'क्या सरकारें नपुंसक हो गई हैं, जो खामोशी से सब कुछ देख रही हैं?', हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या सरकारें नपुंसक हो गई हैं, जो खामोशी से सब कुछ देख रही हैं? आखिर हेट स्पीच देने वाले के खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

हेट स्पीच की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान काफी तल्ख टिप्पणी की है। जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या सरकारें नपुंसक हो गई हैं, जो खामोशी से सब कुछ देख रही हैं? आखिर हेट स्पीच देने वाले के खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? हमारी चिंता की वजह है कि राजनेता सत्ता के लिए धर्म के इस्तेमाल को चिंता का विषय बनाते हैं। कोर्ट ने कहा कि धर्म को राजनीति से मिलाना ही हेट स्पीच का स्रोत है। बेंच ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां की हैं।

प्रदेरशन और जुलूस निकालने पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ये लोगों का अधिकार है और ये अलग बात है, लेकिन उस जुलूस में क्या किया या कहा जाता है, ये बिलकुल अलग बात है। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी अपनी इज्जत सबसे ज्यादा प्यारी होती है। ऐसे बयान दिए जाते हैं कि पाकिस्तान चले जाओ... लेकिन सच्चाई यह कि उन्होंने इस देश को चुना। कोर्ट ने कहा कि "हर दिन तुच्छ तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों पर दूसरों को बदनाम करने के लिए भाषण दे रहे हैं।" 

कोर्ट ने कहा कि हम अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं, क्योंकि राज्य समय पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य नाकाम और शक्तिहीन हो गए हैं। अगर राज्य चुप है तो उसका जिम्मा हमारे पर क्यों नहीं होना चाहिए?


सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नेहरु और वाजपेयी का भी जिक्र किया। कोर्ट ने कहा  कभी हमारे पास नेहरू, वाजपेयी जैसे वक्ता हुआ करते थे। दूर-दराज से लोग उन्हें सुनने के लिए आते थे। अब लोगों की भीड़ फालतू तत्वों को सुनने के लिए आती है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 28 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समाचार रिपोर्टों के आधार पर याचिका दायर करने पर आपत्ति जताई। मेहता ने खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना के समक्ष तर्क दिया कि पाशा उस जानकारी का उल्लेख कर रहे हैं जो केवल महाराष्ट्र से संबंधित है और याचिकाकर्ता, जो केरल से है, को महाराष्ट्र के बारे में पूरी तरह से पता है और कहा कि याचिका केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित है।

उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट की अदालत से घृणा अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए सीआरपीसी के तहत सहारा लेने की मांग कर सकता है, इसके बजाय उन्होंने कोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर की है, जो समाचार लेखों पर आधारित है।

पीठ ने कहा कि जब उसने आदेश पारित किया, तो उसे देश में मौजूदा परिस्थितियों की जानकारी थी। "हम समझते हैं कि क्या हो रहा है, इस तथ्य को गलत नहीं समझा जाना चाहिए कि हम चुप हैं।"

इस पर मेहता ने कहा : "यदि हम वास्तव में इस मुद्दे के बारे में गंभीर हैं तो कृपया याचिकाकर्ता को निर्देशित करें, जो एक सार्वजनिक उत्साही व्यक्ति है, जो सभी धर्मो में नफरत फैलाने वाले भाषणों को इकट्ठा करे और समान कार्रवाई के लिए अदालत के समक्ष रखे। वह चयनात्मक नहीं हो सकता है।" उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को वास्तविकता का पता लगाने की जरूरत है।

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