उत्तरकाशी सुरंग में फंसे कामगारों के बचने की उम्मीदें अभी तक धूमिल, नए सिरे से एक साथ 5 तरीके आजमाने की तैयारी

12 नवंबर से उत्तरकाशी में एक सुरंग में फंसे 41 कामगारों को जल्द सुरक्षित निकाले जाने की उम्मीदें अभी तक धूमिल ही हैं, क्योंकि कई गलत प्रयासों के बाद अब नए सिरे से एक साथ पांच तरीके आजामने की तैयारी की जा रही है।

उत्तरकाशी में सिल्कियारा सुरंग में फंसे कामगारों को बचाने का अभियान जारी है
उत्तरकाशी में सिल्कियारा सुरंग में फंसे कामगारों को बचाने का अभियान जारी है
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ए जे प्रबल

उत्तरकाशी की सिल्कियारा सुरंग में फंसी 41 जिंदगियों को बचाने के लिए हॉलैंड से एक नई वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन (ऐसी मशीन जो ऊपर से पहाड़ में सुराख करेग) मंगाई जा रही है। सिल्कियारा सुरंग में एक सप्ताह से 41 मजदूर और जूनियर इंजीनियर फंसे हुए हैं। वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन उन पांच तरीकों में से एक है जिन्हें शनिवार को अंतिम रूप देकर आजमाने का फैसला किया गया है। इस फैसले में प्रधानमंत्री कार्यालय की उच्च स्तरीय टीम और विशेषज्ञों का सलाह मशविरा लिया गया है।

बता दें कि बीते एक सप्ताह से सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए कई तरीके आजामाए जा चुके हैं। इनमें सुरंग के अंदर सुरंग खोदने जैसी कोशिशें ही अधिक थीं। लेकिन सारे उपाय नाकाम होने के बाद विशेषज्ञों ने एक साथ पांच तरीके आजमाने का फैसला किया है। इनमें मौजूदा हॉरिजोंटल ड्रिलिंग को सिल्कियारा के छोर से जारी रखा जाएगा, साथ ही ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग कर पहाड़ में सुराख बनाने क कोशिश की जाएगी। इसी के लिए मशीन को हॉलैंड से मंगाया जा रहा है। 

तीसरा तरीका होगा सिल्कियारा सुरंग के बारकोट वाले छोर से पूरा किया जाए और पंशे हुए कामगारों को निकाला जाए। ध्यान रहे कि कामगार सिल्कियारा छोर से करीब 270 मीटर अंदर की तरफ फंसे हैं। वैसे तो दोनों तरफ से सुरंग तैयार है, बीच का 530 मीटर का हिस्सा बचा है, जिस पर काम चल रहा था। इस पूरे सुरंग की लंबामी सिल्कियारा से लेकर बारकोट तर 4531 मीटर है। सिल्कियारा की तरफ से 2340 मीटर काम पूरा हो चुका है, जबकि बारकोट छोर की तरफ से 1600 मीटर सुरंग तैयार है।

दीपावली की सुबह सिल्कियारा छोर की तरफ ही तैयार सुरंग का एक हिस्सा धंस गया, जिसमें 41 कामगार फंस गए। इस बचाव अभियान के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद ही इस बात की पड़ताल होगी कि आखिर तैयार सुरंग का हिस्सा कैसे धंस गया। फिलहाल कहा जा सकता है कि जांच और देखरेख में भारी लापरवाही बरती गई, जिसके नतीजे में यह दुर्घटना हुई। इसके साथ ही इस बात की भी आशंका प्रबल हो गई है कि कहीं बाकी तैयार हिस्सा भी न धंस जाए।


बहरहाल चौथा तरीका जो विशेषज्ञों ने सुझाया है और जिस पर काम होगा वह है भारतीय रेलवे के उस अनुभव को इस्तेमाल करना जिसमें वह सुरंगों में रेलवे पटरियां बिछाने का काम करता है। इसके अलावा पांचवा तरीका है एक साथ दो निकासी सुरंग खोदने का काम जो इस सुरंग के दोनों छोर से होगा।

लेकिन, क्या ये पांचों तरीके कारगर साबित होंगे, और क्या इन्हें आजमाने में जरूरत से ज्यादा देर नहीं कर दी गई है? इसके अलावा चिंता का एक कारण और है, और वह है कि इस ऑपरेशन में विभिन्न एजेंसिया शामिल हैं, और इस बात को लेकर कानाफूसी हो रही है कि इन सबका आपस में तालमेल सही नहीं है।

इन चिंताओं के बीच ही सुरंग में फंसे लोगों की शारीरिक और मानसिक सेहत को लेकर भी आशंकाएं बढ़ती जा रही है। हालांकि अफसरों का दावा है कि सभी कामगार ठीक हैं और उन्हें खाना, पानी, ऑक्सीजन, दवाएं, विटामिन कैप्सूल की सप्लाई के साथ ही काउंसलर और हेल्थ वर्कर्स के साथ बातचीत भी कराई जा रही है।

लेकिन शनिवार को अफसरों ने पहली बार इस बात को दबे सुरों में स्वीकारा कि सबकुछ ठीक नहीं है। और इस बात की पुष्टि इससे होती है कि जो दवाएं कामगारों को भेजी जा रही हैं उनमें एंटी डिप्रेसेंट यानी मानसिक तनाव कम करने वाली दवाएं भी शामिल हैं। सुरंग में फंसे कामगारों के ऐसे परिवार जिन्हें अपने परिजनों से बात करने का मौका मिला, उनका कहना है कि सभी नहीं तो कम से कम कुछ लोग तो बीमार या कमजोर महसूस हो रहे हैं।

इस बीच उत्तराखंड सरकार ने अपने स्तर पर काफी व्यवस्थाएं कर रखी हैं। इनमें मौके पर एंबुलेंस, जेसीबी मशीनें, ट्रक, कल-पुर्जे, ड्रिलिंग मशीनें, ऑख्सीजन और अस्थाई हैलीपैड आदि बनाने जैसे काम शामिल हैं। हैलीपैड दुर्घटना स्थल से कोई पांच किलोमीटर दूर बनाया गया है, जिसका इस्तेमाल फिलहाल विशेषज्ञों को लाने-ले जाने के लिए किया जा रहा है।

इन सारी व्यवस्थाओं और कोशिशों के बीच 41 जिंदगियां अधर में झूल रही हैं, जिनमें बड़ी संख्या झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे पूर्वी राज्यों की है। 8 कामगार उत्तर प्रदेश से हैं। दो उत्तराखंड से और एक हिमाचल प्रदेश से है।

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