क्या संघ कर रहा अपनी रीपैकेजिंग! आंतरिक मंथन में 'वामपंथी विचारों' के उद्धरण का मतलब क्या?
संघ के इस दशहरा पर 100 साल पूरे हो रहे हैं। हालांकि शताब्दी वर्ष की योजनाएं गुप्त रखी गई हैं, लेकिन मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी के बीच आंतरिक कलह में कुछ हो रहा हो, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को अपने 'वामपंथी' विचारों के लिए जाना जाता है। उनका जिक्र आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के किसी विचार-विमर्श में होने की कोई संभावना है क्या? बीजेपी का कोई नेता, भले ही उसे क्यों न 'मार्गदर्शक मंडल' में शामिल कर दिया गया हो, क्या देश में बढ़ती आय असमानता पर सवाल उठा सकता है? या वह मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की खुलकर आलोचना करेगा? या वह किसी भी कीमत पर (जीडीपी) विकास के आर्थिक मॉडल से हटकर मौलिक पुनर्विचार का आग्रह करेगा?
हाल ही में राजस्थान के जोधपुर में संघ की शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित एक 'वैचारिकी' (विचार-विमर्श) के दौरान यह सब हुआ। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और अब 91 वर्षीय मुरली मनोहर जोशी इस 'वैचारिकी' में विशेष आमंत्रित सदस्य थे। डॉ. जोशी बीजेपी के संस्थापक सदस्य हैं।वह 2014 में लोकसभा के लिए चुने गए थे, पर नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें मंत्री तो नहीं ही बनाया, उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें पार्टी के 'मार्गदर्शक मंडल' में भेज दिया। जोधपुर में हुई इस तीन दिवसीय बैठक में संघ से जुड़े 32 संगठनों के 300 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिनमें बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, किसान संघ और अन्य संगठनों के लोगों ने भागीदारी की।
डॉ. जोशी द्वारा अमर्त्य सेन का उल्लेख विशेष रूप से रेखांकित करने योग्य है क्योंकि सेन मोदी सरकार के कल्याण और समता के प्रति दृष्टिकोण के कटु आलोचक रहे हैं। यह तर्क देते हुए कि भारत को अपनी आर्थिक नीतियों और प्राथमिकताओं में मूल्य-आधारित पुनर्निर्धारण की जरूरत है, डॉ. जोशी ने सेन के इस कथन को उद्धृत किया कि 'यदि किसी देश की आर्थिक सफलता का आकलन केवल आय से किया जाता है, तो कल्याण का महत्वपूर्ण लक्ष्य छूट जाता है।'
उन्होंने जीडीपी विस्तार पर जुनूनी ध्यान से हटकर, 'डीग्रोथ' (आर्थिक गिरावट) की बात कही। 'मोदी-अडानी' विकास मॉडल के उलट डॉ. जोशी ने बताया कि भारत की मुख्य जीडीपी में भले ही सुधार हुआ हो, बढ़ती लहरों ने सभी नावों को ऊपर नहीं उठाया है। उन्होंने इस दावे की आलोचना की कि भारत की अर्थव्यवस्था जापान से आगे निकल गई है, और इस बात पर जोर दिया कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत काफी पीछे है। (2025 में भारत का नाममात्र जीडीपी 4.187 ट्रिलियन डॉलर था और यह जापान (4.186 ट्रिलियन डॉलर) से थोड़ा आगे था) भारत का प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,875.5 डॉलर रहा, जबकि जापान का 33,955.7 डॉलर था।
डॉ. जोशी की आलोचना संघ के मंच के लिए असामान्य रूप से सीधी और विनम्र थी। इसे संघ प्रमुख मोहन भागवत से स्वीकृति मिली जिनका 'हिन्दू अविभाजित परिवार' में एक प्रतिद्वंद्वी शक्ति केन्द्र के रूप में नरेन्द्र मोदी के साथ टकराव कोई रहस्य नहीं है। इस आंतरिक कलह पर आगे क्या होता है, इसके लिए प्रतीक्षा करें।
रोहतक में धनखड़ का प्रदर्शन?
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद वह 12 सितंबर को नए उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण समारोह में ही दिखे। अब खबर है कि वह 25 सितंबर को रोहतक में एक रैली में भी नजर आ सकते हैं। इस बात ने एक बार फिर उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलों को हवा दे दी है।
दरअसल, धनखड़ के इनेलो (भारतीय राष्ट्रीय लोकदल) प्रमुख अभय चौटाला के साथ घनिष्ठ संबंधों ने अफवाहों को हवा दे दी है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि माना जा रहा है कि वह अस्थायी रूप से चौटाला के फार्महाउस में ठहरे हुए हैं। रोहतक रैली एक कद्दावर जाट नेता और अभय चौटाला के दादा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल की 112वीं जयंती के अवसर पर होगी।
अगर धनखड़ इसमें भाग लेते हैं, तो यह जाट राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है। खासकर तब जब बीजेपी ने (दिवंगत हो चुके) सत्यपाल मलिक को बिल्कुल ही दरकिनार किए रखा और इसे लेकर जाट राजनीति अब भी खदबदा रही है। अभय और अजय चौटाला- दोनों भाई पिछले राज्य विधानसभा चुनावों में हार के बाद प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के प्रमुख हैं। धनखड़ का इस क्षेत्र में आना क्षेत्रीय राजनीति में राजनीतिक समीकरणों को नया रूप दे सकता है।
जादुई 'छोटा इजरायल'
राजनीति की तमाम चालबाजियों से दूर, जयपुर से 40 किलोमीटर पश्चिम का एक गांव अपनी अनोखी खेती के तरीकों से ध्यान आकर्षित कर रहा है। कभी शांत रहे गुरहा कुमावतन गांव में गोदामों जैसे दिखने वाले बड़े पॉलीहाउस हैं और लोग संरक्षित खेती नामक तकनीक का उपयोग कर रहे हैं जिससे पैदावार आश्चर्यजनक रूप से काफी बढ़ गई है। यहां उगाई जाने वाली फसलों को पारंपरिक खेती के लिए आवश्यक पानी, उर्वरक और रसायनों की तुलना में बहुत कम पानी, उर्वरक और रसायनों की जरूरत होती है।
कृषि वैज्ञानिक बलराज सिंह ने बताया कि 'किसान पानी और पोषक तत्वों जैसे इनपुट्स को सटीकता से नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे उनकी उपज काफी बेहतर हो सकती है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में टमाटर आमतौर पर केवल चार से पांच महीने तक ही उगाए जाते हैं। पॉलीहाउस में इन्हें नौ महीने या उससे भी ज्यादा समय तक उगाया जा सकता है। खुले खेत में टमाटर की खेती से प्रति हेक्टेयर लगभग 2.5 टन उपज मिलती है, लेकिन संरक्षित खेती में यह 200 टन तक पहुंच जाती है।' यहां लगभग 1,200 एकड़ में संरक्षित खेती होती है और दावा है कि इस गांव में भारत में पॉलीहाउसों की सबसे अधिक सघनता है।
यहां के लगभग 500 किसानों में से ज्यादातर अब करोड़पति हैं और उनका कुल कारोबार 250 करोड़ रुपये से ज्यादा है। वे आलीशान हवेलियों में रहते हैं। उन्हें शानदार कारों में घूमते देखा जा सकता है। यह बदलाव इतना जबरदस्त है कि स्थानीय लोग इस इलाके को 'मिनी इजरायल' कहते हैं। इस सफलता की कहानी का श्रेय किसान खेमाराम चौधरी को जाता है। वह 2012 में संयोगवश इजरायल गए और यह यात्रा महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। शुरू में उन्हें इजरायल के वैज्ञानिकों द्वारा शुष्क भूमि से होने वाली आय में वृद्धि के दावों पर संदेह था। इजरायल में सालाना केवल 508 मिलीमीटर बारिश होती है। गुरहा कुमावतन में भी यही स्थिति है। यह जयपुर जिले के सबसे शुष्क क्षेत्रों में है।
उन्होंने बताया कि 'मैंने कभी डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा का मुनाफा नहीं कमाया था, न ही मैंने भारत में किसी किसान को इससे ज्यादा कमाते सुना था। उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि खेती के लिए अपशिष्ट जल का उपयोग कैसे किया जाता है।' वह दावा करते हैं कि यहां के किसान अब प्रति एकड़ 45 लाख रुपये सालाना कमाते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार से 30 लाख रुपये की सब्सिडी मिली, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कम ब्याज दर पर ऋण मिला और स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय ने तकनीकी सहायता दी। इनसे चौधरी ने अपना पहला पॉलीहाउस बनाया। बाकी, जैसा कि वह कहते हैं, इतिहास है।
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