बिना चर्चा, बिना नियमों का पालन किए जेएनयू ने दे दी 'जिहादी आतंकवाद' पर पाठ्यक्रम को मंजूरी!

सूत्रों का कहना है कि एक्जीक्यूटिव काउंसिल की घोषणा और इस संबंध में हुई बैठक का ब्योरा एक-दो दिन में जारी होने की संभावना है। इस पाठ्यक्रम की मंजूरी उन 50 मुद्दों में से एक थी जिसके लिए गुरुवार 2 सितंबर, 2021 को एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई थी।

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ऐशलिन मैथ्यू

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव काऊंसिल ने कथित तौर पर विश्वविद्यालय में आंतकवाद विरोधी पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी है। एक्जीक्यूटिव काऊंसिल विश्वविद्यालय के मामलों में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च कमेटी है। बताया जाता है कि इस पाठ्यक्रम में कथित तौर पर इस्लाम को कम्यूनिस्ट आतंकवाद से जोड़ा गया है। पाठ्यक्रम को मंजूरी अभी 17 अगस्त को विश्वविद्यालय की शिक्षा परिषद ने बिना किसी चर्चा के मंजूरी दे दी थी। इस पाठ्यक्रम में अन्य धर्मों या समूहों द्वारा फैलाए जाने वाले आतंकवाद को शामिल नहीं किया गया है।

सूत्रों का कहना है कि एक्जीक्यूटिव काउंसिल की घोषणा और इस संबंध में हुई बैठक का ब्योरा एक-दो दिन में जारी होने की संभावना है। इस पाठ्यक्रम की मंजूरी उन 50 मुद्दों में से एक थी जिसके लिए गुरुवार 2 सितंबर, 2021 को एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई थी।

इस पाठ्यक्रम को ‘काउंटर टेररिज्, एसिमेट्रिक कंफ्लिक्ट्स एंड स्टैटजीस फॉर कोआपरेशन अमंग मेजर पॉवर’ का नाम दिया गया है। इसमें जोर दिया गया है कि ‘जिहादी आतंकवाद’ दरअसल केवल कट्टरपंथी धार्मिक आतंकवाद का रूप है और पूर्व सोवियत संघ और कम्यूनिस्ट चीन द्वारा मुख्यत: प्रायोजित है जिसने कट्टरपंथी इस्लामी राज्यों को प्रभावित किया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पाठ्यक्रम के तीसरे सत्र में ‘कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद और इसके प्रभाव’ शीर्षक से कहा गया है कि “कुर’आन के एक गलत और विकृत व्याख्या के परिणामस्वरूप जिहादी पंथवादी हिंसा का तेजी से प्रसार हुआ है जो आत्मघाती और हत्याकांड आतंक द्वारा मौत का महिमामंडन करता है।" इसमें आगे कहा गया है कि, "कट्टरपंथी इस्लामी धार्मिक मौलवियों द्वारा साइबर स्पेस के दुरुपयोग के परिणामस्वरूप दुनिया भर में जिहादी आतंकवाद का इलेक्ट्रॉनिक प्रसार हुआ है।"

न्यू स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में मास्टर्स ऑफ साइंस और डुअल डिग्री के ऐसे छात्रों को जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करना चुनते हैं, उन्हें वैकल्पिक और अंतर-अनुशासनात्मक पाठ्यक्रम के रूप में, "आतंकवाद, असम्मित संघर्ष और प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग के लिए रणनीति" पढाया जाएगा। इसे जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईएस) में नहीं पढ़ाया जाएगा।

जेएनयू में नए पाठ्यक्रम को शामिल करने के लिए कई दौर की चर्चा की प्रथा रही है, लेकिन आतंकवाद निरोधी पाठ्यक्रम को शामिल करने का प्रस्ताव 17 अगस्त को बिना चर्चा के पारित कर दिया गया। जेएनयू के मौजूदा कुलपति एम जगदीश कुमार के कार्यकाल में यूनिवर्सिटी में ऐसा होना एक आम बात हो गई है।

जेएनयू अधिनियम के अनुसार, विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए, केंद्र संबंधित अध्ययन बोर्ड (बीओएस) को सुझाए गए पाठ्यक्रम को भेजता है, जो इस पर चर्चा करने के बाद या तो इसे स्वीकार करता है या खारिज कर देता है। यदि पाठ्यक्रम स्वीकार किया जाता है, तो यह अकादमिक परिषद में जाता है, जहां पाठ्यक्रम की शुरूआत पर फिर से विचार किया जाता है। यदि यहां भी इसे अनुमोदित किया जाता है, तो कार्यकारी परिषद द्वारा पाठ्यक्रम का अनुसमर्थन केवल एक औपचारिकता रह जाती है।

बीओएस और अकादमिक काउंसिल, दोनों में ही छात्र प्रतिनिधि सदस्य होते हैं, लेकिन मौजूदा जेएनयू कुलपति ने इस बारे में छात्रों से कोई चर्चा नहीं की जबकि जेएनयू का नियम ऐसा कहता है और कोर्ट ने भी इस बारे में आदेश दे रखा है।

जेएनयू ने जब ‘इस्लामी आतंकवाद’ को पाठ्यक्रम बनाने की घोषणा की थी तो दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने 2018 में जेएनयू को एक नोटिस भेजा था। जिसके बाद विश्वविद्यालय ने उस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

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