इत्र कारोबारी पर छापे में मिले सैकड़ों करोड़ आखिर किसके थे! क्या 'मिस्टर जे' किसी और के धोखे में फंस गए!

उत्तर प्रदेश के पीयूष जैन का मामला जितना चौंकाता है, उससे कहीं ज्यादा सवाल खड़े करता है। सवाल इसलिए क्योंकि अधिकारी यह साबित करने में लगे हैं कि जैन ने यह सारा पैसा अपना होना मान लिया है। तो क्या इस बरामदगी का किस्सा भी कुछ दिन बाद दफ्न हो जाएगा।

नगद बरामदगी की सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में से एक
नगद बरामदगी की सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में से एक
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मिनी बंदोपाध्याय

कन्नौज के इस इत्र निर्माता ने गौतम अडानी की सलाह पढ़ी होगी, इसकी संभावना कम ही है। बताते हैं कि अडानी ने कहा था कि या तो आप नगद के ढेर पर बैठें ‘या उसे बढ़ाते जाएं’। लेकिन इत्र निर्माता पीयूष जैन नगद के ढेर पर बैठे हैं और अब भी उसे बढ़ा रहे हैं। वह मैनेजमेंट कंसल्टेंट पीटर ड्रकर की इस उक्ति से संभवतः ज्यादा प्रभावित रहे हैं कि लाभ नहीं, व्यापार के लिए नगद ज्यादा महत्वपूर्ण है।

स्पष्ट तौर पर वह जल्द ही नोटबंदी के अगले दौर की अपेक्षा नहीं कर रहे थे। उन्होंने नगद भरने के लिए दीवारों के पीछे गुप्त अलमारियां और खोह बनवाए हुए थे। बेसमेंट में गुप्त चैंबरों का भी नगद के कार्टन रखने के लिए उपयोग किया गया था। उन्होंने जितना नगद इकट्ठा किया हुआ था, उन्हें गिनने के लिए तीनों दिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के कैशियरों की टीम को नोट गिनने वाली सात मशीनों के साथ लगना पड़ा। साथ में कई करोड़ के गोल्ड बार, बिस्किट और चंदन की लकड़ियों के तेल भी बरामद किए गए। 25 करोड़ का सोना और 6 करोड़ कीमत के चंदन की लकड़ी के तेल बरामद किए गए।

जीएसटी इंटेलिजेंस के महानिदेशक (डीजीजीआई) द्वारा पकड़े गए 197 करोड़ नगद की सनसनीखेज बरामदगी को, लगता है, अधिकारियों ने आनन-फानन में दफना दिया है। डीजीजीआई ने कोर्ट को सूचना दी कि इत्र निर्माता ने नगद खुद का होना कबूल किया है और बकाया जीएसटी और अर्थदंड के भुगतान का प्रस्ताव किया है। अधिकारियों को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि टैक्स और अर्थ दंड लगभग 55 करोड़ होंगे। मीडिया में संभावना जताई गई है कि राजनीतिक कारणों से व्यवसायी को हल्के दंड के साथ छोड़ दिया जा रहा है।

यह बरामदगी बताती हैः

  • कि ‘कैशलेस’ या ‘कम नगद’ अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री की नोटबंदी एक और जुमला भर थी।

  • कि नगद में व्यापार और बढ़े हुए या कम किए गए इनवायस के जरिये टैक्स की चोरी करना ‘डिजिटल इंडिया’ में भी संभव है।

  • कि ईडी-जैसी केन्द्रीय एजेंसियां अलग-अलग जगहों पर कॉलर खड़ी किए रहती हैं, फिर भी टैक्स चोरी और हवाला फल-फूल रहा है।

  • कि जीएसटी वसूली में गंभीर छेद हैं।


यूपी पुलिस के अफसर कहते हैं कि 35 करोड़ की जीएसटी बचाने के लिए कन्नौज और कानपुर का कोई इत्र निर्माता नगद 197 करोड़ जमाकर रखेगा, यह बात हास्यास्पद ही है। वे कहते हैं कि उसने आयकर और जीएसटी का भुगतान कर दिया होता, तब भी उसने वैध, ‘सफेद’ धन के 100 करोड़ बचा लिए होते। इस तरह कोई व्यापारी छापे का खतरा क्यों उठाएगा? एकमात्र मुमकिन कारण यह लगता है कि अगर यह धन उसका नहीं है और वह जानता है कि उसे कम समय की नोटिस पर किस्तों में इसे लौटाना होगा, तब ही कोई व्यापारी इस तरह इतनी बड़ी नगद राशि अपने पास रखेगा। भाजपा और समाजवादी पार्टी- दोनों ने तो शुरू में एक-दूसरे पर उंगलियां उठाते हुए दावा किया कि लूट का यह माल ‘उनका’ है और इसे यूपी चुनावों में खर्च किया जाना था लेकिन अब दोनों ही चुप हो गए हैं। और डीजीजीआई ने व्यवसायी के इस बयान को स्वीकार कर लिया है कि नगद पिछले चार साल के दौरान उसका टर्न ओवर और बिक्री है।

लेकिन इस बात से कुछ और सवाल उठ खड़े हुए हैं। 197 करोड़ उसके टर्नओवर का कितना प्रतिशत है? क्या वह कोई जीएसटी का भुगतान कर भी रहा था या उसकी पूरी तरह चोरी कर रहा था? कानपुर या लखनऊ के नियामक अधिकारियों को इसकी भनक किस तरह लगी? कौन लोग इत्र व्यापारी को नगद में भुगतान कर रहे थे? रिपोर्ट हैं कि वह 100 से अधिक कंपनियों के साथ व्यापार कर रहा था। यह किसी बड़े घालमेल के छोटे हिस्से की तरह है।

डीजीजीआई की वेबसाइट इन तौर-तरीकों के जरिये टैक्स चोरी होने की बात बताती हैः

  1. कर योग्य वस्तु और सेवाओं की कम कीमत लगाकर कम पेमेन्ट

  2. छूट अधिसूचनाओं का गलत ढंग से उपयोग

  3. इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत उपयोग

  4. कर योग्य वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर टैक्स का भुगतान न करना

  5. रिवर्स चार्ज प्रबंधन के तहत टैक्स का भुगतान नहीं करना

  6. जाली फर्मों से प्राप्त इनवायस के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत ढंग से उपयोग

  7. वस्तुओं के निर्यात पर आईजीएसटी की वापसी का गलत उपयोग, आदि।

अगर सरकारी विवरण पर भरोसा करें, तो यह सब तब शुरू हुआ जब डीजीजीआई की अहमदाबाद शाखा ने जीएसटी के भुगतान के बिना पान मसाला और तंबाकू के ‘शिखर ब्रांड’ को ले जाते चार ट्रकों को पकड़ा। कानपुर में पान मसाले के शिखर ब्रांड, मेसर्स गणपति रोड कैरियर्स और ओडोकेम इंडस्ट्रीज में छापे डाले गए। इन जांच में जाली इनवायस और उत्पादकों तथा ट्रांसपोर्टरों के बीच के स्टॉक रजिस्टर और बुक में अलग-अलग विवरण मिले। 22 दिसंबर की रात में डीजीजीआई टीम ने कानपुर में ट्रांसपोर्ट नगर में शिखर मसाला फैक्ट्री में छापा मारा। इसी फैक्ट्री में गणपति ट्रांसपोर्टर का ऑफिस है। चूंकि शिखर पान मसाला के स्वामी प्रदीप अग्रवाल दिल्ली में थे इसलिए उनसे पूछताछ नहीं हो पाई। डीजीजीआई ने गणपति ट्रांसपोर्ट के स्वामी प्रवीण जैन को हिरासत में लिया और पूछताछ आरंभ की। खास बात यह है कि डीजीजीआई का प्रेस बयान बताता है कि शिखर पान मसाला के निर्माताओं ने जीएसटी की चोरी की बात स्वीकार कर ली और टैक्स के मद में 3.09 करोड़ का भुगतान कर दिया।


लोगों का ध्यान शिखर पान मसाला के स्वामी बताए जाने वाले प्रदीप अग्रवाल की ओर इसलिए गया कि उन्होंने अपना इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया एकाउंट डिलीट कर दिया। इनमें भाजपा और प्रधानमंत्री की प्रशंसा की गई थी। ट्रांसपोर्ट कंपनी के स्वामी इत्र निर्माता पीयूष जैन के निकट के रिश्तेदार हैं। लेकिन छापे का कारण संभवतः यह नहीं था। दरअसल, पीयूष ने शिखर पान मसाला को ‘सामान’ की आपूर्ति की थी। इस व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि जैन का ‘सामान’ या अन्य चीजों के साथ चंदन की लकड़ी का तेल से बना इत्र ही वह चीज है जिसने शिखर की लोकप्रियता बढ़ाई है। जैन का यह गुप्त ‘सामान’ है जो इसे अलग और खास बनाता है।

लेकिन क्या पीयूष जैन के यहां किसी गफलत में छापा डाला गया और संयोगवश ही इतनी बड़ी बरामदगी हुई? अब खबरें हैं कि छापे के लिए सबसे पहले अंग्रेजी के पी की-वर्ड को ट्रेस किया गया था। ये पी की-वर्ड पी जैन के लिए था। कन्नौज में पी. जैन नाम के दो इत्र कारोबारी हैं। एक पीयूष जैन हैं जिनके यहां छापा पड़ा। दूसरे पी. जैन का पूरा नाम पुष्पराज उर्फ पम्पी जैन हैं जो सपा से जुड़े हैं। इन्होंने ही पिछले दिनों समाजवादी इत्र लॉन्च किया था। जिन पीयूष जैन के यहां छापा पड़ा, उनका समाजवादी इत्र से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन लगता है कि निशाने बनाने में गलती हुई या शीर्ष स्तर पर गलत ब्रीफिंग हुई और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाजवादी इत्र से छापों को जोड़ते रहे।

अवैध धन की सनसनीखेज बरामदगी की घटनाएं पहले भी रहस्यपूर्ण तरीके से दफनाई जा चुकी हैं। नई दिल्ली में ग्रेटर कैलाश में सहारा ग्रुप के गेस्ट हाउस से एक्सेल शीट और कम्प्यूटर प्रिंट आउट की आयकर विभाग ने जब बरामदगी की थी, तब बताया गया था कि उनसे राजनीतिज्ञों को बड़े भुगतान के संकेत मिले हैं। मुंबई से एक आयकर आयुक्त को केस रफा-दफा करने का दायित्व सौंपा गया। इसी तरह दिल्ली में ही बिरला ग्रुप की एक कंपनी के कार्यालय से 25 करोड़ के अवैध नगद को सीबीआई ने जब्त किया था। उसके बाद से यह खबर मीडिया से गायब है।

इसलिए ‘कानपुर में भारी-भरकम नगद की बरामदगी’ का ताजा किस्सा भी थोड़े दिनों बाद भुला दिया जाएगा।

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