उत्तराखंड में बढ़ते भूस्खलन के पीछे मानवीय लापरवाही, भुगतने होंगे भयावह परिणाम, भूवैज्ञानिक ने दी चेतावनी

गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के भूवैज्ञानिक डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट का कहना है कि अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तलहटी क्षेत्रों में तेजी से भूमि का धसाव और भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इंसानी गतिविधियां हैं।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

उत्तराखंड के पहाड़ों में लगातार भूस्खलन और भूमि के धसाव की घटनाएं अब गंभीर संकेत दे रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मनुष्य ने अपने स्वार्थ और लालच के चलते प्रकृति से छेड़छाड़ बंद नहीं की, तो आने वाले समय में इसके भयावह परिणाम भुगतने होंगे।

उत्तराखंड में बढ़ते भूस्खलन के पीछे मानवीय लापरवाही, भुगतने होंगे भयावह परिणाम, भूवैज्ञानिक ने दी चेतावनी

गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के भूवैज्ञानिक डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट का कहना है कि अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तलहटी क्षेत्रों में तेजी से भूमि का धसाव और भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इंसानी गतिविधियां हैं। उन्होंने कहा कि इंसान ने प्रकृति के साथ चलना छोड़ दिया है और विकास के नाम पर लगातार पहाड़ों को कमजोर किया जा रहा है। अंधाधुंध कटान, टनल, होटल व लॉज का निर्माण और असंगठित भवन गतिविधियां पहाड़ की मजबूती को कमजोर कर रही हैं।

उत्तराखंड में बढ़ते भूस्खलन के पीछे मानवीय लापरवाही, भुगतने होंगे भयावह परिणाम, भूवैज्ञानिक ने दी चेतावनी

डॉ. बिष्ट के अनुसार, इंसान वहां बस रहा है, जहां उसे नहीं रहना चाहिए। संवेदनशील जोन में बस्तियों और निर्माण गतिविधियों के कारण नए-नए डेंजर जोन बन रहे हैं। अगर समय रहते इंसान नहीं संभला तो आने वाले वर्षों में विनाशकारी स्थितियां सामने आ सकती हैं।

भूवैज्ञानिक ने 2013 की केदारनाथ आपदा का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय अलकनंदा और मंदाकिनी घाटियों में भारी तबाही हुई थी। पहाड़ों में जमा मलबा बारिश और भू धसाव के बाद नीचे खिसक गया, जिससे बड़े पैमाने पर तबाही हुई। इसके बावजूद इंसान ने सबक नहीं सीखा और आज भी असुरक्षित मलबे के ऊपर सड़क और इमारतें बनाई जा रही हैं।

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उन्होंने चेतावनी दी कि चाहे कितने भी करोड़ रुपये खर्च कर दिए जाएं, अगर पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना को नजरअंदाज किया गया, तो यह मलबा और ढलाव एक दिन जरूर खिसकेगा, जिससे और बड़े हादसे होंगे।

डॉ. बिष्ट ने कहा, "प्रकृति इंसान के इशारों पर नहीं चलती, बल्कि इंसान को प्रकृति के इशारों पर चलना होगा। जहां रहने योग्य स्थिति नहीं है, वहां बसावट नहीं करनी चाहिए। विकास योजनाओं में वैज्ञानिकों और भूवैज्ञानिकों की राय अनिवार्य रूप से शामिल की जानी चाहिए।


डॉ. बिष्ट ने कहा कि भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में वैश्विक कारण भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, ध्रुवीय क्षेत्रों में बदलाव और प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियां भी हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को और बढ़ा रही हैं।

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