पेट्रोनेट और ट्रंप को फंड देने वाली अमेरिकी कंपनी टेलूरियन का समझौता कारोबारी से ज्यादा राजनीतिक लगता है !

भारत की पेट्रोनेट और अमेरिका की टेलूरियन के बीच हुए समझौते पर सवालिया निशान उठ रहे हैं क्योंकि एक भारतीय कंपनी अमेरिका की एक ऐसी कंपनी में निवेश कर रही है जिससे अमेरिका में उस समय नौकरियां पैदा होंगी जब ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनने कीदौड़ में शामिल हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

अब यह करीब-करीब साफ होने लगा है कि भारत की पेट्रोनेट एलएनजी और अमेरिका स्थित टेलूरियन इंक के बीच हुआ व्यापारिक करार कारोबारी से ज्यादा राजनीतिक हितों के लिए हुआ है। दरअसल टेलूरियन के साथ जुड़े लोगों ने अमेरिका राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार में फंडिंग संगठनों की मदद से चंदा भी दिया है।

पेट्रोनेट ने बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में जो जानकारी दाखिल की है, उसके मुताबिक टेलूरियन के साथ हुआ गैर-बाध्यकारी समझौता (नॉन बाइंडिंग एमओयू) इस बात की संभावना तलाश करने के लिए है कि पेट्रोनेट हर साल 5 एमटीपीए (गैस मापने की इकाई) गैस टेलूरियन के ड्रिफ्टवुड प्रोजेक्ट से खरीद सकेगी। इसके लिए बराबर का निवेश भी करना होगा।

रोचक बात यह है कि अमेरिका के ह्यूस्टन में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘हाऊडी मोडी’ के स्पांसर में से एक टेलूरियन भी थी। यह कंपनी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से कई तरह से जुड़ी हुई दिखती है। ह्यूस्टन स्थित नेचुरल गैस की इस कंपनी की स्थापना 2016 में लेबनानी अमेरिकन शरीफ सूकी और मार्टिन ह्यूस्टन ने की थी। 2017 में टेलूरियन का मेगेलन पेट्रोलियम कार्पोरेशन के साथ विलय हो गया और कंपनी टेलूरियन इंक हो गई। मेगेलन पेट्रोलियन के सीईओ अंटोनी लफार्ग टेलूरियन इंक के मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) हैं।

दूसरी तरफ मार्टिन ह्यूस्टन भी ग्लोबल एनर्जी ग्रुप मोएलिस एंड कंपनी में एडवाइजरी पार्टनर और चेयरमैन हैं। इस कंपनी की स्थापना और संचालन सीईओ केनेथ मोएलिस करते हैं जो डोनल्ड ट्रंप के बैंकर के तौर पर काम कर चुके हैं। केनेथ मोएलिस उस समय ट्रंप के साथ थे जब उनकी कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर थीं, खासतौर से ट्रंप ताजमहल के नाम से मशहूर ट्रंप के कसीनो। ट्रंप के नजदीकियों में शामिल केनेथ मोएलिस ने ट्रंप के कसीनो को शेयर बाजारों में लिस्ट करवाया था।


एक और रोचक तथ्य यह भी है कि सऊदी अरब के राजकुमार प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2017 सऊदी अरब की तेल कंपनी आरामको की करीब 335 अरब डॉलर मूल्य की 5 फीसदी हिस्सेदारी अमेरिकी शेयर बाजार में लिस्ट कराने के लिए मोएलिस एंड कंपनी की सेवाएं ली थीं। एक अनुमान के मुताबिक इस काम के लिए मोएलिस को मोटी रकम मिली थी, जो तीन अंकों के मिलियन में थी। गौरतलब है कि ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद पहली विदेश यात्रा मई 2017 में सऊदी अरब की ही की थी।

टेलूरियन और रिपब्लिकन रिश्ते

टेलूरियन की एक संस्था राजनीतिक फाइनेंस का काम भी करती है और इसका नाम टेलूरियन पीएसी (पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) है, जिसकी स्थापना 2016 में हुई थी और इसे राजनीतिक चंदे के तौर पर करीब 224,019 डॉलर (करीब 1.6 करोड़ रुपए) मिले थे। इसे चंदा देने वालों की सूची देखें तो पता चलता है कि इनमें ज्यादातर लोग टेलूरियन के उच्च प्रबंधन (टॉप मैनेजमेंट) से जुड़े लोग हैं, और शरीफ सूकी और उनके भाई तारेक सूकी का नाम भी इनमें शामिल है।

जून 2019 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इस संस्था ने 59 फीसदी फंज रिपब्लिकन को दिया है और 40 फीसदी फंड डेमोक्रेट्स को दिया गया है। इस संस्था ने कई ऐसे सांसदों को भी फंड दिया है जिन्हें डोनल्ड ट्रंप का समर्थक माना जाता है। इनमें टेड क्रूज़, ऑरिन हैच और जॉन बारासो के नाम नाम शामिल हैं।

सूची के मुताबिक उप राष्ट्रपति माइक पेंस द्वारा रजिस्टर्ड ग्रेट अमेरिका कमेटी को कम से कम 10,000 डॉलर (https://www.opensecrets.org/pacs/pac2pac.php?cycle=2018&cmte=C00635516)) दिए गए हैं। पीएसी की स्थापना अमेरिकी संसद के रिपब्लिकन सदस्यों के प्रचार में मदद करने के लिए की गई थी। (https://docquery.fec.gov/cgi-bin/forms/C00640664/1268374/) अमेरिकी चुनाव आयोग के मुताबिक, ग्रेट अमेरिका कमेटी ने राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप समेत पांच उम्मीदवारों के लिए फंड का इंतजाम किया था। (https://docquery.fec.gov/cgi-bin/forms/C00640664/1192367/)


इसके अलावा खुद को कंजर्वेटिव कहने वाली सुपर पीएसी लुसियाना प्रॉस्पेरिटी फंड को भी 50,000 डॉलर दिए गए। अमेरिका में सुपर पीएसी स्वायत्त कमेटी होती है, जो असीमित फंड जमा कर सकती है और किसी भी उम्मीदवार के पक्ष या विरोध में प्रचार पर उसे खर्च कर सकती है। सुपर पीएसी को किसी भी राजनीतिक उम्मीदवार को सीधे पैसे देने की मनाही है।

पेट्रोनेट एलएनजी क्या है?

पेट्रोनेट एलएनजी सरकार का एक संयुक्त उपक्रम है, जो 1988 में स्थापित हुई थी और इसका काम एलएनजी आयात करना और देश भर में एलएनजी टर्मिनल स्थापित करना है। सरकारी कंपनी गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल), इंडियन ऑयल कार्पोरेशन (आईओसी) और भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) के साथ इसकी संयुक्त साझेदारी है। पेट्रोनेट के भारत में दो टर्मिनल हैं, एक गुजरात में जोकि अडानी समूह के साथ साझेदारी में है और दूसरा कोची में है।

इस समझौते पर सवालिया निशान उठ रहे हैं क्योंकि एक भारतीय कंपनी अमेरिका की एक एलएनजी टर्मिनल कंपनी को फंड कर रही है। इससे अमेरिका में उस समय नौकरियां पैदा होंगी जब ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हैं।

इसके अलावा विश्व स्तर पर गैस क्षेत्र में हो रहे बदलाव के चलते 6 महीने पहले ही पेट्रोनेट एलएनजी के बोर्ड ने इस सौदे को हरी झंडी देने से इनकार कर दिया था।

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