जींद उपचुनाव: बीजेपी ने गली-गली में उतारे विधायक और हर जाति के मंत्री, लेकिन कांग्रेस ने बिगाड़ा सबका गणित

चुनाव आयोग की सख्ती के चलते अब चुनाव पता नहीं चलते कि कब गुजर गए। पर जींद जिले की सीमा में घुसते ही दिख जाता है कि यहां चुनाव है। यह फिजा बदली है कांग्रेस ने अपने दिग्गज रणदीप सुरजेवाला को चुनाव मैदान में उतारकर। नवजीवन संवाददाता धीरेंद्र अवस्थी की ग्राउंड रिपोर्ट

फोटो सौजन्य : @rssurjewala
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धीरेंद्र अवस्थी

जींद बदलेंगे, जिंदगी बदलेंगे के नारों के साथ जींद जिला सीमा पर ही हर किसी का स्वागत कर रहा है। झंडे, बैनर, पोस्टर से पूरा जिला अटा पड़ा है। जश्न जैसा माहौल है। लोगों की जुबान में कहें तो ऐसा चुनाव जींद में कभी नहीं देखा गया। एक त्यौहार सा अहसास है।

चुनाव आयोग की सख्ती के चलते लोकसभा और विधानसभा चुनाव देश में अब पता ही नहीं चलते हैं कि कब गुजर गए। पर जींद जिले की सीमा में घुसते ही यह पता चल रहा है कि यहां चुनाव है। यह फिजा बदली है कांग्रेस ने अपने दिग्गज रणदीप सुरजेवाला को चुनाव मैदान में उतारकर।

हर राजनीतिक दल के लिए यहां चुनाव साख का सवाल बन गया है। हरियाणा की पूरी सरकार ने यहां डेरा जमा दिया है। सियासी दल जातियों के समीकरण में यहां बुरी तरह उलझे हुए हैं। पर मतदाता बोल रहा है। गिन-गिन कर वह सरकार की खामियां गिना रहा है। थोड़ा कुरेदने पर ही सरकार के वादों और इरादों को वह बेनकाब कर रहा है।

जींद उपचुनाव: बीजेपी ने गली-गली में उतारे विधायक और हर जाति के मंत्री, लेकिन कांग्रेस ने बिगाड़ा सबका गणित

हरियाणा के करीब मध्य में स्थित बांगर की धरती जींद में 28 जनवरी को होने जा रहे उप-चुनाव को यूं ही सत्ता का सेमीफाइनल नहीं माना जा रहा है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े राज्य में हवा का रुख यहां के 1.70 लाख मतदाता तय करने वाले है।

दूध-दही की खदान माने जाने वाले इस प्रदेश में अब तक हुए 12 चुनावों में बीजेपी जींद में कभी अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। बीजेपी के लिए अभेद्य बन चुके जींद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार कितनी बुरी तरह उलझी है इसे इस तरह समझा जा सकता है। जींद की हर गली-गांव में बीजेपी के एमएलए घूम रहे हैं। हर जाति को मनाने के लिए उसी जाति के मंत्री को तैनात किया गया है। सरकार के मंत्री और एमएलए अतीत में हुई गुस्ताखियों-खामियों के लिए माफी मांगते घूम रहे हैं। उनके सम्मान की सौगंध खा रहे हैं। साथ में भविष्य के सुनहरे सपने भी दिखा रहे हैं।

ऐसा लगता है मानो पूरी सरकार जींद में उतर गई है। खुद मुख्यमंत्री एक दिन में 30 स्थानों पर लोगों के छोटे-छोटे ग्रुप के साथ चाय पर चर्चा कर रहे हैं। पर मतदाता होशियार है। जींद के लोग जिले की बदहाली की तस्वीर के साथ सरकार को उसका आईना भी दिखा रहे हैं। वह कह रहे हैं कि 28 जनवरी के बाद न तो पलट के यह मंत्री आएंगे और न विधायक फोन उठाएंगे।

जिले में तकरीबन एक लाख मतदाता शहरी हैं तो करीब तीन दर्जन गांवों में 60 हजार के आसपास ग्रामीण वोटर हैं। शहर से सटे करीब साढ़े आठ सौ मतदाताओं वाले गांव खेरी तलौड़ा में मनीश ग्रोवर कहते हैं कि वोटर किसी पार्टी की जागीर नहीं है। हमें किसी दल से लेना देना नहीं है। फिर थोड़ा कुरेदने पर सरकार से उनकी नाराजगी जाहिर हो जाती है।

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पास में ही करीब तीन हजार मतदाताओं वाले जाट बाहुल्य गांव तलौड़ा में एक सियासी दल की सभा चल रही है। इस गांव में बैरागियों की भी तादाद अच्छी बताई गई। गांव के चौक पर खड़े किसान बालकृष्ण, संदीप वोरा और रणधीर मलिक राज्य सरकार की खामियां गिनाना शुरू कर देते हैं। फसलों के समर्थन मूल्य पर वह कहते हैं कि कैसा समर्थन मूल्य। बीजेपी सरकार सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ा रही है।

तीनों किसान सवाल करते हैं कि महज घोषित कर देने से फसल का तय मूल्य मिल जाता है क्या? कौन देखने वाला है कि किसान को फसल के कितने दाम मिल रहे हैं? हम अपनी फसलें मिट्टी के मोल बेचने के लिए मजबूर हैं। फसल बीमा योजना पर तो तीनों किसानों का गुस्सा फूट पड़ा।

उन्होंने कहा कि उनका जबरन बीमा किया जा रहा है। बिना पूछे बैंक उनकी किस्त काट लेते हैं। पर, उन्हें इसके बदले में मिलता क्या है? साथ में वह युवाओं की बेरोजगारी का भी मुद्दा उठाते हैं। वह कहते हैं कि सरकार रोजगार देने की बात करती थी। कहां हैं रोजगार? युवा एक अदद नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

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यहां से कुछ किलोमीटर के फासले पर लोचब गांव में भी एक सभा चल रही होती है। यह इनेलो उम्मीदवार का गांव बताया गया। मिश्रित आबादी और तकरीबन दो हजार मतदाताओं वाले इसी गांव के रहने वाले सभा में मौजूद सुरेन्द्र और गोपाल पहले तो खामोशी अख्तियार कर लेते हैं। बार-बार सवाल करने पर कहते हैं कि अब मतदाता होशियार है। वहां चल रही सभा की तरफ देखकर इशारा करते हुए कहते हैं कि दूसरे दलों की सभाओं में भी यही लोग मौजूद नजर आएंगे, लेकिन वोट अपनी मर्जी से देंगे।

कुरेदने पर दोनों की सरकार से नाराजगी भी बाहर आ गई। दोनों ने कहा कि उनके किसी सगे-संबंधी को न तो सरकारी नौकरी नसीब हुई और न किसी योजना का लाभ मिला। फिर सरकार किस बात की। मोदी सरकार करोड़ों लोगों को मुद्रा योजना के तहत कर्ज देकर रोजगार देने की बात करती है। पर सुरेंद्र और गोपाल को तो मुद्रा योजना का नाम भी नहीं मालूम था।

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यहां से कुछ दूरी पर स्थित करीब तीन हजार मतदाता वाले गांव दालमवाला में भी एक सभा चल रही थी। यहां की सौ साल की नन्हीं देवी से जब सरकार की किसी योजना के बारे में सवाल किया तो उन्हें कुछ नहीं मालूम था। देश को आजादी मिलने के बाद हुए सभी चुनाव नन्हीं देवी ने देखे हैं। जीवन के सौ बसंत देखने के बाद भी स्वस्थ और खुश मिजाज दिख रही नन्ही देवी भी सरकार से खुश नहीं थीं।

जींद शहर व्यापार मंडल उप-प्रधान के बेटे श्याम बिंदल कहते हैं कि न तो यहां कोई कारोबार है और न कोई नौकरी है। फिर जनता सरकार को वोट क्यों देगी। श्याम बिंदल कहते हैं कि जो कारोबार था वह भी नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद बर्बाद हो गया। बीजेपी के पंजाबी प्रत्याशी के सवाल पर वह कहते हैं कि यहां पंजाबी और नान पंजाबी का कोई मुद्दा नहीं है। व्यापार ठप है और कोई सुनने वाला नहीं है। सरकार को व्यापारी अब इसका जवाब देगा।

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इस शहर में कोई फैक्टरी नहीं है, जिससे लोगों को रोजगार की आस जगे। कोई पैसा लगाने के लिए यहां तैयार नहीं है। सरकार कुछ करती नहीं है। नतीजतन, यहां के हजारों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। दूसरी तरफ राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी बिसात यहां जातीय तानेबाने के आसपास बिछा रखी है।

इनेलो और नवगठित जन नायक जनता पार्टी ने जाट उम्मीदवार उतारा है। लिहाजा, करीब 50 हजार जाट मतदाताओं के इर्दगिर्द उनकी रणनीति केंद्रित है। बीजेपी ने पंजाबी चेहरे को मैदान में उतारा है। लिहाजा, करीब 15 हजार पंजाबी वोटों पर उसकी नजर है। बीजेपी के बागी कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी ने अपनी पार्टी से एक ब्राम्हण को प्रत्याशी बनाया है। लिहाजा, करीब 15 हजार सैनी और इतने ही ब्राम्हण मतदाताओं पर उनकी नजर है।

पर, जींद का मतदाता तो मुख्य मसलों का समाधान चाहता है। एक और हैरानी वाला आंकड़ा पता चला। जींद शहर में तकरीबन 20 हजार बंदर हैं, जिन्होंने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। लोहे की ग्रिल से बंद घरों के खुले क्षेत्र देखकर लगता है कि अपराधियों से सुरक्षा के मद्देनजर शायद यह बंदोबस्त लोगों ने कर रखा है। पर यह बंदरों के हमले से बचने के लिए की गई व्यवस्था है।

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