सत्ता हाथ से फिसलती देख, कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा देगी बीजेपी?

कर्नाटक में कई मोर्चों पर कोशिशें हो रही है कि शनिवार को होने वाले शक्ति परीक्षण में कांग्रेस और जेडीएस के विधायक या तो वोटिंग में हिस्सा न लें या फिर बीजेपी खेमे में चले आएं। और अगर ऐसा नहीं हुआ,तो विधानसभा में हालात ऐसे बनाए जा सकते हैं कि कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लग जाए।

फोटो : सोशल मीडिया
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वलय सिंहराय

कर्नाटक में मतदान पूरा होने से पहले ही बी एस येदियुरप्पा ने पूरे भरोसे के साथ ऐलान कर दिया था कि वे 17 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। और उन्होंने 17 मई को ही शपथ ली भी। और भले ही सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति परीक्षण एक सप्ताह बाद कराने या कम से कम सोमवार तक टालने की उनकी अपील को खारिज कर दिया, बी एस येदियुरप्पा का आत्मविश्वास देखते बन रहा है। उन्हें भरोसा है कि शनिवार को वे विश्वास मत जीतेंगे।

बीजेपी किसी भी कीमत पर शनिवार का विश्वास मत जीतना चाहती है। उसके पास एक तरफ रेड्डी बंधुओं के रूप में ताकतवर बाजीगर हैं, तो दूसरी तरफ मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार है।

कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए अब बीजेपी के पास दो विकल्प हैं। एक तो यह कि वह किसी तरह, कोई जोड़तोड़ करके बहुमत के आंकड़ें को 104-105 के पास ले आए। लेकिन इसके लिए उसे जेडीएस और कांग्रेस के कई विधायकों को मतदान में हिस्सा न लेने के लिए मनाना होगा। दूसरा रास्ता यह है कि वह कम से कम 7 विधायकों को विरोधी खेमे से तोड़े ताकि 224 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए जरूरी 112 112 का जादुई आंकड़ा उसके पास आ जाए।

संकेत ऐसे भी मिल रहे हैं कि अगर यह सारी कोशिशें नाकाम रहीं तो कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए और अगले लोकसभा चुनाव के साथ यहां दोबारा चुनाव कराए जाएं।

अब अगर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो उसका यह बिंदू साबित हो जाएगा कि सबसे बड़े दल को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना सही था। और अगर ऐसा नहीं होता है तो उसके पास कांग्रेस-जेडीएस पर नैतिकता और सिद्धांतों से परे अवसरवादी राजनीति करने का आरोप लगाने का मौका है।

जिस दिन कर्नाटक के नतीजे आए थे, उस दिन बीजेपी के पक्ष में एक सहानुभूति तो बनी थी कि जीत के इतने करीब आकर भी वह सिर्फ 8 सीट दूर रह गई। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के साथ आने के बाद इस सहानुभूति पर विराम भी लग गया। लेकिन अंतिम नतीजे आने के बाद पैदा हालात में संवैधानिक तरीकों के मुताबिक प्रक्रिया चलने देने के बजाए, बीजेपी ने अलग ही रास्ता चुना। अगर वह संवैधानिक तरीके अपनाए जाने का इंतजार करती तो कांग्रेस-जेडीएस के संयुक्त 117 विधायकों की संख्या बीजेपी के सत्ता के रास्ते में रोड़ा बन जाती। ऐसे में पूर्व संघ प्रचारक और नरेंद्र मोदी के लिए अपनी विधानसभा सीट छोड़ चुके राज्यपाल वजुभाई वाला ने आनन-फानन येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। साथ ही बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन वक्त भी दे दिया।

लेकिन इससे पहले कि राज्यपाल अपने उस फैसले को सार्वजनिक करते जिसकी सलाह कोई भी कानूनविद नहीं देता, प्रधानमंत्री नरेंद्र दी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक के नतीजों को अद्भुत करार देते हुए कर्नाटक के लोगों का शुक्रिया अदा किया। प्रधानमंत्री मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि कर्नाटक की जीत से बीजेपी पर लगा उत्तर भारतीय पार्टी का धब्बा भी धुल गया। उन्होंने यह भी कहा कि कर्नाटक भी कांग्रेस मुक्त हो गया। लेकिन ऐसा कहते वक्त प्रधानमंत्री शायद भूल गए थे कि कर्नाटक के लोगों ने कांग्रेस को उससे कहीं ज्यादा वोट दिए हैं, जितने उनकी पार्टी बीजेपी को मिले हैं। गौरतलब है कि कर्नाटक चुनाव में बीजेपी के हिस्से में 36.2 फीसदी वोट आए हैं, जबकि कांग्रेस को 38 फीसदी वोट मिले हैं। और अगर इसमें जेडीएस को मिले 18.5 फीसदी वोटों को मिला लें, तो ये प्रतिशत 56 तक पहुंचता है।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद साफ हो गया है कि बीजेपी विधायकों को तोड़ने की जीतोड़ कोशिश करेगी, क्योंकि उसके पास अब वक्त कम बचा है, बहुत कम

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