संविधान का एक शब्द भी छुआ गया तो हम पूरी ताकत से लड़ेंगेः खड़गे

खड़गे ने कहा कि आरएसएस हमेशा गरीबों, दलितों और अनुसूचित जाति और पिछड़ोंं के खिलाफ है। यदि उन्हें इतनी ही रुचि है, तो वे अस्पृश्यता को हटा सकते थे। उनका दावा है कि वे हिंदू धर्म के चैंपियन हैं। यदि वे ऐसे हैं, तो उन्हें अस्पृश्यता को खत्म कर देना चाहिए।

संविधान का एक शब्द भी छुआ गया तो हम पूरी ताकत से लड़ेंगेः खड़गे (फोटोः विपिन)
संविधान का एक शब्द भी छुआ गया तो हम पूरी ताकत से लड़ेंगेः खड़गे (फोटोः विपिन)
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को कहा कि अगर संविधान में किसी एक शब्द को भी छुआ गया तो इसके खिलाफ उनकी पार्टी पूरी ताकत से लड़ेगी। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों की समीक्षा करने की मांग सिर्फ दत्तात्रेय होसबाले का मत नहीं है, बल्कि आरएसएस का मत है। खड़गे ने प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने संबंधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के आह्वान पर यह टिप्पणी की।

बेंगलुरु में अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत में खड़गे ने दावा किया कि होसबाले ‘मनुस्मृति’ को मानने वाले व्यक्ति हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘वह नहीं चाहते कि गरीब वर्ग के लोग आगे आएं। जो हजारों साल पहले होता था, वह उसी व्यवस्था को जारी रखना चाहते हैं। इसलिए उन्हें समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पसंद नहीं है।’’


खड़गे के मुताबिक, ये सिर्फ होसबाले का मत नहीं है, बल्कि आरएसएस का मत है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘आरएसएस हमेशा गरीब लोगों, दलितों और अनुसूचित जाति और अन्य समुदायों के खिलाफ है। यदि उन्हें इतनी ही रुचि है, तो वे अस्पृश्यता को हटा सकते थे। उनका दावा है कि वे हिंदू धर्म के चैंपियन हैं। यदि वे ऐसे हैं, तो उन्हें अस्पृश्यता को खत्म कर देना चाहिए।’’

राज्यसभा में विपक्ष के नेता ने यह भी कहा कि आरएसएस को अपने सभी स्वयंसेवकों को यह सुनिश्चित करने के लिए तैनात करना चाहिए कि अस्पृश्यता दूर हो और देश को एकजुट रखा जाए। खड़गे ने कहा, ‘‘इसके बजाय, केवल बातें करना, शोर मचाना और देश में भ्रम पैदा करना, बुरी बात है और हम इसके खिलाफ हैं। अगर संविधान में किसी भी शब्द को छुआ गया तो पार्टी पूरी ताकत से लड़ेगी।’’


पिछले सप्ताह नई दिल्ली में आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबाले ने कहा था, ‘‘बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।’’ उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बाद में चर्चा हुई लेकिन प्रस्तावना से उन्हें हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। होसबाले ने कहा, ‘‘इसलिए उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए।’’ होसबाले की इस टिप्पणी का विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया है।

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