विमान से गरीब मजदूरों को वापस लाकर हेमंत सोरेन ने रचा इतिहास, यह ‘हवाई’ नहीं ‘सम्मान यात्रा’ थी
लद्दाख में फंसे झारखंड के 60 प्रवासी मजदूर आज विमान से रांची पहुंचे। इसका खर्च झारखंड सरकार ने उठाया। यह पहला मौका था, जब देश की किसी राज्य सरकार ने अपने प्रवासी मजदूरों को एयरलिफ्ट कराया। यह सिर्फ एक ‘हवाई यात्रा’ नहीं थी। यह दरअसल एक ‘सम्मान यात्रा’ थी।
![फोटोः @JharkhandCMO](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2020-05%2Fba0e2929-bba2-456c-b078-d2ee19975de8%2FJharkhand_CM.jpg?rect=0%2C0%2C1128%2C635&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
तारीख 29 मई। शाम के साढ़े सात बजे होंगे। तभी दिल्ली से आ रहे इंडिगो एयरलाइंस के विमान ने रांची एयरपोर्ट के रनवे को छुआ। फ्लाइट लैंडिंग की खबर मिलते ही एयरपोर्ट पर चहल-पहल बढ़ गई। फिर पैरों में हवाई चप्पलें या फिर फुटपाथ से खरीदे गए सस्ते जूते। माथे पर बोरा और बैगों में लटका एयरलाइंस का ‘आइएक्सआर’ और ‘डेल’ टैग के साथ चेहरे पर घर वापसी की खुशी की मुस्कान लिए करीब 60 प्रवासी मजदूर विमन से उतरकर एयरपोर्ट में दाखिल हुए।
झारखंडी की राजधानी रांची में बिरसा मुंडा के नाम पर बने एयरपोर्ट पर यह पहला मौका था, जब गरीब आदिवासी मजदूर पूरी ठसक के साथ हवाई यात्रा कर यहां पहुंचे थे। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद प्रवासी मजदूरों का स्वागत करने के लिए एयरपोर्ट पर मौजूद थे और उन्होंने गुलाब का फूल देकर इन मजदूरों का स्वागत किया।
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दरअसल इस विमान से लद्दाख में फंसे 60 झारखंडी मजदूरों की घर वापसी हुई। इसका खर्च झारखंड सरकार ने उठाया। यह पहला मौका था, जब देश की किसी राज्य सरकार ने अपने प्रवासी मजदूरों को एयरलिफ्ट कराया। यह सिर्फ एक ‘हवाई यात्रा’ नहीं थी। यह दरअसल एक ‘सम्मान यात्रा’ थी।
हाथों में गुलाब का फूल लेकर उनका इंतजार करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जब इन यात्रियों से संथाली (आदिवासियों की भाषा) में बात करनी शुरू की, तो कईयों की आंखों में आंसू की बूंदे थीं। यह नजारा कोरोना संक्रमण के बाद भारत में बनी सामाजिक व्यवस्था में एक बड़ा हस्तक्षेप था। इतिहास के पन्ने इसे लंबे वक्त तक याद रखेंगे। जब-जब इसकी चर्चा होगी, लोग कहेंगे कि एक युवा आदिवासी मुख्यमंत्री ने कैसे अपने मजदूरों को सम्मानित तरीके से अपने घर वापस बुलाया।
![फोटोः @JharkhandCMO](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2020-05%2F4c3fdafd-55b2-408d-8039-278219bd5edc%2FJharkhand_CM_2.jpg?auto=format%2Ccompress)
अब तक इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। ऐसी ही एक क्लिप में इन मजदूरों को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट की कैंटीन से लंच पैकेट लेते देखा जा रहा है। इनकी हवाई यात्रा का खर्च और रास्ते के सारे इंतजाम झारखंड में सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी की गठबंधन सरकार ने कराया था। मुख्यमंत्री ने स्वयं इसकी पहल की थी।
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इस मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि “हमारी सरकार दूर-दराज में फंसे झारखंड के मजदूरों को हवाई जहाज से लाने के लिए लगातार प्रयासरत थी। हमने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इसकी अनुमति भी मांगी थी, लेकिन वह अनुमति नहीं मिली। अब जब घरेलु उड़ानें शुरू हो चुकी हैं, हमने प्रवासी मजदूरों को हवाई जहाज से लाना शुरू किया है।”
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि “अब अंडमान से भी मजदूरों को एयरलिफ्ट कराना है। यह सिलसिला तब तक चलेगा, जब तक हमारे सारे प्रवासी मजदूरों की वापसी न हो जाए। मुझे खुशी है कि झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने मजदूरों को हवाई जहाज से लाने की मांग सबसे पहले केंद्र सरकार से की थी। हम तब उन्हें चार्टर्ड फ्लाइट से वापस लाना चाहते थे, लेकिन अनुमति नहीं मिली।”
मजदूरों की पहली हवाई यात्रा
लद्दाख के बटालिक और कारगिल इलाकों में सड़क निर्माण और दूसरे काम करने गए इन मजदूरों की यह पहली हवाई यात्रा थी। इनमें पाकुड़ जिले के पाकुड़िया प्रखंड निवासी जान पौलुस हांसदा भी शामिल थे। उन्होंने नवजीवन से कहा, “हम लोग दूर से हवाई जहाज देखते थे। कभी नहीं सोचे थे कि कभी इस पर चढ़ेंगे या इसको छूने का मौका मिलेगा। पिछले साल सितंबर में लद्दाख आए थे। यह सोचकर कि आराम से घर वापस हो जाएंगे, लेकिन कोरोना के कारण वहां फंस गए। हम लोगों ने झारखंड सरकार से गुहार लगायी और अब हवाई जहाज से हमारी वापसी हुई है। हम लोग बहुत खुश हैं और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जिंदगी भर याद रखेंगे।”
बकौल पौलुस हांसदा, लेह हवाई अड्डा पर हवाई जहाज में चढ़ने से पहले मन में डर था कि अगर पेशाब-लैट्रीन लगा, तो हवाई जहाज में कैसे करेंगे। चढ़ने पर पता चला कि उसमें भी शौचालय होता है और पेशाब करने पर नीचे नहीx गिरता है। लेकिन, हम डर से उसमें रास्ता भर नहीं गए।”
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इसी विमान से वापस आए दुमका जिले के राजेश किस्कू अपनी हवाई यात्रा से बहुत खुश थे। उन्होंने बताया, “हमलोग ट्रेन और बस से लद्दाख गए थे। इसमें तीन दिन लगता था। शुक्रवार की सुबह लेह में हवाई जहाज पर चढ़े, तो वहां ठंड थी। हम लोग जैकेट-टोपी पहने थे। डेढ़ घंटा में दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे, तो गर्मी लगने लगी। जैकेट-टोपी खोलना पड़ा। वहां हम लोगों को बहुत सुंदर खाना खिलाया गया। सामान लेना सिखाया गया। फिर दूसरे हवाई जहाज का बोर्डिंग पास बना। तब हम लोग दिल्ली से रांची पहुंचे। यहां आकर लग रहा कि हमारी जान बच गई।”
उनके सहयात्री शिवा मुर्मू ने कहा कि “हमको पता नहीं था कि हेमंत सोरेन से बात करने का मौका मिलेगा। रांची एयरपोर्ट पर जब वे हमसे बात करने लगे तो हम सकपका गए। उनको भाषण देते देखे थे। इतने नजदीक से पहली बार देखे और बात भी किए। हमारे मुख्यमंत्री ने हमको जो इज्जत दी है, हम कभी नहीं भूल पाएंगे। हम लोग गरीब हैं। एहसान चुका नहीं सकते, लेकिन भगवान उनको (हेमंत सोरेन) लंबी उम्र दें।”
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कैसे हुई यात्रा
मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हम लोगों ने पहले इन्हें चार्टर्ड फ्लाइट से लाने की योजना बनायी थी। बाद में सरकार ने इनके लिए टिकटों की बल्क बुकिंग कराई। लेह से दिल्ली तक इन्हें स्पाइस जेट से लाया गया और दिल्ली से रांची की यात्रा इंडिगो एयरलाइंस के विमान से पूरी कराई गई। लेह में हम लोगों ने 28 मई की रात से ही सभी मजदूरों को अपनी निगरानी में ले लिया था। इसमें वहां के स्थानीय प्रशासन और एयरलाइंस कंपनियों ने काफी को-ऑपरेट किया। वहां से इनकी फ्लाइट सुबह आठ बजे के बाद उड़ी और वाया दिल्ली हम इन्हें 12 घंटे के अंगर रांची तक लाने में सफल हुए।
बसों से गए घर
इन मजदूरों के रांची एयरपोर्ट पहुंचने पर सरकार की तरफ से इनके लिए फूड पैकेट और पानी का इंतजाम किया गया था। इसके बाद सभी लोगों को बसों के माध्यम से उनके गृह जिलों के लिए रवाना किया गया। 30 मई की सुबह सब लोग अपने घरों तक पहुंच जाएंगे। इनकी हेल्थ स्क्रीनिंग कराने के बाद उन्हें होम क्वारंटीन रहने के लिए कहा गया है। हालांकि, विमान में चढ़ने से पहले लेह में भी इनकी प्राइमरी हेल्थ स्क्रीनिंग करायी गई थी।
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