JNU छात्रसंघ चुनाव में 67% मतदान, 6 नवंबर को आएंगे नतीजे, लेफ्ट-ABVP में मुकाबला, NSUI ने लड़ाई बनाई त्रिकोणीय
एबीवीपी ने जहां प्रदर्शन और राष्ट्रवाद के विषय पर प्रचार किया है, वहीं, लेफ्ट संगठन ने समावेशिता, सुलभता और छात्र कल्याण पर जोर दिया है। एनएसयूआई के विकाश बिश्नोई ने छात्रवृत्तियों, अनुसंधान समर्थन और छात्र कल्याण के मुद्दों को अपनी प्राथमिकता बताया।

दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 2025-26 के लिए जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के लिए आज मतदान संपन्न हो गया। सुबह से ही परिसर में ढोल की थाप, नारों की गूंज और प्रचार गीतों के बीच छात्र अपने-अपने केंद्रों पर कतारों में खड़े होकर मतदान करते नजर आए। दो सत्रों में हुए मतदान की प्रक्रिया सुबह 9 बजे से शुरू होने वाली थी, लेकिन पोलिंग एजेंट के देरी से पहुंचने के कारण करीब 10 बजे मतदान शुरू हुआ और दोपहर 1 बजे तक चला। फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक मतदान हुआ। इस बार 67 प्रतिशत मतदान हुआ। वोटों की गिनती रात 9 बजे से आरंभ होगी, जबकि परिणाम 6 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। पिछले वर्ष 70 प्रतिशत मतदान हुआ था।
जेएनयू परिसर में छात्रों ने मंगलवार को नये केंद्रीय पैनल और स्कूल काउंसलर का फैसला करने वाले चुनावों में वोट डाले। केंद्रीय पैनल के चार प्रमुख पदों- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव के लिए 20 उम्मीदवार मैदान में हैं। छात्रों ने विश्वविद्यालय के विभिन्न स्कूलों के लिए 42 पार्षद पदों के लिए भी मतदान किया। इस वर्ष लगभग 9,043 छात्र मतदान के पात्र हैं।
हालांकि सुबह के समय मतदान की रफ्तार कम थी, लेकिन दोपहर में कतारें लंबी हो गईं। इनमें कई पहली बार मतदान कर रहे थे। स्नातक छात्रा आकांक्षा ने कहा कि अब तक मैंने जेएनयू चुनावों के बारे में सिर्फ़ सुना था। पहली बार इन्हें देखना ख़ास लग रहा है। यह जीवंत के साथ-साथ गंभीर भी है।
इस चुनाव में मुकाबला मुख्य रूप से वाम दलों और आरएसएस से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के बीच है। वहीं कांग्रेस की छात्र इकाई मुकाबले को त्रिकोणीय बनाती दिखी। वाम संगठनों में ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (आइसा), ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (एसएफआई) और ‘डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन’ (डीएसएफ) शामिल हैं। उसने अध्यक्ष पद के लिए अदिति मिश्रा, उपाध्यक्ष पद के लिए किझाकूट गोपिका बाबू, महासचिव पद के लिए सुनील यादव और संयुक्त सचिव पद के लिए दानिश अली को मैदान में उतारा है।
वहीं, एबीवीपी ने अध्यक्ष पद के लिए विकास पटेल, उपाध्यक्ष पद के लिए तान्या कुमारी, महासचिव पद के लिए राजेश्वर कांत दुबे और संयुक्त सचिव पद के लिए अनुज को उम्मीदवार बनाया है। वहीं एनएसयूआइ ने अध्यक्ष पद के लिए विकाश बिश्नोई को मैदान में उतारा है, जो मुकाबले को त्रिकोणीय बनाते दिख रहे हैं।
एबीवीपी ने जहां प्रदर्शन और राष्ट्रवाद के विषय पर प्रचार किया है, वहीं, वामपंथी संगठन ने समावेशिता, सुलभता और छात्र कल्याण पर ज़ोर दिया है। एनएसयूआई प्रत्याशी विकाश बिश्नोई ने छात्रवृत्तियों, अनुसंधान समर्थन और छात्र कल्याण के मुद्दों को अपनी प्राथमिकता बताया। वहीं, स्वतंत्र और छोटे संगठनों के उम्मीदवारों ने हॉस्टल सुरक्षा, लैब सुविधाओं और शोध निधि जैसे व्यावहारिक मुद्दे उठाए।
पिछले वर्ष हुए चुनाव में वाम संगठन ने चार में से तीन पदों पर कब्जा किया था, जबकि एबीवीपी ने दस साल बाद संयुक्त सचिव का पद जीता था। पिछले वर्ष आइसा के नीतीश कुमार ने अध्यक्ष पद जीता था जबकि एबीवीपी के वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद हासिल किया था। इस बार दोनों गुटों के बीच मुकाबला और अधिक कड़ा माना जा रहा है। जेएनयूएसयू की पूर्व अध्यक्ष आइशी घोष ने मतदान केंद्र के बाहर प्रचार करते हुए कहा कि वाम संगठन सभी चार केंद्रीय पैनल सीट पर जीत हासिल करेगी।
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