दिवाली पर भी महंगाई की मार, सब्जियों के दाम आसमान छूने से खुदरा महंगाई दर साढ़े छह साल के उच्च स्तर पर

खाने पीने की चीजों के दाम बढ़ने की वजह से महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) की बढ़ोतरी सितंबर के 10.68 फीसदी से बढ़कर अक्टूबर में 11.07 फीसदी पर पहुंच गई।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

त्योहारी सीजन में भी जनता पर महंगाई की मार जारी है। सब्जियों के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी से खुदरा महंगाई दर अक्टूबर महीने में साढ़े छह साल के उच्चतम स्तर 7.61 फीसदी पर पहुंच गई। सरकार की ओर से जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इससे एक हीने पहले सितंबर 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति 7.27 प्रतिशत रही थी। एक साल पहले अक्टूबर 2019 में यह 4.62 फीसदी थी। खुदरा महंगाई लगातार दूसरे महीने 7 प्रतिशत से ऊपर रही है। इससे पहले खुदरा महंगाई दर का उच्च स्तर 8.33 प्रतिशत मई 2014 में रहा था।

खाने पीने की चीजों के दाम बढ़ने की वजह से महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) की बढ़ोतरी सितंबर के 10.68 फीसदी से बढ़कर अक्टूबर में 11.07 फीसदी पर पहुंच गई। अक्टूबर 2019 में यह 4.62 फीसदी थी. अक्टूबर 2020 में सालाना आधार पर सब्जियों के दाम 22.51 फीसदी बढ़ गई।

मांस और मछलियों की मुद्रास्फीति में अक्टूबर महीने के दौरान 18.70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वहीं, अंडे इस दौरान 22.81 प्रतिशत महंगे हो गए। एक महीने पहले यानी सितंबर में यह क्रमश: 17.60 फीसदी और 15.47 फीसदी बढ़े थे। ईंधन और बिजली श्रेणी में मुद्रास्फीति की दर सितंबर के 2.87 फीसदी से कम होकर 2.28 प्रतिशत पर आ गई। इसी तरह दूध और दुग्ध उत्पाद श्रेणी में महंगाई दर महीने भर पहले के 5.64 प्रतिशत से कम होकर 5.20 प्रतिशत पर आ गई।


आरबीआई मुख्य नीतिगत दरों पर निर्णय लेने के दौरान खास तौर पर खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है। सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को 2 फीसदी घटबढ़ के साथ चार फीसदी के दायरे में रखने की जिम्मेदारी दी है। अर्थशास्त्री अदिति के मुताबिक, उच्च आधार तथा सब्जियों के भाव में कुछ नरमी से अगले महीने भले ही सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति कुछ कम हो जाए, लेकिन इसके 6 फीसदी से नीचे दिसंबर 2020 में जाकर ही आने के अनुमान हैं। इसकी वजह से दिसंबर 2020 में नीतिगत दर में कटौती की संभावना भी कम हो जाती है। अभी के हालात में फरवरी 2021 की बैठक में भी दर में कटौती की गुंजाइश कम ही लगती है।”

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