ऐसे में चारधाम हेलीकॉप्टर हादसे तो होंगे ही, पहाड़ी क्षेत्र में हेलीकॉप्टर संचालन खतरनाक बना रहेगा!
पर्वतीय इलाकों में उड़ान भरने में दशकों का अनुभव रखने वाले एक पायलट के मुताबिक, ‘इस क्षेत्र में उड़ान भरने के लिए क्षेत्र-विशेष के प्रशिक्षण और इलाके के बारे में गहरी जानकारी जरूरी है। लेकिन यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा।’

लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) राजवीर सिंह चौहान को अंदाजा नहीं रहा होगा कि 15 जून कुछ अलग होगा। वह एक अनुभवी पायलट थे और वह हिमालयी मार्ग पर उड़ान भरते हुए तीर्थयात्रियों को केदारनाथ से गुप्तकाशी तक ले जाते रहे थे। उस सुबह सात लोग उनके बेल 407 हेलीकॉप्टर में सवार हुए। सुबह 5.19 बजे उन्होंने उड़ान भरी और दस मिनट बाद ही वह इस दुनिया से चले गए।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि विमान एक ओर झुक गया था और पेड़ से टकराने के बाद उसमें आग लग गई। कई पायलटों का मानना है कि इसका कारण मौसम की वह घटना थी जिसे स्थानीय बोलचाल में ‘रामबारा एक्सप्रेस’ कहते हैं और इसमें अचानक घना कोहरा बन जाता है जिससे दृश्यता लगभग शून्य हो जाती है। चौहान को जिस संकरे घुमावदार गलियारे से उड़ान भरनी थी, उसमें इधर-उधर होने के लिहाज से जगह बहुत कम थी और घने कोहरे की वजह से रामबारा मोड़ में दृश्यता खत्म हो जाने से हादसा हो गया। इस इलाके में यह कोई अकेली त्रासदी नहीं। चार धाम यात्रा शुरू होने के सिर्फ छह हफ्तों में पांच हेलीकॉप्टर हादसे हो चुके हैं।
8 मई को उत्तरकाशी के पास बेल 407 हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से पायलट समेत छह लोगों की मौत हो गई। हेलीकॉप्टर देहरादून से हरशिल के हेलीपैड के लिए जा रहा था और मौसम के अचानक बदलने के कारण पहाड़ी से टकरा गया।
12 मई को बद्रीनाथ में एक हेलीकॉप्टर का ब्लेड एक गाड़ी से टकरा गया, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
17 मई को एक एम्बुलेंस हेलीकॉप्टर को तकनीकी खराबी के कारण केदारनाथ में उतरना पड़ा। सौभाग्य से विमान में सवार किसी भी यात्री को चोट नहीं आई।
7 जून को रुद्रप्रयाग से केदारनाथ के लिए उड़ान भर रहा केस्ट्रेल एविएटन प्राइवेट लिमिटेड के हेलीकॉप्टर को तकनीकी खराबी के कारण राजमार्ग पर उतरना पड़ा। पायलट कैप्टन आरपीएस सोढ़ी ने हेलीकॉप्टर को हेलीपैड के बगल में राजमार्ग पर सुरक्षित उतारने में सफल रहे।
पर्वतीय इलाकों में उड़ान भरने में दशकों का अनुभव रखने वाले एक पायलट के मुताबिक, ‘इस क्षेत्र में उड़ान भरने के लिए क्षेत्र-विशेष के प्रशिक्षण और इलाके के बारे में गहरी जानकारी जरूरी है। लेकिन यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा।’ कई निजी कंपनियां रिटायर्ड सैन्य पायलटों को काम पर रखती हैं। बेशक ये पायलट अनुभवी होते हैं लेकिन उनमें इन संकरी, घुमावदार घाटियों से उड़ान भरने के लिए जरूरी कौशल का अभाव होता है।’
विमानन विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (यूसीएडीए) ने इन हेलीकॉप्टर सेवाओं को बुनियादी प्रावधानों के बिना ही संचालन की अनुमति दे दी। इस क्षेत्र में हेलीकॉप्टर बिना राडार, बिना वास्तविक मौसम अपडेट और बिना हवाई यातायात नियंत्रण के उड़ते हैं। पायलट मौसम की स्थिति का पता लगाने और उसका आकलन करने के लिए आंखों की रोशनी और रेडियो संपर्क पर निर्भर रहते हैं।
हालिया हादसों से चिंतित नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने प्रत्येक धाम के लिए उड़ानों की संख्या घटा दी है। केदारनाथ में रोजाना 250-300 उड़ानें हो रही थीं। 2022 में ऐसे ही एक हादसे में मारे गए कैप्टन अनिल सिंह की पत्नी रमन जीत सिंह का मानना है कि ये हादसे ‘अजीब’ नहीं। एक स्थानीय मीडिया हाउस से बातचीत में वह कहती हैं, ‘मेरे पति ने बिना राडार, बिना इलाके की मैपिंग और अप्रत्याशित मौसम में उड़ान भरी। जब तक केदारनाथ में उचित विमानन प्रणाली और सख्त एसओपी अमल में नहीं आते, पायलट अंधेरे में उड़ान भरते और मरते रहेंगे।’
उत्तराखंड में सुरक्षा की स्थिति मुंबई हाई से संचालित अत्यधिक विनियमित अपतटीय हेलीकॉप्टर सेवाओं के एकदम उलट है, जहां 12-15 ट्विन-इंजन हेलीकॉप्टर रोजाना 30 उड़ानें भरते हैं, जिन्हें अनुभवी पूर्व सैन्य पायलट कड़े नियम-कायदे, सुरक्षा प्रोटोकॉल और पल-पल की मौसम संबंधी जानकारी के तहत उड़ाते हैं। ये उड़ानें साल के 365 दिन चौबीसों घंटे चलती हैं लेकिन तब इन्हें रोक दिया जाता है जब बेस अथवा गंतव्य पर दृश्यता 1,000 मीटर से कम हो।
पायलट यूनियनों और सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल उड़ानों को रोककर उड़ान सेवा मालिकों, पायलटों, इंजीनियरों, डीजीसीए और यूसीएडीए को सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल तय करने चाहिए। केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवा 2007-2008 में शुरू हुई थी जब कुछ उद्यमी ऑपरेटरों ने अगस्तमुनि से उड़ानें शुरू कीं। तीर्थयात्रियों को केदारनाथ हेलीपैड तक ले जाया जाता था।
जल प्रबंधन सलाहकार आयुष जोशी कहते हैं कि केदारनाथ में रोजाना 40,000 तीर्थयात्री आते हैं। सस्ते हेलीकॉप्टर टिकटों ने इन सेवाओं की मांग खासी बढ़ा दी है। उन्होंने बताया, ‘गौरीकुंड से केदारनाथ (4,000 रुपये) तक की टट्टू की सवारी हेलीकॉप्टर टिकट (3,000 रुपये) से महंगी है।’ 2016 से केदारनाथ परिचालन के लिए अनुबंध एक निविदा प्रक्रिया से दिए जाते हैं, जो आमतौर पर तीन साल के लिए होते हैं। गुप्तकाशी और सीतापुर के बीच के खंड में नौ ऑपरेटर काम करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस संकट की जड़ दोषपूर्ण वित्तीय मॉडल है। हेलीकॉप्टर ऑपरेटर को चार माह के भीतर लागत वसूलकर मुनाफा कमाना होता है। ये बड़ी कंपनियां नहीं होतीं, बल्कि अक्सर छोटी स्टार्टअप होती हैं जो कम मार्जिन के साथ 40-50 हेलीकॉप्टरों का बेड़ा तैयार करती हैं। निविदा दस्तावेजों के अनुबंध अत्यधिक शोषणकारी हैं। इनमें से कुछ अनुबंध संबंधी समझौतों में प्रत्येक सीजन के दौरान 10 मुफ्त उड़ान घंटे शामिल हैं और ऐसा न करने पर यूसीएडीए द्वारा 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा; यूसीएडीए के सीईओ की लिखित मंजूरी के बाद ही हेलीकॉप्टर वापस लिया जा सकता है। किसी तकनीकी खराबी को ठीक करने में 2-3 दिन लग जाते हैं जबकि यूसीएडीए पेनाल्टी राशि दोगुनी कर देती है और आठ दिन बीत जाने पर ठेका रद्द कर दिया जाता है।
सभी टिकटों की बुकिंग यूसीएडीए के जरिये ऑनलाइन की जाती है और किराये का तीन प्रतिशत यात्रा सुविधा शुल्क के तौर पर लिया जाता है। इसके अलावा ऑपरेटर सरकारी हेलीपैड पर लैंडिंग शुल्क के रूप में हर हफ्ते 5,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करता है। यूसीएडीए भले कमाई कर रहा हो, लेकिन दुर्घटना की स्थिति में इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती- चाहे कानूनी हो या वित्तीय। ये जिम्मेदारियां ऑपरेटरों की होती है। पायलट से रोजाना 50 लैंडिंग की अपेक्षा होती है। एक विमानन तकनीशियन ने कहा, ‘उन्होंने पायलटों को मशीन बना दिया है। आराम या सावधानी के लिए कोई जगह नहीं - केवल टार्गेट और पेनाल्टी है।’
और भी नुकसान
ये कम उड़ान वाली हेलीकॉप्टर सेवाएं स्थानीय वन्यजीवों और हिम तेंदुए, कस्तूरी मृग और हिमालयी तहर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों को भी प्रभावित कर रही हैं। ओक, चीड़ और बर्च के पेड़ों सहित क्षेत्र की ऊंचाई वाली वनस्पतियां भी खतरे में हैं। पर्यावरणविद् रीनू पॉल आगाह करती हैं, ‘हेलीकॉप्टरों की लगातार आवाजाही से इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में भूस्खलन और हिमस्खलन बढ़ गए हैं।’ राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने राज्य सरकार से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की वहन क्षमता का आकलन करने को कहा था, लेकिन रिपोर्ट कभी पूरी नहीं हुई। पर्यटकों की संख्या बढ़कर सालाना छह करोड़ हो गई है जो असहनीय है।
इस यात्रा में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से ज्यादातर बुजुर्ग हैं। आर्यन एविएशन के खिलाफ लापरवाही के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है और इसके संचालन को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन क्या इससे सुधार होगा? जब तक सुरक्षा तीर्थयात्रा का अहम हिस्सा नहीं बनती, चार धाम क्षेत्र में हेलीकॉप्टर संचालन खतरनाक बना रहेगा - पायलटों, यात्रियों और पहाड़ों के लिए।
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