मनुष्यों ने पक्षियों, जानवरों और पेड़-पौधों तक को बदल डाला, शेष सभी जीवन नष्ट होने के कगार पर!

मनुष्य ने मौसम बदला, पर्यावरण बदला, भू-पटल बदला, महासागरों को बदला और हवा को भी बदल डाला। बहुत सारे नतीजे तो हम रोजमर्रा की जिन्दगी में देखते हैं और अनुभव भी करते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

मनुष्य ने अपनी गतिविधियों से दुनिया को इतना बदल डाला है कि अब प्राकृतिक कुछ बचा ही नहीं है। बहुत सारे वैज्ञानिक, इस दौर को मानव युग कहने लगे हैं। मनुष्य ने मौसम बदला, पर्यावरण बदला, भू-पटल बदला, महासागरों को बदला और हवा को भी बदल डाला। बहुत सारे नतीजे तो हम रोजमर्रा की जिन्दगी में देखते हैं और अनुभव भी करते हैं। इन्हीं बदलाव में से एक प्रमुख बदलाव है, पक्षियों, जानवरों और पेड़-पौधों को बदलना। जो कुछ भी मनुष्य को अच्छा लगा, वह आज दिखता है और शेष सभी जीवन नष्ट होने के कगार पर हैं।

हाल में ही प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में मनुष्यों द्वारा पालतू बनाए गए कुल स्तनपाई मवेशियों का वजन भूमि पर और महासागरों में रहने वाले स्तनपाई वन्यजीवों की तुलना में कई गुना अधिक हो गया है। इस अध्ययन को इजराइल के विजमान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने किया है, और यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है।

इस अध्ययन के अनुसार दुनिया में भूमि पर रहने वाले स्तनपाई वन्यजीवों का सम्मिलित वजन लगभग 2 करोड़ टन है, और महासागरों के स्तनपाइयों का सम्मिलित वजन लगभग 4 करोड़ टन है। इनकी तुलना में दुनिया में मनुष्यों द्वारा पाले गए स्तनपाई मवेशियों का सम्मिलित वजन 63 करोड़ टन है– यह वजन भूमि के स्तनपाई वन्यजीवों की तुलना में 30 गुना अधिक और महासागरों के स्तनपाइयों की तुलना में 15 गुना अधिक है। मनुष्यों द्वारा पाले गए स्तनपाई मवेशियों के वजन में पालतू कुत्तों और बिल्ली का भार शामिल नहीं किया गया है – अनुमान है कि पालतू कुत्तों का भार लगभग 2 करोड़ टन है, यह भार भूमि के समस्त स्तनपाई वन्यजीवों के बराबर है। पालतू बिल्लियों का सम्मिलित भार 20 लाख टन है, यह भार सभी अफ्रीकी हाथियों के सम्मिलित भार 13 लाख टन से भी बहुत अधिक है।


मनुष्यों द्वारा पालतू स्तनपाई मवेशियों के सम्मिलित भार 63 करोड़ टन में सबसे अधिक गायों का भार 41.6 करोड़ टन, भैसों का भार 6.8 करोड़ टन, भेड़ों का 3.9 करोड़ टन, सूअरों का 3.8 करोड़ टन और बकरियों का सम्मिलित भार 3.2 करोड़ टन है। भूमि पर रहने वाले स्तनपाई वन्यजीवों के सम्मिलित भार 2 करोड़ टन में सबसे अधिक भार 27 लाख टन सफेद पूंछ वाले हिरणों का है, इसके बाद 19 लाख टन के साथ जंगली सूअर दूसरे स्थान पर हैं। अफ्रीकन हाथियों का सम्मिलित भार 13 लाख टन है, जबकि भारत में मिलने वाले एशियाई हाथियों का सम्मिलित भार अफ्रीकन हाथियों की तुलना में महज 10 प्रतिशत ही है। दुनिया की पूरी आबादी का सम्मिलित भार 39 करोड़ टन है, इस सन्दर्भ में देखें तो हरेक मनुष्य के हिस्से 2.7 किलोग्राम स्तनपाई वन्यजीव हैं। पृथ्वी के पूरे बायोमास में से महज 0.47 प्रतिशत सभी प्रकार के वन्यजीवों का सम्मिलित भार है, और सभी वन्यजीवों के सम्मिलित भार में 6.5 प्रतिशत भार स्तनपाई वन्यजीवों का है।

अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार सभी पालतू स्तनपाई मवेशियों की कुल संख्या में से 40 प्रतिशत संख्या गायों की है। दुनिया की कुल गायों में से 30 प्रतिशत गायें भारत में हैं, जिनका सम्मिलित भार सभी पालतू स्तनपाइयों के सम्मिलित भार का 12 प्रतिशत है। गायें पृथ्वी के स्तनपाइयों के कुल भार का 40 प्रतिशत हैं, मनुष्य 36 प्रतिशत हैं, दूसरे पालतू मवेशी 18 प्रतिशत हैं और स्तनपाई वन्यजीवों की संख्या महज 6 प्रतिशत है।

डॉ कर्यस बेनेट, लीसेस्टर यूनिवर्सिटी में जियोलॉजिस्ट हैं और इन्होने रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस नामक जर्नल में एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। इसके अनुसार दुनिया भर में मुर्गे के मांस की खपत इतनी अधिक बढ़ गई है कि हाल के वर्षों में किसी भी समय पर दुनिया में रीढधारी जानवरों में सबसे अधिक संख्या में मुर्गे हैं। अनुमान है कि किसी भी समय दुनिया में 23 अरब जीवित मुर्गे रहते हैं। डॉ बेनेट के अनुसार यह सही मायने में मुर्गा युग है। प्रकृति में प्रजातियों के विकास में लाखों वर्ष का समय लगता है, पर मनुष्य ने मुर्गे का अपने अनुसार विकास कुछ दशकों के भीतर ही कर लिया है। मुर्गा, आज के दौर में मानव के सर्वव्यापी प्रभावों का सबसे बड़ा सूचक है। डॉ कर्यस बेनेट के अनुसार जैसे बाजार में धीरे-धीरे छोटी दुकानें गायब हो रही हैं और सुपरमार्केट पसरते जा रहे हैं, वैसे ही मुर्गे का विकास होता गया और बहुत सारे दूसरे पक्षी विलुप्त होते गए।

ब्रायलर चिकन की उत्पत्ति दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाने वाले रेड जंगल फाउल से हुई है। इन्हें मनुष्य ने लगभग 8000 वर्ष पहले पालना शुरू किया और वर्ष 1950 के बाद इसे बाजार के अनुरूप परिवर्तित करना शुरू किया। अब इसमें इतने परिवर्तन आ चुके हैं कि यह अपने पूर्वजों से पूरी तरह से अलग हो चुका है। अब इसमें मांस अधिक होता है और यह तेजी से बढ़ता है। मांस खाकर लोग इसकी हड्डियाँ फेंक देते हैं जिन्हें अकसर जमीन के नीचे दबा दिया जाता है। ये कड़ी होती हैं इसलिए लम्बे समय में इनके जीवाश्म बनाने की संभावनाएं अधिक हैं। डॉ कर्यस बेनेट के अनुसार आने वाली पीढ़ियां, यदि तापमान वृद्धि के बाद भी बची रहीं तब जब कभी अपने आसपास का माहौल देखेंगी तब मुर्गे के हड्डियों की भारी संख्या को देखकर आज के पीडी के मुर्गा प्रेम पर आश्चर्य करेंगी।


लंदन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज के वैज्ञानिक डॉ टिम न्यूबोल्ड की अगवाई में किए गए एक अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में जिस प्रकार से परम्परागत खेती के बदले आधुनिक खेती का दौर चल रहा है, और शहरों की संख्या बढ़ती जा रही है, उससे दुनियाभर में एक ही तरह के ही पक्षी और जानवर पनपने लगे हैं। हरेक शहर में कबूतर किसी भी पक्षी से अधिक हो गए हैं और चूहे पूरी दुनिया में फैल गए हैं। इसका कारण यह है कि कबूतर और चूहे पहले भी अनेक परिवेश में पनप रहे थे, शहरीकरण और कृषि विस्तार के कारण छोटे क्षेत्र में सीमित रहने वाले अधिकतर पशु, पक्षी और वनस्पति विलुप्त हो चुके हैं, या विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रहे हैं। पीलोस बायोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन को 81 देशों के 20000 पक्षियों, पशुओं और वनस्पतियों की प्रजातियों के अध्ययन के आधार पर तैयार किया गया है।

इतना तो स्पष्ट है कि आदमी ने पूरी दुनिया को अपने तरीके से बदल डाला है। इस बदलाव में जीवन का वही स्वरूप पनपेगा जो इसकी आदतों के अनुरूप हो, या फिर कबूतर और चूहे जैसा हो जो कहीं भी और किसी भी माहौल में पनप सके।

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