झारखंड: आधार से लिंक होते ही आईसीआईसीआई बैंक ने कर दिए मनरेगा मज़दूरों के खाते फ्रीज़

मनरेगा के तहत काम करने वालों मजदूरों के खाते आईसीआईसी बैंक ने बिना उनकी जानकारी के फ्रीज़ कर दिए हैं। यानी अब मजदूर बैंक से पैसा नहीं निकाल सकते। बैंक ने ऐसा तब किया जब मजदूरों ने अपने खाते आधार से लिंक कराए।

फोटो : सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

झारखंड में वर्षों से मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी को आधार से लिंक करने की कोशिशें हो रही थीं, लेकिन किसी न किसी कारण से यह हो नहीं पा रहा था। हर सप्ताह मजदूरों को भुगतान करने में कोई न कोई दिक्कत आ रही थी। इस बार यह दिक्कत आई है झारखंड के गुमला और पूर्वी सिंहभूम जिले में। ये दोनों जिले पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से लगे हुए हैं।

पूर्वी सिंहभूम जिले के बोराम ब्लॉत में 250 से ज्यादा मजदूरों को अगस्त 2018 के बाद से मजदूरी नहीं मिली है, क्योंकि बैंक ने मजदूरों की जानकारी के बिना उनके खाते आधार से लिंक कर दिए। राज्य के दूसरे हिस्सों में भी अब सर्वे कराया जा रहा है कि कहीं और भी मजदूरों के मेहनताने में देरी तो नहीं हो रही है। गुमला जिले में भी ऐसी ही समस्या से मनरेगा मजदूर दोचार हैं।

मई 2018 में आरबीआई द्वारा प्रतिबंधित की गई फिनो पेमेंट बैंक ने बोराम ब्लॉक के मजदूरों के लगभग 16,000 खाते आईसीआईसी बैंक में खुलवाए। हालांकि मजदूरों का बैंक ऑफ इंडिया में पहले से खाता था, इसलिए उनकी मजदूरी का पैसा उनके बैंक ऑफ इंडिया खाते में आता रहा। लेकिन जुलाई-अगस्त 2018 में किसी समय फिनो बैंक ने इन मजदूरों के आईसीआईसीआई बैंक में खातों का ई-केवाईसी कराने के लिए उन्हें मजदूरों के आधार से लिंक करा दिया। इसके साथ ही इन मजदूरों का आधार और खाता नेशनेल पेमेंट कार्पोरेशन से जुड़ गया। आधार लिंक होने के बाद मजदूरों का भुगतान आईसीआईसीआई बैंक में जाने लगा, लेकिन मजदूर इन खातों से पैसा निकाल नहीं पा रहे हैं। बैंक ने कई किस्म की वजहें बताकर इन खातों को निष्क्रिय यानी फ्रीज़ कर दिया है।

फिनो बैंक के प्रतिनिधि दावा करते हैं कि ऐसा करने से पहले बैंक ने मजदूरों की सहमति ली थी, लेकिन सहमति लेते वक्त मजदूरों को यह नहीं बताया गया था कि अब उनकी मजदूरी आईसीआईसीआई बैंक में जाएगी और अगर आधार का मिलान नहीं हुआ तो पैसा नहीं निकाला जा सकेगा।

राइट टू फूड कैंपेन से जुड़े कार्यकर्ता सिराज दत्ता का कहना है कि, “बहुत से मजदूरों के बैंक ऑफ इंडिया की स्थानीय शाखा में खाते थे और वे उसी से लेनदेन करते थे। लेकिन अब पैसा आईसीआईसीआई बैंक में जा रहा है जहां से पैसा निकालने में कई तरह की समस्या आ रही है।” दत्ता ने इस बारे में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांता दास को 24 जनवरी 2019 को पत्र भी लिखा है।

नियमानुसार मनरेगा का पैसा सरकार द्वारा उस खाते में भेजा जाता है जो आखिरी बार आधार कार्ड से लिंक होता है। इस मामले में मजदूरों के आईसीआईसीआई बैंक खाते आधार से लिंक हैं। समस्या यह है कि आईसीआईसीआई बैंक की शाखा गांव से 40 किलोमीटर दूर है और सबसे नजदीकी शहर जमशेदपुर है। दूसरी तरफ बैंक ऑफ इंडिया की शाखा इस ब्लॉक में ही है।

इस मामले को कई मंचों पर उठाए जाने के बावजूद मजदूरों की समस्या जस की तस है।

दिसंबर 2018 में फिनो पेमेंट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक के रांची रीजनल कार्यालय से संपर्क किया गया था, लेकिन खाते फ्रीज़ होने का असली कारण उन्हें नहीं पता था। अलबत्ता उन्होंने बताया कि अगर ई-केवाईसी वेरिफिकेशन दोबारा कराया जाए तो खाते चालू हो सकते हैं। लेकिन कई मजदूरों को ऐसा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कुछ के नाम की स्पेलिंग गलत है तो कुछ के नाम बैंक खाते के नाम और आधार कार्ड के नाम से नहीं मिलते।

दूसरी तरफ इस समस्या की जटिलता को मानने से इनकार करते हुए फिनो बैंक के प्रतिनिधि राघवेंद्र ने बताया कि, “सड़क पर बेशुमार कारें दौड़ती हैं, लेकिन कुछ ही दुर्घटना का शिकार होती हैं। इस मामले में भी कुछ ही मजदूरों की मजदूरी फंसी हुई है।” उन्होंने बताया कि, “कुछ मजदूर सीमेंट मिलाने का काम करते हैं, इसके चलते उनकी उंगलियों के निशान बिगड़ जाते हैं, जो बैंक में मिलान करने में समस्या करते हैं। फिर भी हम हर चार-पांच दिन में ब्लॉक जाकर मजदूरों की समस्या का समाधान करते हैं।” राघवेंद्र ने कहा कि अगर मजदूरों को आईसीआईसीआई बैंक आने में दिक्कत हो रही है तो वे वापस बैंक ऑफ इंडिया में अपना आधार लिंक करा लें।

लेकिन हकीकत राघवेंद्र के दावे से बिल्कुल अलग है। मजदूरों को कई महीने से मेहनताना नहीं मिला है। इस बारे में दांगदूत गांव के मजदूरों ने ब्लॉक प्रशासन से 30 अक्टूबर को लिखित शिकायत की थी, लेकिन इस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। मनरेगा का एक नियम यह भी है कि मजदूरों को 15 दिन के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए। अगर भुगतान में देरी होती है तो उन्हें इसका हर्जाना मिलना चाहिए।

बोराम ब्लॉक के विकास अधिकारी राकेश कुमार गोपे एक तरफ तो मानते हैं कि भुगतान में देरी हुई है, लेकिन साथ ही कहते हैं कि, “मुझे सही संख्या नहीं पता है। कुछ मजदूरों को भुगतान हुआ है, लेकिन काफी नहीं मिल सका है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही मामले का हल निकल आएगा। मैं भी आईसीआईसीआई बैंक को इस बारे में नोटिस भेजूंगा।”

गौरतलब है कि झारखंड में मनरेगा के तहत काम करने वालों को 168 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं, जो कि देश में सबसे कम है। इसके अलावा बहुत से ऐसे मजदूर भी हैं जिन्हें 20 दिन और कुछ को 16 से भुगतान नहीं मिला है। इस तरह उनकी कुल रकम सिर्फ 3,360 रुपए ही है, फिर भी उन्हें अपनी मजदूरी के लिए इधर-उधर दौड़ना पड़ रहा है। इस सबका असर यह हुआ है कि भुगतान न मिलने के चलते बहुत से लोगों ने मनरेगा में काम करना बंद कर दिया है।

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