योगी जी चुनावी घोषणा तो कर दी स्कूल फीस माफ करने की, लेकिन शासनादेश जारी नहीं होगा तो कैसे मानेंगे स्कूल!

कोरोना काल में सबको आर्थिक तंगी हो गई। इस दौरान योगी सरकार ने अभिभावकों को राहत देने को लेकर जितनी भी घोषणाएं की, वे सब बेमानी ही साबित हुई हैं। सरकार ने घोषणा की थी कि कोई स्कूल फीस बढ़ोतरी नहीं करेगा। लेकिन लखनऊ से लेकर गोरखपुर तक सभी नामी स्कूलों ने आदेश मानने से इंकार कर दिया।

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के संतोष

उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के किसान मनोज जोशी अपनी दोनों बेटियों को एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाते हैं। बीते 3 अक्टूबर को लखनऊ में छात्रवृति वितरण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब दो बेटियों में से एक की फीस माफी की घोषणा की, तो उन्हें राहत की उम्मीद जगी। वह तब से ही रोज स्कूल और बीएसए कार्यालय जा रहे हैं। दोनों जगह यह कहते हुए लौटा दिया जा रहा है कि अभी कोई शासनादेश नहीं आया है। वहीं, बंद कमरे में स्कूल प्रबंधक अभिभावकों को समझा रहे हैं कि चुनावी घोषणा है। किसी आदेश की उम्मीद भी नहीं है।

दरअसल, कोरोना काल में सबको आर्थिक तंगी हो गई। बादल अब भी नहीं छंटे हैं। लेकिन इस दौरान योगी सरकार ने अभिभावकों को राहत देने को लेकर जितनी भी घोषणाएं की, वे सब बेमानी ही साबित हुई हैं। प्रदेश में मंत्री दिनेश शर्मा ने घोषणा की थी कि कोरोना काल में कोई स्कूल प्रबंधन फीस बढ़ोतरी नहीं करेगा। लेकिन लखनऊ हो या वाराणसी, गोरखपुर हो या गाजियाबाद- सूबे के 75 जिलों में सभी नामी स्कूलों ने आदेश मानने से इंकार कर दिया।

गाजियाबाद के ईश्वर सिंह बताते हैं कि ‘बेटा जिस स्कूल में पढ़ता है, वहां पिछले साल कुल वार्षिक फीस 24,648 रुपये थी। इस बार 27,512 रुपये है, यानी करीब तीन हजार रुपये अधिक। पिछले वर्ष जो परीक्षा हुई ही नहीं, उसके लिए परीक्षा फीस 1,000 रुपये भरनी पड़ी। इस बार भी परीक्षा शुल्क के नाम पर 2,000 रुपये वसूले गए। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री के पोर्टल पर करने का भी कोई लाभ नहीं हुआ।’

लखनऊ में ब्यूटी पार्लर संचालित करने वाली रीतू कहती हैं कि ‘स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा वार्षिक और परीक्षा शुल्क भी वसूल रहे हैं। बिना स्कूल खुले खेल, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, विज्ञान, कम्प्यूटर से लेकर वार्षिक उत्सव के नाम पर फीस वसूली की गई। स्कूल वालों ने ट्यूशन फीस तो नहीं बढ़ाया लेकिन कम्पोजिट फीस के नाम पर बढ़ोत्तरी की है।’

निजी स्कूलों के उत्पीड़न से बच्चों को आत्महत्या तक करना पड़ रही है। कानपुर में फीस के लिए प्रिंसिपल की फटकार से आहत 15 वर्षीय स्मृति अवस्थी ने आत्महत्या कर ली। अपनी इकलौती बेटी को खोने के बाद पिता सुशील और मां रेणु बेसुध रहते हैं। सुशील कहते हैं कि ‘बेटी को अफसर बनाने की लालसा में सब मेहनत भूल गया। लेकिन अब सब बर्बाद हो गया।’ वाराणसी में निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर अभिभावकों ने शिकायत की। बीएसए ने खंड शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमेटी बना दी लेकिन हुआ कुछ नहीं।

फीस को लेकर अभिभावकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों को 70 फीसदी ट्यूशन फीस लेने को कहा था। इसके बाद भी स्कूलों ने सरकार की अनदेखी के चलते खूब मनमानी की। लखनऊ में बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संजीव पांडेय ने सिटी मॉन्टेसरी स्कूल प्रबंधन पर फीस को लेकर बच्चों के साथ अभिभावकों के मानसिक उत्पीड़न का केस दर्ज कराया लेकिन स्कूल प्रबंधन को हाईकोर्ट से राहत मिल गई। वाराणसी के एक होटल में मैनेजर रबीश श्रीवास्तव कहते हैं कि ‘अखबारों को प्राइवेट स्कूल वाले मोटा विज्ञापन देते हैं, ऐसे में मीडिया भी अभिभावकों-छात्रों की परेशानी पर ध्यान ही नहीं देता।’


गरीबों को कैसे मिले दाखिला

गरीबों को नामी प्राइवेट स्कूलों में दाखिला को लेकर प्रदेश में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 लागू है। योजना के तहत निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले गरीब बच्चों के अभिभावकों के खाते में स्कूल ड्रेस और कॉपी-किताब के लिए 5,000 रुपये और स्कूलों को प्रतिमाह 450 रुपये की दर से फीस दी जाती है। पिछले तीन वर्षों से सरकार ने स्कूलों का भुगतान नहीं किया है, इसलिए निजी स्कूल गरीब बच्चों का दाखिला नहीं लेने के हजार बहाने तलाश रहे हैं। लखनऊ में तो प्राइवेट स्कूलों ने आरटीई के तहत पुराना बकाया नहीं मिलने तक एडमिशन लेने से इंकार कर दिया है।

राजधानी में 13,000 से अधिक गरीब एडमिशन के लिए भटक रहे हैं। पूरे प्रदेश में यह आकड़ा डेढ़लाख से अधिक है। वाराणसी में आरटीई के तहत 6,982 बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला नहीं मिला। कानपुर में तीन चरणों में मिले 6,078 आवेदनों में से सिर्फ 1,625 बच्चों का ही दाखिला हुआ। लखनऊ में अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन (यूपीएसए) के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल का कहना है कि ‘प्रदेश सरकार ने पिछले तीन वर्षों में 250 करोड़ से अधिक का भुगतान रोक रखा है। योजना में प्रति बच्चा 450 रुपये महीने की दर से स्कूल को भुगतान होता है।’ गोरखपुर में एक बड़े स्कूल के प्रबंधक कहते हैं कि ‘वास्तविक गरीब बच्चों का दाखिला नहीं हो रहा है। दिल्ली की तरह यहां भी एसी कमरों में बैठ कर कथित गरीब बच्चे ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। जांच हो तो फर्जीवाड़ा करने वाले आधे से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं के बच्चे निकलेंगे।’

कॉन्वेंट स्कूल बंदी के कगार पर

पिछले दो-तीन दशकों के दौरान शहरों के विभिन्न इलाकों में खुले कॉन्वेंट स्कूलों से कोरोना काल में लोगों ने अपने बच्चों को हटा लिया है। इस वजह से सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला बढ़ा है। सिर्फ गाजीपुर जिले में 10,000 से अधिक बच्चों ने कॉन्वेंट स्कूलों को छोड़कर बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में दाखिला ले लिया है। यहां के बीएसए हेमंत राव इसके पीछे क्वालिटी एजुकेशन का दावा करते हैं। हालांकि गाजीपुर के किसान सुशील राय इसका गणित बताते हुए कहते हैं कि ‘गांव और कस्बों के कॉन्वेंट स्कूलों में फीस को लेकर तमाम दबाव है। ऐसे में लोगों ने साल बर्बाद होने के भय से बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में एडमिशन करा लिया। वहां स्कूल ड्रेस से लेकर मिड डे मील का पैसा खाते में मिल जा रहा है।’

लखनऊ में प्री प्राइमरी स्कूल अध्यक्ष तुसार छेतवानी ने पिछले दिनों सर्वे कराया था जिसमें 330 से अधिक छोटे स्कूलों में तालाबंदी की बात सामने आई थी। छेतवानी का कहना है कि ‘बड़े स्कूलों ने तो फीस वसूल ली लेकिन प्ले और छोटे स्कूल सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। सरकार ने इन स्कूलों के लिए कुछ नहीं किया।’ मऊ में एक स्कूल के प्रबंधक यज्ञदेव कहते हैं कि ‘छोटे स्कूलों में न एडमिशन है न ही उन्हें फीस मिल रही।’ आरटीई के दाखिले को लेकर आंदोलन कर रहे यूथ कांग्रेस के अभिजीत पाठक कहते हैं कि ‘रोज नया शिगूफा देने वाली योगी सरकार ने अभिभावकों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। अफसर से लेकर मीडिया तक में शिकायत की कोई सुनवाई नहीं है।’

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