हरियाणा में अब सरपंचों पर बरसीं पुलिस की लाठियां, सरपंचों ने खट्टर सरकार को चेताया, बोले- चले हुए कारतूस नहीं, तोप...

ओपीएस को लेकर हुए प्रदर्शन में पुलिस ने आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन का इस्तेमाल करते हुए कर्मचारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था, जिसके बाद खट्टर सरकार सवालों के घेरे में थी। अब सरपंचों पर भी लाठियां बरसी हैं।

फोटो: धीरेंद्र अवस्थी
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धीरेंद्र अवस्थी

ओल्‍ड पेंशन स्‍कीम मांग रहे सरकारी कर्मचारियों के बाद अब सरपंचों पर भी हरियाणा पुलिस की लाठियां बरसी हैं। हरियाणा के हजारों सरपंच ई-टेंडरिंग के खिलाफ सड़क पर उतरे। प्रदर्शन कर रहे सरपंच सरकार के इस फैसले के खिलाफ हरियाणा के मुख्यमंत्री आवास घेरने पहुंचे थे। प्रदर्शनकारियों ने खट्टर सरकार के चेतानवी देते हुए कहा कि वो लोग चले हुए कारतूस नहीं हैं बल्कि तोप का गोला हैं। उनमें इस सरकार को हिला देने की माद्दा है। उन्होंने कहा कि सरपंच चोर या बेईमान नहीं हैं। बल्कि वह देश की सबसे सशक्त इकाई ग्राम पंचायत के चुने हुए नुमाइंदे हैं। जैसे इस सरकार को संवैधानिक अधिकार प्राप्‍त हैं वैसे ही ग्राम पंचायतों के नुमाइंदे के तौर पर उनके अधिकार भी संविधान प्रदत्त हैं।  

हरियाणा सरकार के पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली का एक बयान उनके गले की फांस बन गया है। दरअसल पंचायतों में 2 लाख से अधिक के कार्य ई-टेंडरिंग से करवाने के सरकार के फरमान के खिलाफ आंदोलन का आगाज होने के वक्त ही देवेंद्र बबली ने विरोध करने वाले सरपंचों को चले हुए कारतूस बता दिया था। पंचायत मंत्री का यह बयान उनके लिए मुसीबत बन गया है। बुधवार को पूरे हरियाणा से चंडीगढ़ मुख्यमंत्री का आवास घेरने आए हजारों सरपंचों ने सरकार को बता दिया है कि हम चले हुए कारतूस नहीं हैं। हम तोप का गोला हैं और यदि यह चल गया तो सरकार को उड़ने से कोई नहीं बचा पाएगा।

फोटो: धीरेंद्र अवस्थी
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पंचकूला में जुटे पूरे राज्य से आए सरपंचों को रोकने के लिए चंडीगढ़ सीमा को पुलिस छावनी में तबदील कर दिया गया था। बावजूद इसके सरपंच और उनके समर्थकों की तादाद देख कर पुलिस की सांसें फूल रही थीं। सरपंचों के चंडीगढ़ सीमा पर लगाए गए बैरिकेड्स पर चढ़ने पर पुलिस ने बल का प्रयोग भी किया। पुलिस और प्रदर्शनकारी सरपंचों के बीच धक्का मुक्की भी हुई। बाद में पुलिस ने सरपंचों पर लाठियां भांजी। प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल थीं। किसान यूनियन के अध्‍यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी और नवीन जयहिंद भी सरपंचों के प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आए थे। पुलिस द्वारा पंचकूला-चंडीगढ़ बॉर्डर पर ही उन्‍हें रोके जाने के बाद सरपंच वहीं धरने पर बैठ गए। ओपीएस को लेकर हुए प्रदर्शन में पुलिस ने आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन का इस्तेमाल करते हुए कर्मचारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था, जिसके बाद खट्टर सरकार सवालों के घेरे में थी। अब सरपंचों पर भी लाठियां बरसी हैं। प्रदर्शनकारी सरपंचों ने ई-टेंडरिंग पर सरकार के रवैये के लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया है। 

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सरपंच एसोसिएशन के प्रदेश प्रधान रणबीर समैण ने इस आंदोलन को गांव देहात बचाओ आंदोलन नाम दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार की धक्काशाही के खिलाफ लड़ाई है। ओपीएस के साथ पंचायतों में ई-टेंडरिंग के खिलाफ तकरीबन 2 महीने से चल रहा आंदोलन सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। हालात ऐसे बन गए हैं कि तकरीबन दो महीने पहले हो चुके पंचायत चुनावों के बावजूद गांवों में विकास ठप है। सरपंच ऐलान कर चुके हैं कि जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती तब तक वह गांवों में विकास का कोई काम नहीं होने देंगे। हरियाणा में तकरीबन साढ़े छह हजार ग्राम पंचायतें हैं। इस मुद्दे पर न सिर्फ सरकार बल्कि सहयोगी जन नायक जनता पार्टी में भी घमासान छिड़ा हुआ है।

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दो दिन पहले ही चंडीगढ़ के हरियाणा निवास में पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली और सरपंचों के बीच वार्ता फेल हो गई थी। बातचीत फेल होने के बाद सरपंचों ने वहीं ऐलान कर दिया था कि 1 मार्च को वह चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री का आवास घेरेंगे। सरपंचों का कहना था कि हम मंत्री का ज्ञान सुनने नहीं आए थे। उन्होंने मंत्री से कहा कि वह चोर या बेईमान नहीं हैं। मंत्री से उन्होंने पंचायतों में 20 लाख तक के कार्य बिना ई-टेंडरिंग के करवाने की मांग की थी। यही नहीं उनका कहना था कि संविधान में पंचायतों को दिए गए सभी 29 अधिकार उन्हें चाहिए। नाराज सरपंचों ने वहीं सरकार के खिलाफ नारेबाजी की थी, जिसके बाद पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली ने संतुलन खोते हुए अपनी ही पार्टी के सुप्रीमो अजय चौटाला और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ को नसीहत दे दी थी। जेजेपी से ही विधायक पंचायत मंत्री ने मर्यादा में रहने की सीख पर कह दिया था कि वह संगठन में हैं और मैं सरकार में। वह अपना काम करें और मैं अपना काम कर रहा रहा हूं।

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इसके बाद दुष्‍यंत चौटाला के छोटे भाई और जजपा महासचिव दिग्विजय चौटाला ने देवेंद्र बबली को अपने दायरे में रहकर बयानबाजी करने की न सिर्फ नसीहत दी थी बल्कि कृषि कानूनों की तरह ये फैसला भी सरकार को वापस लेना पड़ेगा जैसा बयान देकर सरकार में भागीदार दोनों दलों के बीच सब कुछ ठीक न होने का भी संकेत दे दिया। उसके अगले दिन अजय चौटाला ने देवेंद्र बबली को पागल कह दिया। अब हालात ऐसे हैं कि इस मुद्दे पर सरकार में भागीदार दोनों दल ही आमने-सामने हैं। मुख्यमंत्री एक दिन पहले ही एक बार फिर ई-टेंडरिंग के समर्थन में बयान दे चुके हैं। पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली पर सीएम का वरदहस्‍त माना जाता है, जबकि बबली दुष्‍यंत चौटाला की जेजेपी से विधायक हैं। सरकार की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई है। जेजेपी खुलकर कह रही है कि सरकार को अपना यह फरमान कृषि कानूनों की तरह वापस लेना होगा। मामला सरपंचों का हैं। ग्रामीण समर्थन के सहारे ही हरियाणा की सत्ता में भागीदार बनने का करिश्मा कर चुकी और किसान आंदोलन के बाद दरक चुकी जमीन पर खड़ी जेजेपी कोई रिश्‍क लेने का मतलब जानती है।    

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