हरियाणा: अल्‍पमत में बीजेपी सरकार, 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद बिगड़ा बहुमत का गणित

हरियाणा में बीजेपी सरकार को समर्थन कर रहे तीन निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसके बाद 90 सदस्‍यीय हरियाणा विस में सरकार को समर्थन दे रहे विधायकों की संख्‍या 43 बची है।

फोटो: सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका लगा है। निर्दलीयों के भरोसे राज्‍य में चल रही BJP की सरकार को समर्थन दे रहे 3 निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है, जिसके बाद नायब सिंह सैनी के नेतृत्‍व में चल रही BJP सरकार अल्‍पमत में आ गई है। तीनों निर्दलीय विधायकों ने राज्‍यपाल को सरकार से समर्थन वापस लेने को लेकर पत्र भी लिख दिया है।

इसके बाद 90 सदस्‍यीय हरियाणा विस में सरकार को समर्थन दे रहे विधायकों की संख्‍या 43 बची है। कयास हैं कि 25 मई को हरियाणा में लोस चुनाव के लिए होने वाले मतदान से पहले BJP को एक और बड़ा झटका लग सकता है। 3 निर्दलीय विधायकों में पुंडरी से विधायक रणधीर गोलन, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और चरखी दादरी से विधायक सोमवीर सांगवान का नाम शामिल है।

हरियाणा: अल्‍पमत में बीजेपी सरकार, 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद बिगड़ा बहुमत का गणित
निर्दलीय विधायकों द्वारा राज्‍यपाल को लिखा गया सरकार से समर्थन वापसी का पत्र

निर्दलीय विधायकों का कहना है कि जनता बीजेपी को आजमा चुकी है। अब बीजेपी को अवसर देने का कोई औचित्य नहीं बनता। इस सरकार में हर वर्ग बेरोजगारी, महंगाई, बढ़ते अपराध, फैमिली आईडी, प्रॉपर्टी आईडी से दुखी है। किसान, मजदूर, कर्मचारी, व्यापारी, सरपंच, नंबरदार समेत हर वर्ग आज आंदोलनरत है। सरकार में रहते हुए उन्होंने अलग-अलग मौकों पर बीजेपी को चेताने का काम किया, लेकिन बीजेपी ने अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ी। अब जनता की उम्मीद सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस से है। हरियाणा समेत पूरे देश में कांग्रेस के इंडिया गठबंधन की लहर है। गठबंधन को जितवाने के लिए वह तीनों अपनी भागीदारी निभाएंगे और बीजेपी की हार सुनिश्चित करेंगे।

इस मौके पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए विधायकों ने यह फैसला लिया है। सही समय पर लिया गया उनका सही फैसला रंग जरूर लाएगा। लोकसभा और आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत तय है। जेजेपी और निर्दलीयों के समर्थन वापसी के बाद अब बीजेपी सरकार बहुमत खो चुकी है। इसलिए हरियाणा में तुरंत राष्ट्रपति शासन लागू करके विधानसभा चुनाव करवाए जाने चाहिए। आज जनता ही नहीं बीजेपी को वोट देने वाले और समर्थन देने वाले लोग भी सरकार की नीतियों से दुखी हैं। खुद बीजेपी के नेता व कार्यकर्ता भी इस सरकार से त्रस्त हो चुके हैं। यही वजह है कि तमाम लोग बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। अबतक 40 विधायक, पूर्व विधायक, सांसद व पूर्व सांसद समेत 100 से ज्यादा बड़े नेता पिछले डेढ़ साल में अन्य दलों से कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।

90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है। अभी करनाल और सिरसा की रानियां सीट खाली है। लिहाजा, अभी विस में 88 विधायक बचे हैं। BJP के अपने 40 विधायक हैं। अभी तक उन्हें 6 निर्दलीय और एक हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) विधायक का समर्थन था। इनमें से एक निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला व पूर्व मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस्‍तीफा दे चुके हैं। मनोहर लाल करनाल से, जबकि रणजीत चौटाला हिसार से BJP के लोस प्रत्‍याशी हैं।

अब 3 निर्दलीय विधायकों के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद BJP के पास 2 निर्दलीय व एक हलोपा विधायक गोपाल कांडा समेत 43 विधायकों का समर्थन बचा है, जबकि 88 सदस्‍यीय विस में बहुमत के लिए उसे 45 विधायक चाहिए। वहीं, अब विपक्ष में 45 विधायक हो गए हैं। इसमें 30 विधायक कांग्रेस के, 10 विधायक जेजेपी के, 4 निर्दलीय व 1 विधायक इनेलो के अभय चौटाला हैं।

क्‍या है संवैधानिक स्थिति?

सरकार अल्‍प मत में है, यह बात बिल्‍कुल साफ है। संविधान के जानकारों के दो तर्क हैं। पहला तर्क यह है कि नायब सिंह सैनी ने 12 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अगले दिन 13 मार्च को फ्लोर टेस्ट पास किया था। दो फ्लोर टेस्ट के बीच 6 महीने का गैप होना जरूरी है। साथ ही यह भी कि इसी साल मार्च 2024 में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी। अब दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए भी 6 महीने का गैप जरूरी है।

संविधान के जानकारों का दूसरा तर्क यह है कि विश्‍वास प्रस्‍ताव या अविश्‍वास प्रस्‍ताव विधानसभा में लाने के लिए 6 महीने का गैप होने की अनिवार्यता का प्रावधान कहीं नहीं है। अविश्‍वास प्रस्‍ताव का तो रूल में उल्‍लेख है, जबकि विश्‍वास प्रस्‍ताव का तो रूल में भी उल्‍लेख नहीं है। संवैधानिक एक्‍सपर्ट का कहना है कि यहां तक कि एक सत्र में भी दो बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाया जा सकता है, लेकिन दोनों के मुद्दे अलग होने चाहिए।

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