किसानों की घर वापसी होते ही सामने आई मोदी सरकार की मंशा, कृषि मंत्री ने दिए फिर से कृषि कानून लाने के संकेत

कृषि मंत्री के इस बयान से मोदी सरकार की मंशा जाहिर हो गई है और इससे साफ संकेत है कि उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद केंद्र सरकार फिर से कृषि कानून लेकर आ सकती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

“देश के कृषि मंत्री ने मोदी जी की माफ़ी का अपमान किया है- ये बेहद निंदनीय है। अगर फिर से कृषि विरोधी कदम आगे बढ़ाए तो फिर से अन्नदाता सत्याग्रह होगा- पहले भी अहंकार को हराया था, फिर हरायेंगे!” कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का यह ट्वीट मोदी सरकार के कृषि मंत्री के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि “हम एक कदम पीछे हटे हैं, लेकिन आगे फिर बढ़ेंगे...।”

कृषि मंत्री के इस बयान से मोदी सरकार की मंशा जाहिर हो गई है और इससे साफ संकेत है कि उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद केंद्र सरकार फिर से कृषि कानून लेकर आ सकती है।

दरअसल केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कृषि उद्योग प्रदर्शनी ‘एग्रोविजन’ का उद्घाटन करने पहुंचे थे। कृषि मंत्री तोमर ने इस मौके पर जो भाषण दिया उसमें उहोंने किसानों की बात तो की, लेकिन केंद्र सरकार की मंशा भी सामने रख दी। उन्होंने कहा, “किसान देश की रीढ़ हैं, अगर रीढ़ मजबूत होगी तो निश्चित रूप से देश मजबूत होगा।”


उन्होंने कहा, ”कृषि सुधार कानून आज़ादी के सत्तर सालों के बाद बड़ा सुधार था जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था। लेकिन इन कानूनों के निरस्त होने के बाद भी सरकार निराश नहीं है। उन्होंने साफ कहा,” हम एक कदम पीछे हटे हैं लेकिन आगे फिर बढ़ेंगे।” उन्होंने और भी बातें कहीं और कृषि क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने की वकालत की। नरेंद्र सिंह तोमर बोले, ” कृषि क्षेत्र में बड़े निवेश की ज़रूरत है। निजी निवेश अन्य क्षेत्रों में आया जिससे रोज़गार के अवसर पैदा हुए और सकल घरेलू उत्पाद में इन उद्योगों का योगदान बढ़ा”।

उन्होंने कृषि कानूनों की कथित अच्छाइयां भी दोहराईं। उन्होने कहा कि कृषि सुधार कानून को सरकार किसानों की भलाई के लिए लाई थी। नरेंद्र सिंह तोमर कृषि कानूनों की वकालत करते हुए यहां तक कह गए कि सरकार ने पूरी संवेदनशीलता के साथ आंदोलनकारी किसान संगठनों से इन कानूनों को लेकर चर्चा की थी लेकिन हमें इस बात का दुख है कि कृषि सुधार कानून के लाभ समझाने में हम सफल नहीं हुए।

ध्यान रहे कि एक साल से अधिक समय तक देश भर के किसान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करते रहे। इस दौरान मोदी सरकार और बीजेपी की तरफ से किसानों को तरह-तरह की संज्ञा दी गई। कई दौर की बातचीत भी किसानों के साथ नाकाम रही और सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान इन कानूनों को लागू करने पर रोक भी लगा दी। आखिरकार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर आ गए और जब बीजेपी को लगा कि किसानों की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है तो 19 नवंबर को गुरु नानक जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि उनको “इस बात का अफ़सोस है कि वे कुछ किसानों को इस क़ानून के फायदे नहीं समझा सके।“

कृषि मंत्री के ताजा बयान की संयुक्त किसान मोर्चा ने भी निंदा की है। मोर्चा ने कहा है कि, “कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर का ये बयान घमंड से भरा हुआ है। पर अगर बीजेपी सरकार को लगता है कि सरकार एक कदम पीछे लेकर आगे लंबी छलांग लगाएगी तो वह कोरा वहम है। किसान और किसान संगठन एमएसपी समेत सभी मुद्दों पर एकजुट हैं और इस सरकार का घमंड तोड़ने के लिए हर समय तैयार हैं।”

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