‘देश में वायू प्रदूषण पर नहीं लगी लगाम तो केंद्रीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए बचेंगे ही नहीं लोग’

4 साल पहले चीन ने अपने यहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सभी कारखानों और कंपनियों को देश से बाहर विकासशील देशों में ले जाने का आदेश दिया। वही कंपनियां मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत में आईं और यहां जमकर प्रदूषण फैला रही हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 10 फीसदी तक ले जाने जैसी केंद्रीय योजनाओं को धता बताते हुए पर्यावरणविद् जयधर गुप्ता ने कहा कि आधे से ज्यादा राज्यों को इसकी बुनियादी चीजों के बारे में ही नहीं पता है और इन सब योजनाओं का देश के लोगों को क्या फायदा, जब वह इसका लाभ उठाने के लिए बचेंगे ही नहीं।

‘माई राइट टू ब्रीथ’ के संस्थापक सदस्य और पर्यावरणविद् जयधर गुप्ता ने कहा, “देश में चल रही स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 10 फीसदी तक ले जाने जैसी विभिन्न योजनाओं का कोई फायदा नहीं होना वाला है, क्योंकि पर्यावरण की हालत बहुत खराब स्तर पर पहुंच गई है। जब लोग इस खतरनाक माहौल में बचेंगे ही नहीं तो इन सब चीजों का क्या फायदा।”

उन्होंने कहा, “चार साल पहले चीन ने अपने यहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सभी कारखानों, कंपनियों को देश से बाहर भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे विकासशील देशों में ले जाने का आदेश दिया और इन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया। वही कंपनियां भारत के मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत आई और यहां जमकर प्रदूषण फैला रही हैं।”

उन्होंने कहा, “इसका सबसे बड़ा कारण भारत जैसे विकासशील देशों में इन कंपनियों, कारखानों के लिए नियम सही तरीके से लागू नहीं होना है। कंपनियां यहां आकर करोड़ों रुपये का व्यापार करती हैं, प्रदूषण फैलाती हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं और मात्र दो से चार लाख रुपये अधिकारियों को रिश्वत देकर बच निकलती हैं।”

प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौतें होती हैं। देश में वर्ष 2015 में 25 लाख लोगों को वायु प्रदूषण से अपनी जान गंवानी पड़ी। वहीं चीन इस मामले में दूसरे नंबर पर रहा, जहां 18 लाख लोग वायु प्रदूषण की भेंट चढ़ गए। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में दुनिया भर में अनुमानित 90 लाख लोग प्रदूषण का शिकार हुए, जिसमें भारत की 28 प्रतिशत हिस्सेदारी रही।

वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के कारणों के बारे में बताते हुए जयधर गुप्ता ने बताया, “आईआईटी कानपुर हर साल कहां कितना प्रदूषण हो रहा है, कैसे हो रहा इसकी जांच करने के लिए प्रदूषण जांच कार्यक्रम चलाती है। इसमें खुलासा हुआ है कि सबसे ज्यादा प्रदूषण 21 फीसदी ऑटोमोबाइल जगत से हो रहा है, विशेषकर दुपहिया और ट्रक जैसे वाहनों से। दुपहिया वाहनों में लगे इंजन इतनी खराब गुणवत्ता के हैं इनका प्रयोग सिर्फ भारत में ही हो सकता है। आम जनता दो से चार हजार रुपये बचाने के चक्कर में खराब गुणवत्ता के इंजन वाले दुपहिया वाहनों को खरीदती है और अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।”

उन्होंने बताया, “वहीं ट्रकों में प्रयोग होना वाला डीजल बिल्कुल ही खराब ईंधन है। विकसित देशों में डीजल का प्रयोग कम किया जाता है। डीजल पेट्रोल के मुकाबले 60 से 70 फीसदी प्रदूषण फैलाता है। यही कारण है कि विकसित देशों में डीजल पेट्रोल से सात से नौ गुणा तक महंगा होता है। जबकि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा विकासशील देश होगा, जहां डीजल पेट्रोल से सस्ता है। इसके पीछे सरकार का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि उसने डीजल पर सब्सिडी दी हुई है, जिसके कारण यहां भारी वाहनों में डीजल का प्रयोग होता है और प्रदूषण फैलता है।”

उन्होंने ने कहा, “वायु प्रदूषण के पीछे एक और बड़ा कारण पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाना भी है। किसानों के मुद्दे पर सरकार मुंह बंद रखा करती है। हर साल इन राज्यों में फसल के अवशेष जलाए जाते हैं लेकिन सरकार हाथ पर हाथ डाले बैठी रहती है। राज्य सरकारें 10 से 12 किसानों पर मामला दर्ज कर अपना पल्ला झाड़ लेती है लेकिन कार्रवाई कोई नहीं करता। इसके समाधान के लिए सरकार को चाहिए कि वह पराली जलाने की इस व्यवस्था को तटवर्ती इलाकों में कराए ताकि वह धुआं समुद्री हवा के सहारे बाहर निकाले।”

उन्होंने कहा, “इन सबके पीछे वोट बैंक की राजनीति है। हर सरकार अपना वोटबैंक बचाने में जुटी रहती है। जंगलों के जंगल काटे जा रहे हैं लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लोगों ने पांच-पांच मंजिला मकान बनाकर खुद को उसमें कैद कर लिया है। अगर लोग ऐसे ही दीवारें ऊंची करके कैद होते जाएंगे तो उन्हें साफ हवा मिलना दूभर हो जाएगा।”

उन्होंने कहा, “हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने वर्ष 2016 में दुनिया के सबसे प्रदूषित 15 शहरों की सूची जारी की है, जिसमें भारत के 14 शहर शामिल हैं। संगठन ने विश्व के 859 शहरों की वायु गुणवत्ता के आंकड़ों का विश्लेषण किया था। आपको जानकर हैरत होगी कि इन 14 शहरों में एक नाम श्रीनगर का भी है। जब घाटी का यह हाल है यह तो बाकी देश का क्या होगा।”

उन्होंने बताया, “इन्हीं सब कारणों की वजह से हमने एक ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ बनाया था, जिसका मसौदा हमने कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन सरकार ने उसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और उसमें बिना हमारे प्रावधानों को सुने तीन महीने पहले एक व्यर्थ सा कार्यक्रम लागू कर दिया, लेकिन हमने हार नहीं मानी और उसका विरोध किया, जिसके बाद केंद्र सरकार ने इसी महीने वायु प्रदूषण पर एक प्रभावी कार्यक्रम लागू करने का वादा किया है।”

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