महामारी के दौर में ‘इस्लामोफोबिया’ पर भारत सरकार की चुप्पी का खामियाजा भुगतेंगे खाड़ी में रह रहे भारतीय !

बढ़ते इस्लामोफोबिया पर भारत सरकार की चुप्पी चिंता का कारण है और इसकी लगातार आलोचना हो रही है। महामारी के सांप्रदायीकरण के खिलाफ सख्त संदेश देने की जगह भारत सरकार ने इसकी अनुमति दी कि कोविड-19 के रोगियों को मजहब के आधार पर देखा जाए।

फोटो : सोशल मीडिया
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उत्तम सेनगुप्ता

मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का यह कहना था कि मुसलमानों के लिए भारत अब भी जन्नत है, खाड़ी के देशों में सोशल मीडिया पर जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा। 57 देशों के मंच इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने भारत से अपील की कि वह अपने यहां रह रहे मुस्लिम अल्पसंख्यकों की हिफाजत करे। इसी के जवाब में मुख्तार अब्बास नकवी ने बयान जारी किया।

नकवी के बयान के खिलाफ खाड़ी के देशों में जबरदस्त उबाल है। यूएई की उद्यमी नूरा अल गुरैर ने ट्वीट किया, “भारत के केंद्रीय मंत्री जो कह रहे हैं, उससे सीख लेते हुए लगता है कि हम खाड़ी के देशवालों को भी यहां रहने वाले भारतीय अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) के साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए जैसा भारत में मुसलमानों के साथ हो रहा है। उनके लिए हमें भी इसे ‘स्वर्ग’ बना देना चाहिए।” एक घंटे से भी कम समय में छह सौ से ज्यादा कमेंट आ गए और इनमें से ज्यादातर नकवी की लानत-मलामत कर रहे थे। कुछ ने इस तरह भी प्रतिक्रिया की, ‘शैतानों को यह भेदभाव करने दीजिए, हम उनमें से नहीं।’

वहां हालात निश्चित ही तनावपूर्ण हैं। संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय राजदूत पवन कपूर ने 20 अप्रैल को ट्वीट किया था, “भारत और यूएई हर मामले में भेदभाव रहित मूल्यों को मानने वाले हैं। भेदभाव हमारे नौतिक ताने-बाने और कानून के खिलाफ है। यूएई में रहने वाले भारतीयों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए।” इसके एक दिन बाद दिल्ली में नकवी का व्यवहार ऐसा था जैसे उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा हो और वह खाड़ी के देशों की जनभावनाओं को पढ़ ही नहीं पा रहे हों।

आग में घी का काम किया बीजेपी के पोस्टर बॉय और सांसद तेजस्वी सूर्या के पुराने ट्वीटस ने। 2015 में तेजस्वी ने पाकिस्तान मूल के एक कनाडायी की इस टिप्पणी को बड़े चाव से उद्धृत किया था कि, “95 फीसदी अरबी महिलाओं ने पिछले कई सौ सालों के दौरान कामोत्तेजना की चरम अवस्था (ऑर्गैज्म) को महसूस ही नहीं किया।” उसी के आसपास उन्होंने यह भी ट्वीट किया, “अबुधाबी में मंदिर..अगला सऊदी में? #हिंदूअवेकनिंग # मोदी”। ये दोनों ट्वीट इस सप्ताह फिर से सोशल मीडिया पर घूमने लगे और खाड़ी देशों के लोग भारत सरकार से तेजस्वी के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने लगे। तेजस्वी के उस पुराने दूसरे ट्वीट पर गुरैर भड़क उठीं और पूछा, “वह ऐसे क्यों जश्न मना रहा है जैसे कोई जंग जीत ली हो? उनका ट्वीट यह अहसास क्यों करा रहा है कि इसका आस्था से कहीं ज्यादा मतलब मुसलमानों के खिलाफ जीत से है?”


सोशल मीडिया के इस दौर में खबर तेजी से फैलती है और ये खबरें कि भारत में कई जगहों पर मुस्लिम फेरी वालों को घुसने से रोका जा रहा है, देश के मुसलमानों को पीने का पानी भी नहीं दिया जा रहा है और खाड़ी के देशों में प्रवासी भारतीयों द्वारा देखे जाने वाले भारतीय चैनल जिस तरह से मुसलमानों को तथाकथित ‘ कोरोना जेहाद’ के लिए निशाना बना रहे हैं, यह सब बातें छिपी नहीं रह सकती थीं। इस संदर्भ में ताबूत में अंतिम कील जैसा ही साबित हुआ मेरठ के एक कैंसर अस्पताल का वह विज्ञापन जिसमें कहा गया था कि अस्पताल ने मुस्लिमों का उपचार करना बंद कर दिया है। इसका अजीबो-गरीब तर्क दिया गया – मुस्लिम गंदगी से रहते हैं, निर्देश नहीं मानते और दूसरों के लिए असुविधाजनक हालात पैदा करते हैं।

इस विज्ञापन को बड़ी तादाद में और बड़े ही चाव से भारतीय सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे थे और इससे खाड़ी के देशों के लोगों में गुस्सा भड़का। लोगों का तत्काल इस ओर ध्यान गया कि कुवैत में कोविड-19 के ज्यादातर मरीज तो भारतीय हैं। नाराज कुवैत ने इस पर आंकड़ा देते हुए कहा कि अमीरात में कोविड-19 के कुल 1,694 मामले (तब तक) हैं जिनमें से 964 भारतीय हैं और उनमें भी ज्यादातर हिंदू। अमीरात के रहने वाले एक व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी, “आपका इलाज कुवैत के बेहतरीन अस्पतालों में हो रहा है...बीमार के साथ धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।”

यूएई में भारतीयों की अनुमानित आबादी 27 फीसदी है। अंदाजा है कि खाड़ी के देशों में 80 लाख से 1 करोड़ भारतीय काम कर रहे हैं। इनमें हिंदुओं की आबादी कितनी है, इसका कोई अनुमान नहीं है। भारत के दक्षिणपंथी सोचते हैं कि इन देशों में हिंदुओं की संख्या बहुत कम है और वे संपन्न हैं, लिहाजा किसी भी अप्रिय स्थिति से बच जाएंगे और इसी कारण मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ नफरती, नस्लीय पोस्टों को फैलाने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं होगा। कुछ लोगों का मानना है कि वहां अच्छी नौकरियों में हिंदुओं की संख्या काफी ज्यादा है।

लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि खाड़ी के देशों में गैर-जिम्मेदाराना पोस्टों पर कोविड-19 के पहले से ही नजर रखी जा रही है। दुबई से निकलने वाला अखबार गल्फ न्यूज ऐसे तमाम मामलों को छापता रहा है जिनमें भारतीयों को सोशल मीडिया पर नफरती पोस्ट डालने पर पुलिस की ओर से चेतावनी मिली हो या फिर उनकी नौकरी छीन ली गई हो। दुबई की मोरो हब डाटा सॉल्यूशंस कंपनी में चीफ अकाउंटेंट बाला कृष्णनक्का को नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि उनके फेसबुक पेज पर मुसलमानों को कोरोनावायरस सेल रूपी बमों से लैस आत्मघाती हुजूम के तौर पर दिखाया गया था। एमरिल सर्विसेज एक फैसिलिटी मैनेजमेंट कंपनी है और इसका मुख्यालय दुबई में है। इस कंपनी ने भी राकेशकित्तुरमथ नाम के कर्मचारी को निकाल बाहर किया क्योंकि उसने कोरोनावायरस से जुड़े एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया करते हुए मुसलिम नमाजियों का माखौल उड़ाया था। अबुधाबी के रहने वाले मितेश उदेशी को भी इस्लाम का मजाक बनाने वाले कार्टून को शेयर करने पर नौकरी से निकाल दिया गया। एक इंवेट मैनेजमेंट कंपनी के कर्मचारी समीर भंडारी के खिलाफ तब पुलिस में शिकायत करा दी गई जब उसने नौकरी मांगने आए एक भारतीय मुस्लिम को पाकिस्तान जाने को कह दिया। कुवैत में बर्गर किंग के एक आउटलेट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर एक कर्मचारी को निकाल दिया।


खाड़ी के लगभग सभी देशों में इस तरह के तमाम वाकये देखने को मिल रहे हैं जब सोशल मीडिया पर मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणी-पोस्ट की लोग पुलिस में शिकायत कर दे रहे हैं और उसके बाद भारतीयों को आनन-फानन में अपना पोस्ट हटाना और सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर देना पड़ा है।

सऊदी अरब की कानूनी व्यवस्था की बुराई करने पर केरल के इंजीनियर 28 वर्षीय विष्णुदेव राधाकृष्णन को 2018 में जेल में डाल दिया गया था। उसे छह साल कैद और डेढ़ लाख सऊदी रियाल (भारतीय रुपये में लगभग 28 लाख) जुर्माने की सजा सुनाई गई। लेकिन इस साल जनवरी में हाईकोर्ट ने उसकी कारावास की अवधि बढ़ाकर दस साल कर दी।

पहले इस तरह के मामलों को अपवाद के तौर पर देखा जाता था लेकिन भारत के एक खास वर्ग से लगातार आने वाले मुस्लिम- विरोधी पोस्ट और फिर उन्हें यहां रह रहे भारतीयों द्वारा शेयर करने की घटनाएं महामारी के इस दौर में काफी अधिक हो गई हैं। अमीरात में रहने वाले एक नाराज शख्स ने लिखा, “ये हिंदुत्व आतंकवादी यूएई से प्यार करते हैं। यूएई उन्हें जो दाना-पानी दे रहा है, उसे तो वे प्यार करते हैं लेकिन मुस्लिमों से नफरत करते हैं, इस्लाम से नफरत करते हैं।” कुवैत के अब्दुर रहमान नासिर हैरत जताते हैं कि भारतीय आखिर कैसे मुसलमान और इस्लाम से नफरत कर सकते हैं जबकि, उनके मुताबिक, 53 इस्लामी मुल्कों में रहने वाले प्रवासी भारतीय हर साल 120 अरब डॉलर भारत भेजते हैं।

शरजाह शाही परिवार की प्रिंसेज हेंद अल कासिमी बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के पांच साल पुराने ट्वीट को टैग करते हुए चेतावनी देती हैं, “इसे याद रखा जाएगा।” वह कहती हैं कि अगर कभी इत्तेफाक से सूर्या मंत्री बन जाएं तो उन्हें अरब की जमीन पर पैर नहीं रखना चाहिए। कुवैती वकील मेजबल अल शारिका ने भारतीय मुसलमानों का मामला जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उठाने की इच्छा जताई तो सऊदी विद्वान अबीदी जाहरानी ने कहा कि खाड़ी के देशों में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैला रहे लोगों की एक लिस्ट तैयार करनी चाहिए।

विडंबना है कि 2015 में बनाए कानून के तहत यूएई में तो सभी तरह के मजहबी या जातीय भेदभाव को गैरकानूनी करार दे दिया गया है लेकिन भारत अब तक ऐसा कानून नहीं बना सका है। यूएई का भेदभाव विरोधी/नफरत-विरोधी कानून ऐसी सभी गतिविधियों पर रोक लगाता है जो बोलकर, लिखकर या किताब- पैंपलेट या फिर ऑनलाइन मीडिया के जरिये मजहबी नफरत फैलाती हों। यह कानून किसी भी व्यक्ति या समूह के साथ धर्म, मत, जाति, नस्लया रंग के आधार पर होने वाले किसी भी भेदभाव के खिलाफ लड़ने की इच्छा शक्ति जताता है। बढ़ते इस्लामोफोबिया पर भारत सरकार की चुप्पी चिंता का कारण है और इसकी लगातार आलोचना हो रही है। महामारी के सांप्रदायीकरण के खिलाफ सख्त संदेश देने की जगह भारत सरकार ने इसकी अनुमति दी कि कोविड-19 के रोगियों को मजहब के आधार पर देखा जाए। प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना हरकत पर तत्काल अंकुश लगा सकते थे। पिछले एक माह के दौरान उन्होंने तीन बार राष्ट्र को संबोधित किया लेकिन उन्होंने इस ट्रेन्ड को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। अंततः 19 अप्रैल को जब उन्होंने लिंक्डइन पर लिखा कि एकता और भाईचारा समय की जरूरत है और वायरस जात-पात नहीं देखता, तो उनकी बातों में वो दम था ही नहीं। आखिर ये शब्द इतनी देर से जो आए थे!

भारत के खाड़ी देशों के शासकों से अच्छे संबंध हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल के बेटे के अमीरात के शाही सदस्य के अलावा एक पुराने पाकिस्तानी दोस्त के साथ कारोबारी रिश्ते हैं। माना जाता है कि कई शासकों और प्रिंस से प्रधानमंत्री मोदी के नजदीकी रिश्ते हैं। भारतीय तटरक्षक बल ने शरण के लिए भारत आई अमीरात की राजकुमारी को पकड़ा तो उसे वापस अमीरात को सौंप दिया गया। और जब यूएई ने कोविड-19 के उपचार में कारगर मानी जा रही मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग की तो आनन-फानन सप्लाई भेजने की व्यवस्था की गई। भारत के खाड़ी देशों के साथ पारंपरिक रूप से अच्छे रिश्ते रहे हैं और इसको पहुंचे किसी आघात को क्या निजी रिश्ता ठीक कर सकता है? क्या सब कुछ पहले जैसा हो सकेगा? इसका जवाब कौन देगा?

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