं में एक और पेंच फंसा दिया है। अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला का गृह जिला तो सिरसा है लेकिन अलग पार्टी बनाने के बाद कोई चुनाव यहां से नहीं लड़े। जजपा नेताओं ने अपनी राजनीतिक कर्मभूमि हिसार, जींद और भिवानी को बना रखा है। बीरेंद्र सिंह और भजनलाल परिवार की राजनीतिक कर्मभूमि भी यही है। 

2 अक्तूबर को जींद में बुलाई गई रैली में बीरेंद्र सिंह ने बीजेपी को अल्टीमेटम देकर हरियाणा की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने साफ कर दिया कि वह जजपा से समझौता तोड़े नहीं तो बीरेंद्र सिंह उसके साथ नहीं रहेगा। हालांकि, खुद बीरेंद्र सिंह की बुलाई गई उस रैली में लोग उनसे बीजेपी से अलग होने का ऐलान सुनने की उम्मीद लेकर आए थे। बीरेंद्र सिंह ने बिना नाम लिए सरकार में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को काम के बदले 10 प्रतिशत रिश्वत लेने वाला मिस्टर 10 परसेंट भी करार दे दिया।


वैसे ही मुश्किल में फंसी जजपा और दुष्यंत पर चस्पा यह आरोप उनकी चुनावी राह में और भारी पड़ने वाला है, यह बात जजपा नेताओं को बखूबी मालूम है। जो बात पहले दबी जुबान हो रही थी, वह खुले मंच से बोल दी गई है। लिहाजा, अगले दिन ही चंडीगढ़ स्थित पार्टी मुख्यालय में जजपा के प्रधान महासचिव और दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला मीडिया के सामने आ गए। दिग्विजय ने बीरेंद्र सिंह से आरोपों के सबूत सामने रखने के लिए कहा। ऐसा न करने पर मानहानि केस करने की धमकी दे दी। 

दरअसल, चौधरी बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार की अदावत कई दशक पुरानी है। जींद चौधरी बीरेंद्र सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि है। हिसार से उनके बेटे आईएएस अधिकारी रहे बृजेंद्र सिंह बीजेपी से सांसद हैं। बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार का पांच बार मुकाबला हुआ है। तीन बार बीरेंद्र सिंह का परिवार जीता है जबकि दो बार चौटाला परिवार।

जींद की उचाना कलां विधानसभा सीट बीरेंद्र सिंह की पैतृक सीट है। यहां से वे पांच बार 1977, 1982, 1991, 1996 और 2005 में विधायक चुने गए हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने बीजेपी के टिकट पर दुष्यंत को जींद की उचाना में हराया था। तब दुष्यंत इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़े थे। फिर 2019 में दुष्यंत ने प्रेमलता को हरा दिया।  

उचाना से ही पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला से 2009 में एक बार बीरेंद्र सिंह 621 वोट से चुनाव हार गए थे। इस हार का दर्द बृजेंद्र सिंह आज भी नहीं भूले हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव में बृजेंद्र ने दुष्यंत को हराया था। इससे पहले 1984 में चौधरी बिरेंद्र सिंह ने ओम प्रकाश चौटाला को हिसार से लोकसभा चुनाव में बड़े अंतर से हराया था। अब बीरेंद्र सिंह के निशाने पर पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला और अभय चौटाला न होकर दुष्यंत, दिग्विजय और अजय चौटाला हैं। चौधरी देवीलाल की जयंती पर इनेलो की कैथल में हुई रैली में बीरेंद्र सिंह शामिल हुए थे। इससे पहले बीरेंद्र सिंह के जन्म दिन पर हुई जनसभा में अभय चौटाला शामिल हुए थे।  

ओम प्रकाश चौटाला का आधा परिवार बीरेंद्र सिंह के साथ होने से यह लड़ाई और दिलचस्प हो गई है। उचाना सीट से दुष्यंत विधायक और सरकार में डिप्टी सीएम हैं। उचाना वह किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते। दुष्यंत हिसार सीट से सांसद रह चुके हैं। उस सीट पर भी उनकी तगड़ी दावेदारी है। उचाना बीरेंद्र सिंह की पैतृक सीट है और हिसार से बृजेंद्र सांसद हैं। वे भी इन दोनों सीटों को नहीं छोड़ना चाहते। बीरेंद्र और बृजेंद्र ने इसका ऐलान भी कर दिया है। 


तीसरे दिग्गज भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई भी हिसार से लोकसभा का टिकट चाह रहे हैं। कुलदीप को बीजेपी ने राजस्थान का चुनाव सह प्रभारी बनाया है। भजनलाल और देवीलाल परिवार की भी पुरानी अदावत है। 1979 में देवीलाल के पास जबरदस्त बहुमत होते हुए भी जिस तरह भजन लाल ने उनका तख्ता पलट कर सरकार बनाई और खुद मुख्यमंत्री बन गए थे, वह देश के राजनीतिक इतिहास में विरल घटना के तौर पर दर्ज है।

अगली पीढ़ी में राजनीतिक अदावत जारी रही। 2004 में भिवानी सीट से कुलदीप ने देवीलाल की तीसरी पीढ़ी से आते अजय चौटाला को हराया। भजनलाल के निधन के बाद 2011 में हिसार सीट पर हुए उप चुनाव में कुलदीप ने अजय चौटाला को फिर हरा दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत ने हिसार से कुलदीप को हरा दिया। 2019 में हिसार से चुने गए बृजेंद्र के खिलाफ खड़े हुए कुलदीप के बेटे भव्य बिश्नोई जमानत भी नहीं बचा सके।  

दिलचस्प है कि बीरेंद्र और कुलदीप अभी बीजेपी में हैं जबकि दुष्यंत की पार्टी जजपा सरकार में सहयोगी है। मतलब पूरा घमासान सत्तापक्ष में ही मचा है। इसका एक पहलू यह भी है कि इनेलो ने ऐलान कर रखा है कि चुनाव आयोग ने इजाजत दी तो उचाना से ओम प्रकाश चौटाला दुष्यंत के खिलाफ लड़ेंगे।

अभय चौटाला बीरेंद्र सिंह के साथ मिलकर दुष्यंत को उचाना में ही घेरना चाह रहे हैं। साफ है कि बीरेंद्र सिंह के नए सियासी दांव से हरियाणा के बड़े सियासी परिवारों में हलचल है। यह देखना और भी दिलचस्प होगा कि हरियाणा की राजनीति में बीरेंद्र सिंह के इस दांव से कौन चित होता है।

जींद के जुलाना से दो बार विधायक रहे और देवीलाल परिवार की सियासत को नजदीक से देखने-समझने वाले परमिंदर सिंह ढुल ने नवजीवन से विशेष बातचीत में कहा कि चौधरी बीरेंद्र सिंह के कदम से तीन जिलों जींद, हिसार और कैथल की 15-20 विधानसभा सीटों पर असर पड़ने वाला है। इन सीटों में उनके वफादार लोग हैं जो उनके साथ ही रहने वाले हैं।

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