लॉकडाउन में भी भ्रामक और अस्पष्ट निर्देशों से उद्योगों पर ग्रहण, संकट में भी सरकारी हीलाहवाली जारी

लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार जिन औद्योगिक ईकाइयों को धीरे-धीरे या चरणबद्ध तरीके से खोलने पर राज्यों के साथ मंथन कर रही है, उस मार्ग में अभी भी भारी अड़चनें खड़ी हैं। और ये अड़चनें सरकार के अपने दिशानिर्देशों और फैसलों के कारण ही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

देश के शहर हों या औद्योगिक ईकाइयां एक माह से भी ज्यादा वक्त से दर-दर भटक रहे श्रमिक अगर काम पर नहीं लौटे तो आर्थिक गतिविधियां आंरभ करने की योजना को अभी लंबी जद्दोजहद से गुजरना होगा। जो हालात हैं उनके चलते तीसरे चरण का लॉकडाउन 3 मई के बाद बढ़ने की पूरी संभावनाएं हैं, लेकिन केंद्र सरकार जिन औद्योगिक ईकाइयों को धीरे-धीरे या चरणबद्ध तरीके से खोलने पर राज्यों के साथ मंथन कर रही है, उस मार्ग में अभी भी भारी अड़चनें खड़ी हैं।

देश के सबसे ज्यादा मध्यम और लघु उद्योगों वाले राज्यों के सामने सबसे बड़ी समस्या है श्रमिकों की भारी कमी और एक माह से जंग लगे उद्योगों को दोबारा चालू करना। कच्चा माल लाने-ले जाने की बाधाएं एक अलग बड़ा रोड़ा हैं। क्योंकि सप्लाई चेन के टूटे तारों का मामला एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि कई प्रदेशों के बीच जुड़ा है।

दिल्ली से सटे नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और गुरूग्राम से लेकर हरियाणा के दूसरे शहरों तक फैले लघु-मध्यम उद्योगों में इक्का-दुक्का या मात्र 10 प्रतिशत श्रमिक ही काम पर आने को राजी हैं। महाराष्ट्र ने तो औद्योगिक ईकाइयों के लिए लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खोलने की सबसे पहले पहल की। लेकिन राज्य के औरंगाबाद से लेकर सभी औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों को काम पर वापस लाना बहुत चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

देश के लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों के मन में कोरोना से जुड़ी एहतियाती प्रक्रिया से गुजरने और संक्रमित होने का बैठा डर दूर नहीं किया जा सका है। दूसरा यह कि उन्हें अपनी आवासीय बस्तियों या ठिकानों से आने-जाने के लिए सुगम यातायात जब तक सुलभ होता तब तक फैक्टरियों को खोलने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। फैक्ट्री मालिकों के सामने कच्चे माल को लाने और तैयार माल ले जाने का भी सबसे बड़ा संकट खड़ा है।

एक उद्योग समूह के पदाधिकारी ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या नौकरशाही के कारण है। औद्योगिक ईकाइयों में कर्मचारियों और श्रमिकों के लिए पास बनाने और उनके आवागमन में इतना भ्रम और जटिलताएं हैं कि जिस हालात में सरकार सोच रही है, वैसा व्यावहारिक तौर पर लागू होने में महीनों लग जाएंगे।

सबसे ज्यादा संकट प्रवासी श्रमिकों को वापस काम पर लौटाने का है। अगर चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन खोला भी गया तो दर्जन भर प्रदेशों में फंसे प्रवासी श्रमिकों को कैसे वापस काम पर लाया जाएगा। इस पर केंद्र सरकार लगातार भ्रम की स्थिति में फंसी है। श्रमिक नेताओं का कहना है कि लॉकडाउन के बाद देश की कई औद्योगिक ईकाइयों में बेबसी और लाचारी में फंसे मजदूरों को अभी वापस उनके गांवों में छोड़ने की बातें ही चल रही हैं। अब सवाल उठता है बिना काम, बिना रोजगार भूखे-प्यासे बैठे श्रमिकों को वापस गांव भेजा गया तो उन्हें औद्योगिक ईकाइयों में कब वापस लाया जा सकेगा।

दूसरी ओर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी श्रमिकों को वापस अपने घरों और राज्यों में भेजने की याचिकाओं पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। श्रमिकों की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि एक माह से भी ज्यादा वक्त तक वे क्वॉरंटाइन हो चुके हैं लेकिन सरकार का कोर्ट में तर्क है कि अगर उन्हें वापस गांव भेजा गया तो जोखिम यह है कि उनमें से कुछ भी संक्रमित हुए तो कि किसी न किसी कारण उनके गांवों में दूसरे लोग भी प्रभावित हो सकते हैं।

पीएम मोदी ने 24 मार्च को जब देश में पहले चरण के लॉकडाउन की घोषणा की थी तो उन्होंने देशवासियों से वादा किया था कि आवश्यक राशन और खाने-पीने की चीजों की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से राज्यों को इस माह के शुरू में ही कालाबाजारी रोकने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन कई क्षेत्रों में सप्लाई चेन जैसे कि ट्रकों और वाहनों की कमी के साथ ही मुनाफाखोरी और सट्टा बाजार की अटकलों के कारण बाजार में खाने-पीने की चीजों के मनमाने दाम वसूले गए। कई हिस्सों में सरकारी विभागों की ओर से ऐसा करने वालों को दंडित भी किया गया, लेकिन सब जगहों पर इन मनमानियों को नहीं रोका जा सका।

लॉकडाउन खोलने की पूरी प्रक्रिया का एक संवेदी पक्ष यह है कि टेस्ट किटों का देशव्यापी संकट खत्म नहीं हुआ है। कोरोना महामारी के मामले में मोदी सरकार ने शुरुआती कई सप्ताह जिस हीलाहवाली में व्यर्थ किया वह अब बहुत से लोगों, यहां तक कि विशेषज्ञों और उन डॉक्टरों को अखर रहा है जो सीधे तौर पर इस महामारी का सीधा मुकाबला कर रहे हैं।

आईसीएमआर ने कोरोना जांच के लिए चीन से खरीदी गई पांच लाख खराब किटों को वापस करने के लिए राज्यों को निर्देश जारी करने जैसा कठिन कदम उठाया। इस बात का पोस्टमार्टम अभी लंबे वक्त तक होगा कि चीन की गुआंगझू वोंड्फो बायोटेक और झुहाई लिवजोन डायग्नोस्टिक नामक कंपनियों से बेहद खराब रैपिड एंटी बॉडी किटों के आयात के लिए किस की जवाबदेही होगी।

चीन के इन टेस्ट किटों के इंतजार में पहले तो सबसे ज्यादा कीमती वक्त खराब हुआ। दूसरा यह कि वैकल्पिक व्यवस्था में इतनी देरी ने भारत जैसे दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में आने वाले दिनों में और मुश्किलें बढ़ा दी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में लॉकडाउन भले ही कुछ दिन के लिए टल जाए, लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली समेत कई हिस्सों में कोरोना केसों का शिंकजा बढ़ना चिंताजनक है।

लॉकडाउन से भले ही भारत में इस वायरस के फैलाव को रोकेने में मदद मिली है। खतरा आगे और ज्यादा है, क्योंकि आने वाले दिनों में ऐसे भी वक्त का सामना सरकार को करना पड़ सकता है जब रोटी और रोजगार के अभाव में लोग विरोध करना शुरू कर दें। राज्यों ने भले ही लॉकडाउन जारी रखने के बारे में कोई भी फैसला केंद्र सरकार पर छोड़ दिया है, लेकिन मुख्यमंत्रियों के समक्ष आने वाले खतरों के संकेत भयावह हैं।

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