भोपाल में 30 साल पुराना मिथक टूटेगा इस बार, ध्रुवीकरण के लिए प्रज्ञा को उतारने का बीजेपी का दांव बेकार

कांग्रेस की जीत की पहली सीढ़ी उसी दिन तैयार हो गई थी जिस दिन बीजेपी ने प्रज्ञा के नाम का ऐलान किया। बीजेपी को लगता था कि आमतौर पर मुस्लिमपरस्त की छवि वाले दिग्विजय के खिलाफ किसी धार्मिक चेहरे को उतारकर चुनाव माहौल का ध्रुवीकरण किया जा सकता है, लेकिन यह दांव उलटा ही पड़ा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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विश्वदीपक

जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि भोपाल से कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को चुनाव लड़ना चाहिए, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह चुनाव को लेकर कांग्रेस की आक्रामक रणनीति का हिस्सा है। हालांकि मीडिया के एक धड़े ने इसे कांग्रेस की अंदरूनी कलह के तौर पर प्रचारित किया लेकिन दिग्विजय ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मशविरा करने के बाद भोपाल से अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर ही दिया।

चुनाव विश्लेषकों ने हालांकि दिग्विजय के जीतने पर आशंका जाहिर की थी लेकिन अब यह साफ हो चुका है कि कांग्रेस मध्य भारत की इस प्रतिष्ठित सीट को जीतने के कगार पर पहुंच चुकी है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि जिस सीट पर पिछले तीस साल से कमल ही खिल रहा है, वहां हाथ की ताकत मजबूत हो रही है।

जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस की जीत की पहली सीढ़ी उसी दिन तैयार हो गई थी जिस दिन बीजेपी ने प्रज्ञा के नाम का ऐलान किया। बीजेपी को लगता था कि आमतौर पर मुस्लिमपरस्त की छवि वाले दिग्विजय के खिलाफ किसी धार्मिक चेहरे को उतारकर चुनाव माहौल का ध्रुवीकरण किया जा सकता है, लेकिन यह दांव उलटा ही पड़ा है।

मालेगांव विस्फोटों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को बेशक दिल्ली में और बीजेपी- समर्थक मीडिया में दमदार चुनौती के तौर पर पेश किया जा रहा है लेकिन जनता के बीच उन्हें दिग्विजय के मुकाबले कम अनुभवी और आतंकवाद के दागदार चेहरे के तौर पर ही देखा जा रहा है। रही-सही कसर महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व प्रमुख दिवंगत हेमंत करकरे के बारे में दिए गए उनके बयान ने पूरी कर दी।


प्रज्ञा सिंह ने कहा था कि करकरे की मौत उनके श्राप की वजह से हुई थी। सचाई यह है कि करकरे 26/11 के मुंबई हमले के दौरान आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। जानकारों के मुताबिक, प्रज्ञा के इस बयान से बीजेपी को दोहरा नुकसान हो रहा हैः पहला, भोपाल में रहने वाला मराठी समुदाय जिसमें करीब 2 लाख वोटर हैं, बीजेपी से नाराज हो चुका है; दूसरा, आतंकवाद के मुद्दे पर बीजेपी के दोहरा रवैये का जनता के सामने भंडाफोड़ हो चुका है।

मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री और दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ने नवजीवन से कहा कि प्रज्ञा का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन रणनीतिक रूप से कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। उन्होंने कहा, “एक तरफ प्रधामंत्री मोदी समेत बीजेपी के सभी नेता आतंकवाद को चुनावी मुद्दा बनाते हुए जनता से वोट मांगते हैं, दूसरी ओर खुद आतंकवाद के एक गंभीर आरोपी को संसद पहुंचाने के लिए लोकसभा चुनाव का टिकट थमा देते हैं। जनता इस दोहरे रवैये को माफ नहीं करेगी।” जयवर्धन के मुताबिक, बीजेपी ने प्रज्ञा को उतार कर चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश की लेकिन लड़ाई इस बार विकास बनाम विनाश की राजनीति की है।


विश्लेषक मानते हैं कि यहां बीजेपी की अंदरूनी कलह भी कांग्रेस की जीत की संभावना का बड़ा कारण है। 1989 से लगातार भोपाल सीट जीतने वाली बीजेपी के कई नेता खासतौर से 2014 में चुनाव जीतने वाले आलोक संजर, प्रज्ञा की उम्मीदवारी से खुश नहीं हैं।

बीजेपी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आलोक का टिकट किस सोच के तहत काटा गया, कार्यकर्ताओं को आज तक समझ में नहीं आया। अगर पार्टी नेतृत्व जिसका मतलब अनिवार्य रूप से अमित शाह और मोदी की जोड़ी है, ने ध्रुवीकरण की सोच के तहत प्रज्ञा को मैदान में उतारा है तो यह गलत साबित होगी क्योंकि भोपाल में सांप्रदायिकता की राजनीति को बहुसंख्यक समाज भी पसंद नहीं करता है।

उनका कहना था, “भोपाल में कई दशकों से बीजेपी जीतती आई है लेकिन यहां पिछले कई सालों में सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए। इसका सामाजिक कारण भी है। भोपाल में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं। शहरी और पढ़़ी-लिखी आबादी बीजेपी का उग्र चेहरा पसंद नहीं करती। पार्टी ने भी यहां कभी उग्र राजनीति को प्रोजेक्ट नहीं किया। ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी ने उग्र हिंदुत्ववादी चेहरे पर दांव लगाया है।”

विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी के पितृ संगठन- आरएसएस, का एक धड़ा भी ठाकुर को फायदे का कम, घाटे का सौदा मानता है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान भी एक दूरी बनाकर ही प्रज्ञा के चुनावी कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं। माना तो यह भी जाता है कि शिवराज भोपाल से अपनी पत्नी साधना सिंह के लिए टिकट चाह रहे थे। लेकिन जब मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें तवज्जो नहीं दी तो उन्होंने दूरी बना ली। दूसरा कारण यह भी बताया जा रहा है कि शिवराज के शासनकाल में ही प्रज्ञा ठाकुर से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया था। ऐसे में, वह किस मुंह से प्रज्ञा के पक्ष में लोगों से वोट मांगेंगे?

गणितीय हिसाब-किताब से भी यहां कांग्रेस का पक्ष भारी दिख रहा है। यहां चार लाख से ऊपर मुस्लिम मतदाता हैं। वे कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हैं। अन्य अल्पसंख्यक समुदायों- जैसे, सिख, सिंधी और गोरखा, समाज के लोगों ने भी कांग्रेस को मर्थन देने का ऐलान किया है। गोरखा समाज कल्याण समाज समिति के प्रमुख दिल बहादुर थापा इसकी वजह बताई, “बीजेपी के उग्रराष्ट्रवादी अभियान से उनके समाज के लोग भयभीत महसूस करते हैं।” यहां करीब 50 हजार गोरखा मतदाता हैं ।

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