क्या मृत्युदंड के लिए कोई दर्दरहित तरीका है? सरकार बना सकती है कमेटी, सुप्रीम कोर्ट अब जुलाई में करेगा सुनवाई

कोर्ट जियान कौर केस में वकील ऋषि मल्होत्रा की एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीआरपीसी की धारा 354 (5) के तहत निहित प्रावधान को संविधान से बाहर और विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के भेदभावपूर्ण होने के कारण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

क्या मृत्युदंड के लिए कोई दर्दरहित तरीका है? सरकार बना सकती है कमेटी
क्या मृत्युदंड के लिए कोई दर्दरहित तरीका है? सरकार बना सकती है कमेटी
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नवजीवन डेस्क

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार एक एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने पर विचार कर रही है जो देखेगी कि फांसी की सजा पाए कैदियों के लिए कम दर्दनाक कोई तरीका है या नहीं। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट से कहा कि विचार-विमर्श चल रहा है और यदि अदालत एक सप्ताह के बाद इस मामले को उठाएगी, तो वह जवाब देने में ज्यादा सक्षम होंगे।

एजी ने कहा कि मैंने सुझाव दिया है (एक समिति का गठन) और हम उस दिशा में काम कर रहे हैं और कुछ नाम जुटा रहे हैं। वेंकटरमणी के बयान को दर्ज करते हुए चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूढ़ ने कहा कि एजी का कहना है कि सरकार समिति की नियुक्ति पर विचार कर रही है। इसके बाद उन्होंने मामले को जुलाई में अगली सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया।


इससे पहले 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे एक्सपर्ट पैनल के गठन को लेकर कोई समस्या नहीं है। साथ ही केंद्र से इस पर जानकारी जुटाने के लिए कहा था कि क्या मृत्युदंड के लिए कोई दर्दरहित तरीका है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि इस पहलू को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नजर से देखा जाना चाहिए। पीठ ने पूछा, क्या हमारे पास भारत या विदेशों में इससे संबंधित कोई डेटा है, जो वैकल्पिक तरीकों से मौत की सजा पर बात करे?

जियान कौर के मामले में अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की एक रिट याचिका पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही थी, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) के तहत निहित प्रावधान को संविधान से बाहर और विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के भेदभावपूर्ण होने के कारण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मल्होत्रा ने तर्क दिया था कि उन्होंने भारत में मौत की सजा के निष्पादन के तरीके को चुनौती दी है। इसमें कैदी के मरने तक उसे गर्दन से लटका कर रखा जाता है।


याचिका में कहा गया है कि जीने के अधिकार के तहत प्राकृतिक रूप से जीवन का अंत भी होना चाहिए। दूसरे शब्दों में मरते हुए व्यक्ति का भी गरिमा के साथ मरने का अधिकार शामिल होना चाहिए, जब उसका जीवन समाप्त हो रहा हो। शीर्ष अदालत ने इस पर केंद्र को नोटिस जारी किया था कि जिस दोषी की सजा और सजा के कारण जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी की पीड़ा सहने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

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