मायावती की बीएसपी ने की यूपी में बीजेपी को चुनाव जीतने में मदद, बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट में खुलासा

बीजेपी की रिपोर्ट के मुताबिक बेसपी ने कम से कम 122 सीटों पर समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाया। ये वे सीटें हैं जहां बीएसपी ने उसी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिन जातियों से सपा के उम्मीदवार आते थे। इससे बीजेपी को बहुत अधिक लाभ हुआ।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

आखिरकार बीजेपी ने मान ही लिया कि हाल में संपन्न यूपी विधानसभा चुनावों में उसकी जीत में मायावती की बीएसपी ने अहम भूमिका निभाई है। बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है अधिकांश सीटों पर बीएसपी की मौजूदगी ने वोटों का बंटवारा किया जिसके दम पर उसे 273 सीटें हासिल करने में कामयाबी मिली।

उत्तर प्रदेश बीजेपी ने विधानसभा चुनावों को लेकर एक विस्तृत और गहन रिपोर्ट तैयार की है और इसे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को भेजा गया है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई खास कामयाबी नहीं मिली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और दावा किया जा रहा था कि इन सीटों पर किसान आंदोलन का व्यापक असर है। लेकिन फिर भी वह इनमें से सिर्फ 8 सीटें ही जीत पाई। इसके विपरीत बीजेपी को बीएसपी उम्मीदवारों की मौजूदगी का फायदा मिला और वह बाकी सीटें जीतने में कामयाब रही।

बीजेपी की रिपोर्ट के मुताबिक बेसपी ने कम से कम 122 सीटों पर समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाया। ये वे सीटें हैं जहां बीएसपी ने उसी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिन जातियों से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आते थे। इससे बीजेपी को बहुत अधिक लाभ हुआ।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ऐसी 91 सीटें जहां समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, वहां बीएसपी ने भी मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव लड़वाया। इसी तरह 15 सीटों पर बीएसपी ने यादव उम्मीदवारों को उतारा, क्योंकि इन सीटों पर सपा ने भी यादव प्रत्याशियों को टिकट दिया था। बीजेपी को इन समीकरणों का लाभ मिला और उसने 122 में से 68 सीटों पर जीत हासिल की।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए पहले चरण के चुनाव में 58 सीटों पर मतदान हुआ था। ये सीटें मुख्यता पश्चिमी उत्तर प्रदेश की थीं जहां माना जा रहा था कि किसान आंदोलन का व्यापक प्रभाव है। हालांकि राजनीतिक पंडितों का कयास था कि इन सीटों पर बीजेपी का सूपड़ा साफ हो दाएगा, लेकिन नतीजे एकदम उलट आए। बीजेपी ने इन सीटों पर 17 जाट उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 10 ने जीत हासिल की। वहीं समाजवादी पार्टी ने 7 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया था जिनमें से 3 कामयाब रहे। आरएलडी ने 10 जाटों क उतारा था और उसके सिर्फ 4 ही विधायक बन सके। कुल मिलाकर पहले चरण में हुए मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 में से 46 सीटें बीजेपी के खाते में गईं।

बीजेपी ने माना है कि मुस्लिम और यादवों ने समाजवादी पार्टी को टूटकर वोट दिया और जहां पार्टी ने उच्च जाति के उम्मीदवार उतारे थे उन्हें भी इन दोनों समूदायों का समर्थन मिला। रिपोर्ट में कहा गया है कि लखीमपुर खीरी घटना का विपक्ष को कोई लाभ नहीं मिला और बीजेपी ने लखीमपुर जिले की सभी सीटों पर जीत हासिल की। रिपोर्ट के मुताबिक, “समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। इन सीटों पर राजभर समुदाय ने निर्णायक भूमिका निभाई।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि 214 विधायकों को फिर से मैदान में उतारने का भी बीजेपी को फायदा मिला। हालांकि शुरुआत में बीजेपी ने एक तरह से तय कर लिया था कि अधिकांश मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया जाएगा क्योंकि सत्ता विरोधी लहर का असर दिख रहा था। लेकिन बाद में 214 मौजूदा विधायकों को फिर से मैदान में उतारना लाभदायक रहा। इन 214 में से 170 विधायक दोबार जीते। इस तरह उनकी जीत का औसत 79 फीसदी रहा। इसी तरह जिन 104 सीटों पर बीजेपी ने प्रत्याशी बदले, उनमें से 80 पर बीजेपी को जीत हासिल हुई।

अंतिम नतीजों के बाद 4 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी को 500 से भी कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा जबकि सात सीटें ऐसी हैं जहां उसकी जीत का अंतर 500 से कम वोट का रहा।

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