एक डिजिटल कॉलोनी में बदल गया है भारत, विवादों में फंसा फेसबुक है नई ईस्ट इंडिया कंपनी

‘अगर आप फेसबुक को पैसे दें तो जैसा “राजनीतिक” विज्ञापन चाहें वह चला देगा, भले वह झूठ ही क्यों न हो। इतना ही नहीं, ऐसे झूठे विज्ञापन का प्रभाव अधिकतम हो, इसके लिए वह इसे उन लोगों तक भी पहुंचाने में मदद करेगा जिन्हें लक्ष्य करके वह विज्ञापन दिया गया।’

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

ब्रिटिश-अमेरिकी हास्य कलाकार साचा बैरन कोहेन ने हाल ही में बोलने की स्वतंत्रता पर आयोजित एक सेमिनार में कहा, “... अगर आप फेसबुक को पैसे दें तो जैसा “राजनीतिक” विज्ञापन चाहें वह चला देगा, भले वह झूठ ही क्यों न हो। इतना ही नहीं, ऐसे झूठे विज्ञापन का प्रभाव अधिकतम हो, इसके लिए वह इसे उन लोगों तक भी पहुंचाने में मदद करेगा जिन्हें लक्ष्य करके वह विज्ञापन दिया गया। इस तरह तो अगर फेसबुक 1930 के दशक में होता तो यह हिटलर को “यहूदी समस्या” के “समाधान” पर 30-सेकंड का विज्ञापन चलाने की अनुमति दे देता।”

कोहेन को भारत में तो ज्यादा लोग नहीं जानते लेकिन वह ‘डिजिटल साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद’ पर बात करने वाले लोगों के दुनियाभर में बढ़ते कुनबे में जरूर हैं। उन्होंने फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग पर तीखी टिप्पणियां की हैं। 14 अगस्त को जब वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यह प्रकाशित किया कि भारत में फेसबुक के अधिकारियों ने कम-से-कम तीन मौकों पर बीजेपी नेताओं के अकाउंट पर इस भय से रोक नहीं लगाई कि वे लोग फेसबुक के व्यावसायिक हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, उसके बाद से कोहेन के उस भाषण वाले वीडियो को खूब शेयर किया जा रहा है।


सूचना के डिजिटल प्रवाह को तय करने वाली ‘सिलिकन सिक्स’ यानी सिलिकॉन वैली की छह टेकनोलॉजी कंपनियों को लेकर संदेह बढ़ता ही जा रहा है। ये कंपनियां दुनिया के तमाम देशों में जांच के दायरे में आती जा रही हैं लेकिन भारत में उन्हें बेरोकटोक कुछ भी करने की अनुमति है, बावजूद इसके कि ‘फ्रीबेसिक्स’ स्कीम के माध्यम से चुनिंदा वेबसाइटों तक मुफ्त पहुंच उपलब्ध कराने में वे असफल रहीं।

भारत में फेसबुक की अभूतपूर्व पहुंच है। यहां लगभग 60 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जिनमें 40 करोड़ से अधिक फेसबुक और फेसबुक के स्वामित्व वाले वाट्सएप का उपयोग करते हैं। फेसबुक की पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत का सबसे बड़ा अंग्रेजी अखबार भी 50 लाख से अधिक लोगों तक पहुंचने का दावा नहीं कर सकता। अभी देश की 40 फीसदी आबादी के पास इंटरनेट की सुविधा है और अब भी टेक कंपनियों के लिए अपनी पैठ बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं और ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह ही ये कंपनियां कई सदियों तक शोषण कर सकती हैं। ऐसे समय जब डाटा को नए तेल की तरह देखा जा रहा है, यह वक्त डिजिटल उपनिवेशवाद का है और भारत के सामने खास तौर पर यह चुनौती है।

पिछले पांच साल फेसबुक इंडिया के लिए बेहतरीन रहे हैं। 2014-15 में 100 करोड़ रुपये से भी कम कमाने वाले फेसबुक ने 2018-19 में 892 करोड़ की कमाई की जानकारी दी है। भारत में आर्थिक मंदी के बावजूद, फेसबुक की व्यापक पहुंच को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले समयमें उसकी कमाई बढ़ेगी ही। हां, यह पता नहीं कि फेसबुक की कितनी कमाई राजनीतिक दलों या राजनीतिक विज्ञापनों से हुई। 2018 में बमुश्किल 16 साल पुरानी इस कंपनी की वैश्विक आय 55 अरब डॉलर थी जिसमें से 21 अरब डॉलर का लाभ था। भारतीय रुपये में लाभ 140 हजार करोड़ रुपये के आसपास था और इस तरह फेसबुक दुनिया का सबसे बड़ा विपणन और विज्ञापन प्लेटफॉर्म बन गया।

लेकिन अब तो फेसबुक ने भारतीय उपयोगकर्ताओं का भारी-भरकम डाटा इकट्ठा कर लिया है और कैलिफोर्निया में बैठे उसके होशियार इंजीनियरों ने भारतीयों के व्यवहार औरउनकी प्राथमिकताओं का विश्लेषण कर लिया है और इस तरह फेसबुक को कंटेंट और डाटा- दोनों के जरिये कमाई का मौका मिल रहा है। अफसोस की बात है कि भारतीय मोटे तौर पर फेसबुक के व्यापार और उसके कमाई मॉडल के प्रति उदासीन ही हैं।

भारत में कंपनी का दांव ठीक बैठे, इसके लिए फेसबुक ने इसी साल जियो में 43 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया है। रिलायंस के पास 38 करोड़ ग्राहक हैं। यह आंकड़ा मार्च तक का है। यह संख्या उसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी से दोगुना है। सरकार ने चार साल पहले जियो को मुफ्त सेवाएं उपलब्ध कराने की विवादास्पद अनुमति दे दी थी जो जाहिर है कि उसके प्रतिद्वंद्वियों के लिए बुरी खबर थी। आज स्थिति यह है कि फेसबुक भारत के सबसे बड़े विज्ञापनदाताओं और प्रायोजकों में से एक है और कोई भी मीडिया हाउस उसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। फेसबुक के खिलाफ खबरें नहीं आने की वजहें और भी हैं- मीडिया घरानों, फैक्टचेकिंग वेबसाइट, थिंक टैंक और एनजीओ के साथ साझेदारी करने में फेसबुक काफी उदार तो है ही, यह अच्छा वेतन देने वाले श्रेष्ठ नियोक्ताओं में शुमारहै और इसके अलावा वह पत्रकारों और ऊंचे संपर्क वाले लोगों को मोटी तनख्वाह पर अपने यहां रखता भी है।


“... रोमांचक! अंखी और उनकी टीम को बधाई! यह बड़ीबात है क्योंकि... भारत का प्रथम नागरिक अपने शपथ ग्रहणके 24 घंटे के भीतर फेसबुक पर होता है... राष्ट्रपति 77 वर्ष के हैं और वे नए मीडिया से बहुत परिचित नहीं हैं। इसलिए, उन्हें समझाने में स्वाभाविक चुनौतियां थीं। अंततः हम सफल हुए…।” वर्ष2012 का यह फेसबुक का आंतरिक कम्युनिकेशन बताता है कि फेसबुक और भारत, मध्य और दक्षिण एशिया के लिए सार्वजनिक नीति प्रमुख अंखी दास के काम करने का तरीका क्या है।

सुश्री दास आजकल खबरों में हैं क्योंकि हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल में आई रिपोर्ट में उनका नाम प्रमुखता से आया जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने तीन दक्षिणपंथी नेताओं के खातों को ब्लॉक करने की अपनी ही टीम की सिफारिशों को ठुकरा दिया था। इन नेताओं ने मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को भड़काकर फेसबुक के मानकों का उल्लंघन किया था। अंखी ने यह तर्क देते हुए सिफारिश ठुकराई कि इससे भारत में फेसबुक के वाणिज्यिक और व्यावसायिक हितों को नुकसान होगा। हालांकि खुद फेसबुक दावा करता है कि उसके यहां फेक न्यूज, घृणा फैलाने वाली बयानबाजी और हिंसा भड़काने वाले पोस्टको रोकने की सुदृढ़ व्यवस्थाहै। वह उदाहरणदेता है किकैसे उसने भारत में हजारों फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया, पन्नों को हटा दिया क्योंकि वे उसके सामुदायिक मानकों पर खरे नहीं उतरते थे। फेसबुक का दावा है किउसने दुनिया भर में 2 करोड़ से ज्यादा खातों और पन्नों को हटाया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक फेसबुक इंडिया के प्रबंध निदेशक अजित मोहन ने एक आंतरिक संदेश में अंखी दास का समर्थन किया है, हालांकि फेसबुक के कर्मचारी चाहते हैं कि इसकी जांच हो कि भारत में कहां कैसे गड़बड़ी हो गई। अंखी दास 2011 से फेसबुक के साथ हैं और इस दौरान भारत में कंपनी दिन-दूनी रात-चौगुनी रफ्तार से बढ़ी।

फेसबुक ने अपने कर्मचारियों के लिए अलग से एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बना रखा है। वैसे, इनका फेसबुक पर एक आम अकाउंट भी है जिसे कोई भी देख सकता है। एक अच्छी लॉबिस्ट की तरह आम तौर पर सुश्रीदास अपने फेसबुक वॉल पर अपने विचार नहीं रखतीं, बस शुभकामना वगैरह के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं लेकिन हाल ही में उनका एक पोस्टबर बस ध्यान खींचता है। उन्होंने हिंदी के कवि गोरख पांडे की कुछ पंक्तियां पोस्ट कीं:

राजा बोला रात है

रानी बोली रात है

मंत्रीबोला रात है

संतरी बोला रात है

ये सुबह-सुबह की बात है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने फेसबुक का इस्तेमाल किया और अभी यह मामला तूल पकड़ ही रहा था कि सरकार और बीजेपी दूनी ताकत से फेसबुक के बचाव में कूद पड़े। पूर्व सूचना और प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ में एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने फेसबुक पर लगाए आरोपों को बेबुनियाद बताया तो बीजेपी सांसद राजीव चंद्रशेखर ने टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय पेज पर लेख लिखा। कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मीडिया से बातचीत में कांग्रेस को लंदन स्थित कैम्ब्रिज एनालिटिका के साथ उसके कथित संबंधों की याद दिलाई जिसने चुनावों में अपने ग्राहकों के फायदे के लिए फेसबुक उपयोगकर्ताओं के डाटा का इस्तेमाल किया था। मंत्री महोदय इस्रायली सॉफ्टवेयर पेगासस को भूल गए जिसका इस्तेमाल कम-से-कम 40 जाने-माने भारतीयों के वाट्सएप संदेश पर निगरानी रखने के लिए किया गया। भारत सरकार इस बात पर मौन है कि क्या उसने यह सॉफ्टवेयर खरीदा और अगर खरीदा तो इसका इस्तेमाल कैसे हुआ? न तो ये जनाब यह बताते हैं कि अगर सरकार गड़बड़ी को लेकर इतनी ही आश्वस्त थी तो उसने कैम्ब्रिज एनालिटिका के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? अगर भारत सरकार और बीजेपी के पास छिपाने को कुछ नहीं है, तो उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति से जांच का विरोध क्यों किया?


फेक न्यूज पर बीजेपी की दोहरी नीतियां जगजाहिर हैं। 2018 में तब के पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कोटा में पार्टी के सोशल मीडिया ‘कार्यकर्ताओं’ को संबोधित करते हुए कहा था कि पार्टी में सच या झूठ- किसी भी बात को वायरल करने की ताकत है। शाह के हवाले से हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने प्रकाशित कियाः “राहुल गांधी के सभी फॉलोअर्स विदेशी हैं, भाड़े के गुंडों की चिंता मत कीजिए। सोशल मीडिया के जरिये ही हमें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सरकारें बनानी है। संदेशों को वायरल करते रहें। हमने पहले से ही उत्तर प्रदेश में 32 लाख लोगों का एक वाट्सएप ग्रुप बना रखा है। हरसु बह 8 बजे उन्हें एक संदेश भेज दिया जाता है।” फेसबुक को निशाना बनाते ही बीजेपी को ऐसे ही तो नहीं मिर्ची लगी है।

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