अगली वार्ता से पहले किसानों का ऐलान, अगर नहीं मानी बात तो 6 जनवरी को करेंगे ट्रैक्टर मार्च
लगातार सरकार के साथ बैठकों के बाद भी कोई हल न निकलने पर अब किसानों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दे दी है। आज किसान नेताओं ने साफ कह दिया कि अगर 4 जनवरी को कृषि कानूनों को वापस लेने पर फैसला नहीं हुआ तो 6 जनवरी को किसान ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे।
![फोटोः सोशल मीडिया](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2021-01%2Fd3c2cc63-1cc2-4d80-ac66-c1b348ca940d%2FFarmers_at_singhu_border.jpg?rect=0%2C0%2C696%2C392&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों का आंदोलन आज 37वें दिन में प्रवेश कर गया। लगातार सरकार के साथ बैठकों के बाद भी कोई फैसला न निकलने पर अब किसानों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दे दी है। शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किसान नेताओं ने साफ कह दिया है कि अगर 4 जनवरी को कृषि कानूनों को वापस लेने पर फैसला नहीं हुआ तो 6 जनवरी को किसान ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से योगेंद्र यादव ने कहा कि पिछली बैठक में 50 प्रतिशत मुद्दों को हल करने के सरकार के दावे झूठे हैं। हमारी दो मुख्य मांगों- तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी पर कोई फैसला नहीं हुआ है। योगेंद्र यादव ने कहा कि अगली बैठक में मुद्दे का हल नहीं निकलने पर 6 तारीख से 20 तारीख तक पूरे देश में देश जागृति अभियान चलाया जाएगा।
स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने ये भी कहा कि सरकार ने 4 जनवरी की वार्ता में हमारी मांगें नहीं मानी तो किसान शाहजहांपुर बॉर्डर से मार्च करेंगे। इस दौरान भारतीय किसान यूनियन के युधवीर सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार किसानों को हल्के में ले रही है। शाहीन बाग प्रदर्शनकारियों को हटाने में सरकार सक्षम थी, वे हमारे साथ भी ऐसा ही करने की सोच रहे हैं, लेकिन ऐसा दिन कभी नहीं आएगा। अगर सरकार 4 जनवरी को फैसला नहीं लेती है तो किसानों को फैसला लेना होगा।
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का शुक्रवार को 37वां दिन है। आंदोलनकारी किसान संगठन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। इसी बात पर पेंच फंसा हुआ है जिसके कारण छह दौर की वार्ता होने के बावजूद किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई है।
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